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    Diwali 2023: आपातकाल में कैसे मनी थी दिवाली? तानाशाही के बीच जैसे-तैसे लोगों ने खरीदे थे पटाखे और दीये; भय का था माहौल

    By Jagran NewsEdited By: Mukul Kumar
    Updated: Sun, 12 Nov 2023 02:45 PM (IST)

    आज देश भर दिवाली मनाई जा रही है। इस बीच आपातकाल के समय दिवाली का त्योहार कैसे मनाया गया था इसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस निर्णय के बाद पूरे देश में एक क्रांति फैल गई। हर क्षेत्र में विरोध के स्वर बुलंद होने लगे। तानाशाह रवैयों के बीच भी दिवाली पर्व को जैसे- तैसे मनाया गया।

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    आपातकाल में कैसी मनी थी दिवाली। फोटो- जागरण

    डिजिटल डेस्क, आरा। आज पूरे देश में दीपावली का पर्व काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस दीपोत्सव के पर्व में बच्चों के बीच काफी उमंग देखने को मिल रहा है, लेकिन देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 का वक्त ऐसा भी था, जब पूरे 21 महीने आपातकाल लागू था। जो कि स्वतंत्र भारत में पूर्ण अलोकतांत्रिक था।

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    तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस निर्णय के बाद पूरे देश में एक क्रांति फैल गई। हर क्षेत्र में विरोध के स्वर बुलंद होने लगे। हालांकि, सरकार की अलोकतांत्रिक फरमान और प्रशासन का तानाशाह रवैयों के बीच भी दिवाली पर्व को जैसे- तैसे मनाया गया।

    आपातकाल के दौरान भोजपुर जिले के आरा में दिपावली के वक्त कैसा माहौल था? इस संबंध में दैनिक जागरण की टीम और साहित्य जगत से जुड़े लेखक सावन कुमार ने आरा निवासी रणजीत बहादुर माथुर (सेवानिवृत शिक्षक व वरिष्ठ साहित्यकार) से बात की।

    आपातकाल के समय दिवाली फीकी

    1975 में लगे आपातकाल के बारे में उन्होनें बताया कि आरा शुरू से ही गंगा- जमुनी तहजीब का शहर रहा है। यहां हर त्योहार को काफी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आपातकालीन के समय दीपावली के वक्त सबका दिवालिया निकल गया था। उस बीच, दीपावली की रौनक काफी फीकी थी।

    लोग डर से घर से बाहर निकलने में सोचते थे, फिर भी हमारा शहर दीपों से जगमाया था, लेकिन लोगों के मन में काफी डर था। इसकी वजह से पटाखों की गूंज शून्य थी। उस वक्त चोरी-छिपे गिने-चुने दुकान ही लगे थे। जहां से दीया या मोमबत्ती लोगों ने खरीदा था।

    नौजवानों ने आपातकाल का किया था पुरजोर विरोध

    बच्चों की उमंग भी फीकी थी। कई घर ऐसे भी थे, जहां गमगीन दिवाली मनी क्योंकि कई नौजवानों ने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया था। इसकी वजह से उन्हें जबरदस्ती जेल में डाल दिया गया था। आपातकाल के वक्त प्रशानिक व्यवस्था इतनी चुस्त-दुरुस्त थी कि कोई त्योहार के वक्त मनमानी कर ले इतना साहस किसी में नहीं था।

    उन्होंने बताया कि सबके मन में ये डर बना ही रहता था पता नहीं, किस जुर्म में गिरफ्तारी हो जाए। दीपावली के वक्त भी कुछ ऐसा ही माहौल था। सभी यही सोचते थे थोड़ी बहुत दीपावली की पूजा करो, खाओ- पियो और सो जाओ।

    यहां तक कि लोग दीपावली के मौके पर मिलने-जुलने में भी कतराते थे। मन में एक डर बना हुआ था कि कहीं घर से बाहर निकले और पुलिसकर्मियों ने पकड़ लिया तब! इस डर से सभी अपने घर में ही दुबके हुए थे।

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