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    बक्सर में शोपीस बनकर रह गया मौसम सूचना केंद्र, एक साल बाद भी नहीं हुआ शुरू

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 10:39 PM (IST)

    बक्सर के डुमरांव में वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय के अधीन स्थापित स्वचालित मौसम सूचना केंद्र एक साल बाद भी निष्क्रिय है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ...और पढ़ें

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    एक साल गुजरने बावजूद कृषि प्रक्षेत्र में स्थापित मौसम सूचना केंद्र नहीं हुआ शुरू। फोटो जागरण

    संवाद सहयोगी, डुमरांव (बक्सर)। अनुमंडल मुख्यालय स्थित वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय के अधीन हरियाणा कृषि प्रक्षेत्र में भारत सरकार के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के सहयोग से लगभग एक वर्ष पूर्व एक स्वचालित मौसम सूचना केंद्र की स्थापना की गई थी।

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    इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र के किसानों तथा सामान्य नागरिकों को सटीक मौसम पूर्वानुमान, वर्षा, तापमान, आर्द्रता तथा अन्य मौसमी जानकारी उपलब्ध कराना था, ताकि कृषि कार्यों में बेहतर योजना बनाई जा सके और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सके। स्थापना के करीब एक वर्ष बीत जाने के बाद भी यह केंद्र पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा हुआ है। न तो कोई मौसम डेटा एकत्र किया जा रहा है और न ही इसे किसानों तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था सक्रिय हुई है।

    परिणामस्वरूप, स्थानीय किसानों तथा आसपास के नागरिकों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया है। यह आधुनिक उपकरण अब प्रक्षेत्र में मात्र शोभा की वस्तु बनकर रह गया है, जो सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करता है। महाविद्यालय के अधीन संचालित हरियाणा कृषि प्रक्षेत्र के प्रबंधन ने दावा किया था कि यह केंद्र 25 किलोमीटर की त्रिज्या में बसे गांवों के नागरिकों को मौसम संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराएगा।

    इससे किसान फसल बोनी, सिंचाई, कीटनाशक छिड़काव तथा कटाई जैसे कार्यों में मौसम के अनुसार निर्णय ले सकेंगे। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। इस संबंध में वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पारस नाथ ने बताया कि केंद्र को सक्रिय करने के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को कई बार पत्राचार किया गया है। विभाग से तकनीकी सहायता तथा रखरखाव की मांग की गई है।

    उन्होंने आश्वासन दिया कि केंद्र को शीघ्र शुरू कराने की कवायद तेज कर दी गई है और जल्द ही इसे चालू किया जाएगा। किसान उम्मीद कर रहे हैं कि मौसम सूचना केंद्र के सक्रिय होने से कम से कम मौसम आधारित कृषि सलाह तो उपलब्ध हो सकेगी, जो बदलते जलवायु परिदृश्य में उनकी फसलों की रक्षा कर सके।