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    दिवाली पर दीयों की पुकार: कुम्हार के पसीने ले रहे आकार, आपके घर में रोशनी बिखेरने को बेताब; बस चाहिए आपका साथ

    Happy Diwali 2023 दीपावली ज्यादा दिन दूर नहीं है । दीपावली पर दीपक जलाना एक कालजयी परंपरा है लेकिन फिर भी चीन से आने वाली लाइटों ने बाजार पर कब्जा जमाया हुआ है। इससे कुम्हारों को काफी नुकसान होता है। हालांकि इस बार कुम्हारों को भरोसा है कि इस बार की दीपावली उन्हें आर्थिक संकट से उबार देगी ।

    By Shubh Narayan PathakEdited By: Aysha SheikhUpdated: Mon, 06 Nov 2023 01:40 PM (IST)
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    दिवाली पर दीपक जलाने की है परंपरा

    जागरण संवाददाता, बक्सर। दीप ज्योति पर्व के चंद दिन शेष रह गए हैं। कुम्हारों के मिट्टी से सने हाथों ने चाक को तेज गति दे दी है। कुम्हारों के पसीने से आकार ले रहे दीए लोगों के घरों को दीपावली पर्व पर रोशन करने को बेताब हैं, बस जरूरत है आपके एक प्रयास की।

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    असल ग्रीन दीपावली तभी सार्थक होगी, जब हरेक के घरों में खुशियां लौटें। इसके लिए नगर के विभिन्न इलाकों में कुम्हार परिवार भी इन दिनों मिट्टी से निर्मित सामानों की तैयारी करने में व्यस्त दिख रहे हैं। उन्हें भी भरोसा है कि इस बार की दीपावली उन्हें आर्थिक संकट से उबार देगी।

    बीते हुआ काफी नुकसान

    कहते हैं कि 2019 के बाद से उनका व्यवसाय बेमजा हो गया है। बीते वर्ष भी जैसे-तैसे मिट्टी का इंतजाम करके दीए तो बना लिए थे, पर बाजार अपेक्षा अनुकूल नहीं मिलने से उन्हें काफी नुकसान हुआ। इस बार बाजार संभलने की आस बांधकर पूरी तरह से लगे हुए हैं।

    दीप पर्व के सप्ताह दिन शेष

    साल के दीप पर्व पर बड़ी संख्या में इन दीपकों का उपयोग होता है। इस कारण इन दिनों कुम्हारों का पूरा परिवार इस काम में हाथ बंटा रहा है। कोई मिट्टी गूथने में लगा हुआ है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहा है। नगर स्थित सराय फाटक (सोहनीपट्टी) मोड़ के शिवशंकर प्रजापति, उमाशंकर प्रजापति आदि का कहना है कि देशी निर्मित इन दीपकों की कोई तोड़ नहीं है।

    मिट्टी के दीए सुख समृद्धि के परिचायक

    हालांकि, बदलते इस परिवेश में इन मिट्टी के दीयों का स्थान भले ही इलेक्ट्रिक झालरों ने ले लिया हो, लेकिन मिट्टी के दीपकों का अलग ही महत्व है। मिट्टी के दीपक घर में सुख-समृद्धि लाते हैं। मौके पर रमेश प्रजापति दो मिनट में एक दीए तैयार कर क्यारियों में संजोते दिखे।

    कहा कि दिन भर में लगभग दो-ढाई हजार दीए तैयार कर लेते हैं, पर शरीर अकड़ जाता है। उनकी शिकायत है कि मिट्टी के दिए बनाने में बहुत मेहनत लगती है, पर बाजार में उस हिसाब से कीमत नहीं मिलती। उन्हें भरोसा है की बढ़िया आकर वाले दीए प्रति पीस 5-10 रुपये के भाव बिक जाएंगे।

    मिट्टी के दीयों का धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व

    नया बाजार की वयोवृद्ध महिला गीता देवी बताती हैं कि दीप त्योहार में घरों के मुंडेर पर झलमिलाती रोशनी बिखरते दीए जितने सुंदर व आंखों को सुकून देते हैं वो बात आज की इन बिजली के झालरों में नहीं है।

    साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा का कहना है कि दीपक का प्रकाश ज्ञान की तरह ही अपरिमित होता है और दीपावली पर दीपक जलाना एक कालजयी परंपरा है, जिसमें रुई की बाती गूंथकर दीप प्रकाश से की जाने वाली वंदना, आवाहन और पूजन को धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों रूप से महत्व दिया गया है।

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