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    Uttarakhand Tunnel Rescue : उत्तरकाशी की सुरंग में अटकी थीं सांसें.. बेटा बाहर आया तो बिहार में बैठी मां के छलक पड़े आंसू

    By Shekhar Kumar SinghEdited By: Sanjeev Kumar
    Updated: Wed, 29 Nov 2023 01:58 PM (IST)

    Bihar News सुरंग से बाहर आए वीरेंद्र ने दैनिक जागरण से मोबाइल पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि शुरुआती 12 घंटे काफी कष्टदायक थे। कुछ देर के लिए अंधेरा छा गया था। फिर ऑक्सीजन की भी कमी पड़ने लगी। हालांकि अंदर में एरिया थोड़ा ज्यादा बड़ा होने के कारण थोड़ी राहत मिली। छह इंच के पाइप से जब ऑक्सीजन एवं भोजन-पानी सप्लाई आने लगा तब जान में जान आई।

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    बीरेंद्र किस्कू के सुरंग से निकलने पर रोने लगीं मां

    अनिल शर्मा, जयपुर (बांका)। Uttarakhand Tunnel Rescue : बांका जिले के कटोरिया प्रखंड के जयपुर बीरेंद्र किस्कू की मां सुषमा हेंब्रम के लिए एक-एक पल भारी था। सांसें अटकी हुई थी। अपराह्न तीन बजे से ही वे सुन रही थीं कि उत्तरकाशी के निर्माणाधीन सुरंग फंसा उनका बेटा अब जल्द ही बाहर निकल जाएगा।

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    शाम ढल चुकी थी। सुषमा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। ब्रेकिंग न्यूज से बचाव दल के सुरंग में मजदूरों के पहुंचने की सूचना मिली तो सुषमा की दोनों आंखें बंद हो गईं और दोनों हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़ गए। मां की प्रार्थना भगवान ने स्वीकार की। वहां सुरंग ने जिंदगियां लौटानी शुरू कीं।

    पहली खेप में चार मजदूरों के बाहर आने की जानकारी मिली। इसी में बीरेंद्र भी था। 18 दिनों में पथरा गई आंखों का इंतजार खत्म हुआ। बेटे के सकुशल बाहर आते ही वृद्ध मां सुषमा की सांसें लौटीं और आंखों से पानी झरने लगा।

    यह बहुत भावुक पल था। न केवल सुषमा हेंब्रम बल्कि उनके गांव और आसपास के लोग भी बीरेंद्र के सकुशल सुरंग से बाहर आने की आस लगाए हुए थे। वीरेंद्र के सुरंग से निकलते ही सभी खुशी से झूम उठे। सभी ने उसकी मां को बधाई दी। और मां...! वे बार-बार हाथ जोड़कर बेटे को सुरंग से वापस करने के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करने लगीं।

    दूसरी ओर, उत्तराखंड पहुंचे वीरेंद्र के भाई रविंदर एवं उनकी पत्नी रजनी टुडू ने भी फोन पर खुशी व्यक्त की। उन्होंने बताया कि इलाज के बाद अगले सप्ताह बीरेंद्र के जयपुर स्थित घर पहुंचने की उम्मीद है।

    शुरुआती 12 घंटे कष्टदायक थे

    सुरंग से बाहर आए वीरेंद्र ने दैनिक जागरण से मोबाइल पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि शुरुआती 12 घंटे काफी कष्टदायक थे। कुछ देर के लिए अंधेरा छा गया था। फिर ऑक्सीजन की भी कमी पड़ने लगी। हालांकि अंदर में एरिया थोड़ा ज्यादा बड़ा होने के कारण थोड़ी राहत मिली।

    छह इंच के पाइप से जब ऑक्सीजन एवं भोजन-पानी सप्लाई आने लगा तब जान में जान आई। वीरेंद्र को लगभग 9:00 बजे सुरंग से बाहर निकालने के बाद उन्हें एंबुलेंस से अपने स्वजनों के साथ अस्पताल ले जाया जा रहा था। वीरेंद्र ने कहा कि यह मेरा दूसरा जन्म है।

    नई जिंदगी मिली है। अभी फोन पर बात करने से मना किया जा रहा है। वह अस्पताल जाकर आराम से बात करेगा। ज्ञातव्य है कि 11 नवंबर को सुरंग के अंदर काम करने गए 41 मजदूरों का दूसरे दिन 8:00 बजे टाइम ओवर होना था जबिक सुबह 5:00 सुरंग क्षतिग्रस्त होकर ध्वस्त हो गया था।

    महादेव का मिला आशीर्वाद तो जगी आस

    वीरेंद्र के साथी विकास यादव ने बताया कि सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने में बचाव टीम को हर पल चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। हर कोई चिंतित था। सुरंग के सामने से हटाए गए बोकनाथ मंदिर के पीछे सोमवार को दीवार पर पानी के सेम (सिलन) से महादेव की आकृति दिखने लगी।

    इसके बाद लोगों लगा कि अब उनके साथ भगवान का आशीर्वाद है। जल्द ही मजदूर बाहर निकलेंगे। इसके ठीक दूसरे दिन ही सरकार को बड़ी सफलता मिली।

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