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    Bihar Farmers: आरा में कद्दू ने किसानों को बनाया मालामाल, नए तरीके की खेती से सीधे डबल हुई कमाई!

    Updated: Wed, 30 Apr 2025 03:29 PM (IST)

    भोजपुर के बड़हरा प्रखंड के धुसरीया गांव में किसान लौकी की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं। पारंपरिक खेती से अलग वे नवाचार का उपयोग कर रहे हैं। किसान लोरिक पासवान ने बताया कि चार बीघा में लौकी की खेती से उन्हें अच्छी आमदनी हुई है जिससे अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। शादी के सीजन में उन्हें अच्छा मुनाफा होता है।

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    कद्दू की खेती से किसान संवार रहे अपनी आर्थिक स्थिति

    राकेश कुमार तिवारी, बड़हरा (आरा)। कददू की खेती भोजपुर में किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव ला रहा है।

    भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड अंतर्गत धुसरीया गांव के किसान पारंपरिक खेती से अलग नवाचार के सहारे लौकी सब्जी की अच्छी खेती कर रहे हैं।

    इससे न केवल उनकी अच्छी कमाई हो रही है, बल्कि उनसे प्रेरित होकर आसपास के गांवों के लोग भी इसकी खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं। किसानों का कहना है कि चार महीने में लौकी (कद्दू) के पौधे तैयार हो जाते हैं और फसल देने लगते हैं।

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    लौकी की खेती गांव में सबसे पहले शुरू करने वाले किसान लोरिक पासवान ने बताया कि हम करीब दस वर्षों से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं। इस वर्ष चार बीघा में लौकी की खेती की है।

    80 हजार रुपये का आया खर्च

    चार बीघा में लौकी की खेती में जुताई, बुवाई और पटवन समेत अन्य खर्च करीब 80 हजार रुपये आया है। शादी विवाह के दौरान चार लाख रुपया तक की आमदनी हुई है।

    उनकी देखादेखी अन्य किसानों ने भी इसकी खेती की और कद्दू की फसल से गांव की पहचान बन गई। किसान बताते हैं कि आरा, छपरा और कायमनगर बाजार में लौकी सब्जी की सप्लाई हाेती है। इसके अलावे

    कई व्यापारी हमारे खेतों तक आकर लौकी की खरीद करते हैं। प्रत्येक दो दिन बाद चार बीघा खेत से करीब छह सौ से आठ सौ तक लौकी निकलता है। शादी विवाह के सीजन में अच्छा भाव मिलता हैं।

    इस दौरान आमदनी भी अच्छी होती है। किसान ने बताया कि सब्जी की खेती करना चाहते हैं तो छोटे पैमाने पर न करके बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती करें तो बाजार मिलने की समस्या नहीं होगी।

    उनका कहना है कि धान गेहूं मक्का इत्यादि की फसल से केवल जीवन यापन किया जा सकता है। अच्छी कमाई के लिए सब्जी की खेती उपयुक्त है।

    सरकारी अनुदान की बात पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि सरकारी अनुदान के चक्कर में पड़ने पर बुवाई का सीजन निकल जाता है। लेट बुवाई से कमाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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