Buxar Vidhan Sabha Chunav: बिहार की इस सीट में 3892 वोटों से हुई थी जीत, क्या इस बार भी दोहराएगा इतिहास?
बक्सर विधानसभा सीट (Buxar Assembly) बिहार की एक महत्वपूर्ण सीट है। पिछले चुनाव में यहां 3892 वोटों से जीत हुई थी। सभी राजनीतिक दलों की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार (Bihar Election 2025) भी इतिहास दोहराया जाएगा और मतदाता किस पार्टी को चुनते हैं।

बक्सर विधानसभा सीट में दिलचस्प मुकाबला
राजेश तिवारी, बक्सर। बिहार में पहले चरण का मतदान (Bihar Election 2025 1 phase) कल होना है। ऐसे में जिले का सियासी पारा चढ़ गया है। पिछले विधानसभा चुनाव की तरह बक्सर विधानसभा क्षेत्र का चुनावी रण इस बार भी बेहद दिलचस्प और अप्रत्याशित मोड़ पर आ गया है। या यूं कहें कि बक्सर विधानसभा सीट एक बार फिर बिहार की सबसे दिलचस्प और कांटेदार चुनावी जंग का केंद्र बन गई है।
पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर हार-जीत का फैसला महज 3892 वोटों के अंतर से हुआ था, जो पूरे राज्य में सबसे नजदीकी परिणामों में से एक था। इस बार 3892 वोटों का हिसाब कौन चुकाएगा? यह सवाल मतदाताओं के साथ-साथ प्रत्याशियों के समर्थकों को भी साल रहा है।
आंकड़ों पर गौर करें तो, पिछले विधानसभा चुनाव में बक्सर विधानसभा में दो प्रमुख उम्मीदवार कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी एवं एनडीए के भाजपा प्रत्याशी परशुराम चौबे के बीच मुकाबला था।
विधानसभा में कुल 56.74 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसमें कुल 89749 तथा 72155 महिलाओं ने मतदान किया था और जीत-हार का अंतर महज 3892 वोट का था।
इससे अलग ब्रह्मपुर विधानसभा में यह अंतर 51141 वोट का, डुमरांव में 24415 का तथा राजपुर में 21204 वोट का था। बक्सर का यह संकीर्ण मार्जिन बताता है कि बक्सर के मतदाता किसी एक दल के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं हैं, बल्कि हर चुनाव में उम्मीदवारों के व्यक्तिगत प्रभाव और तत्कालीन लहर का बारीकी से मूल्यांकन करते हैं।
इस बार भी दोहरा सकता है इतिहास
बक्सर में इस बार भी मतदाता किसी भी पार्टी के लिए “सेफ जोन” नहीं दिखा रहे हैं। हर उम्मीदवार अपने-अपने गढ़ को मजबूत करने में जुटा है, लेकिन अंतिम फैसला मैदान में मतदाता ही करेंगे।
यहां का इतिहास बताता है कि बक्सर के वोटर आखिरी समय में भी रुझान बदल सकते हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “छोटा-सा अंतर” ही फिर से बड़ी कहानी लिख सकता है। इस बार का चुनाव केवल दो प्रमुख दलों के बीच सीमित नहीं है।
क्षेत्र में तीसरे मोर्चे के रूप में छोटे दलों के प्रत्याशी भी पूरी ताकत से मैदान में जमे हैं। ये साफ-सुथरी राजनीति और विकास के नाम पर पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। इनकी सक्रियता से वोटों का बंटवारा तय है।

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