Bihar: मालखाने में 11 साल से रखी है लोकनायक की प्रतिमा, अपनी जन्मभूमि में ही जेपी उपेक्षित
बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की एक प्रतिमा 11 वर्षों से मालखाने में रखी है। अपनी जन्मभूमि में ही जेपी की प्रतिमा उपेक्षित है। प्रतिमा को स्थापित करने की योजना अधर में लटकी है, जिससे स्थानीय लोगों में निराशा है। लोगों का आरोप है कि प्रशासन उदासीन है और वे जल्द कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
-1761206924957.webp)
विनोद मिश्रा, नावानगर (बक्सर)। आजादी और संपूर्ण क्रांति के प्रतीक लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मस्थल डुमरांव अनुमंडल के नावानगर प्रखंड के सिकरौल लख गांव में है। 11 अक्टूबर 1902 को जन्मे जेपी ने यहीं से शिक्षा की प्रारंभिक सातवीं तक की पढ़ाई पूरी की थी।
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य विनोद कुमार सिंह कहते हैं- यही वह भूमि है, जिसने देश को क्रांति का वह सपूत दिया, जिसने इंदिरा गांधी जैसी शक्तिशाली प्रधानमंत्री को सत्ता से बाहर कर दिया। मगर विडंबना यह है कि जहां लोकनायक का जन्म हुआ। वहीं, उनकी प्रतिमा पिछले 11 वर्षों से थाने के मालखाने में कैद पड़ी है।
आठ घंटे पहले ही रुक गया था अनावरण
राजद नेता बैजनाथ सिंह उर्फ विधायक जी बताते हैं कि 8 मार्च 2014 को पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा सिकरौल लख के पास जेपी की प्रतिमा का अनावरण का कार्यक्रम बना था। प्रतिमा के लिए 10 फीट ऊंचा चबूतरा बनाया गया था।
लेकिन कार्यक्रम के महज आठ घंटे पहले जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग की टीम ने यह कहते हुए चबूतरा तोड़ दिया कि जमीन सिंचाई विभाग की है और जेपी के नाम पर कोई अधिग्रहण नहीं हुआ है।
उसी रात प्रशासन ने प्रतिमा को जब्त कर लिया और सिकरौल थाने में रखवा दिया। तब से यह मूर्ति ‘मालखाना’ में बंद है। न उसका अनावरण हुआ, न जनता ने अपने लोकनायक को नमन किया।
स्थानीय कार्यकर्ताओं के स्तर से इस प्रतिमा को छुड़ाने की कोशिश कई बार हुई। थाने वाले कहते हैं एसडीओ या सीओ से बात कीजिए और अधिकारी कहते हैं कि जब कोई प्राथमिकी ही नहीं है, तो हम क्या करें।
फक्कड़ थे लोकनायक, पर व्यवस्था में कैद है उनकी प्रतिमा
जेपी का जीवन सादगी और त्याग का प्रतीक था। वे न सत्ता चाहते थे, न पद। 1974 की संपूर्ण क्रांति से देश में नई चेतना आई। 1977 के चुनाव में जनता ने पहली बार कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया-उस आंदोलन के नायक थे जयप्रकाश नारायण।
मगर आज विडंबना यह है कि जिस धरती ने ऐसे संत पुरुष को जन्म दिया, वहां उसी के सम्मान की प्रतिमा सरकारी अनदेखी की भेंट चढ़ी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि हर वर्ष 11 अक्टूबर को जेपी की जयंती पर लोग सिकरौल लख में श्रद्धांजलि तो अर्पित करते हैं, लेकिन मन में यह कसक रहती है कि उनके आदर्श की प्रतिमा आज भी थाने की दीवारों के भीतर बंद है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।