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    जन्माष्टमी और कृष्णाष्टमी में क्या है अंतर, किस दिन मनाएं यह पर्व, शुभ मुहूर्त का रखें विशेष ध्यान

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 18 Aug 2022 09:38 AM (IST)

    What is the difference between Janmashtami and Krishnashtami हिंदू धर्म के भगवान कृष्ण के जन्म का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ है। शुभ मुहूर्त तथा तिथि के लिए यह खबर पढ़ लें।

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    What is the difference between Janmashtami and Krishnashtami : बता रहे हैं वृंदावन के संत वेंकटेशाचार्यजी 'श्रीब्रजेशजी' महाराज

    ऑनलाइन डेस्क, भागलपुर। What is the difference between Janmashtami and Krishnashtami : जन्माष्टमी और कृष्णाष्टमी में क्या अंतर है। भगवान कृष्‍ण के जन्‍म के समय इस बात की लगातार चर्चा होती है। किस दिन व्रत व उपवास करें, लोग इस बारे में भी जानना चाहते हैं। पुराणों में ऐसा प्रमाण आया है- कृष्णाष्टम्यां भवेद्यत्र कलैका रोहिणी यदि। जयन्ती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयत्नतः।। अर्थात अष्टमी मात्र का विचार करने पर व्रत कृष्णाष्टमी कहलाता है, किन्तु रोहिणी नक्षत्र का विचार करते हुए यदि व्रत किया जाए, तो वह जयंती या जन्माष्टमी कहलाता है। इसलिए कई बार यह व्रत दो दिन मनाई जाती है।

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    गुरु परंपरानुसार कृष्णाष्टमी मनाने वाले सनातन धर्मी अष्टमी प्रधान कृष्णाष्टमी मनाते हैं। वहीं कुछ सनातनधर्मी विशेष रूप से दीक्षित वैष्णव अपनी गुरु परंपरानुसार रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देते हुए जयंती या जन्माष्टमी महोत्सव मनाते हैं। कभी-कभी ये दोनों विधि के अनुसार व्रत एक साथ मनाए जाते हैं। इसमें भी यदि ये दोनों योग बुधवार को है, तो वह और भी दुर्लभ योग होता है। अक्षय फल देने वाला होता है। पुराणों में जन्माष्टमी के व्रत को गुरु परंपरानुसार करने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

    वृंदावन के संत वेंकटेशाचार्यजी 'श्रीब्रजेशजी' महाराज ने कहा - ये न कुर्वन्ति जानन्तः कृष्णजन्माष्टमीव्रतम्। ते भवन्ति नराः प्राज्ञ व्याला व्याघ्राश्च कानने।। जो लोग इस कृष्णाष्टमी या जन्माष्टमी व्रत को नहीं करते हैं, वे अगले जन्म में घनघोर जंगल में सांप और बाघ आदि हिंसक रूप में जन्म लेते हैं। हर सनातन धर्मी को यह व्रत विशेष रूप से गुरु परंपरा के अनुसार करनी चाहिए।

    महाजयार्थं कुरु तां जयन्तीं मुक्तयेनघ। धर्ममर्थं च कामं च मोक्षं च मुनिपुङ्गव।। ददाति वाञ्छितानर्थान् ये चान्येप्यतिदुर्लभाः। इस व्रत के करने से विजय की प्राप्ति होती है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दुर्लभ से दुर्लभतम मनोकामना की पूर्ति होती है।

    जो भी भक्तगण गुरु परम्परानुसार अष्टमी तिथि को प्रधानता देते हुए कृष्णाष्टमी मनाते हैं, उनके लिए - दिवा वा यदि वा रात्रौ नास्ति चेद्रोहिणी कला। रात्रियुक्तां प्रकुर्वीत विशेषेणेन्दुसंयुताम्।। यद्यपि दिन या रात में तनिक मात्र भी रोहिणी तिथि न हो, फिर भी चन्द्रोदय से युक्त अष्टमी तिथि होने से कृष्णाष्टमी मनाना श्रेयस्कर है। यह संयोग 19 अगस्त को है। काशी के पंचांगों के अनुसार 19 अगस्त को चंद्रोदय रात्रि 11:24 को हो रहा है। अष्टमी तिथि 19 अगस्त को सूर्योदय से रात्रि 1:06 तक है। मिथिला के पंचांगों के अनुसार अष्टमी तिथि 19 अगस्त को सूर्योदय से रात्रि शेष 1:14 तक है। अतः 19 को ही चन्द्रोदय के साथ मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि का योग है।

    वेंकटेशाचार्यजी 'श्रीब्रजेशजी' महाराज ने कहा क‍ि - अब उन वैष्णव भक्तों के लिए प्रमाण उपलब्ध हैं जो रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देते हुए जयंती या जन्माष्टमी व्रत को मनाते हैं - समायोगे तु रोहिण्यां निशीथे राजसत्तम। समजायत गोविन्दो बालरूपी चतुर्भुजः।। तस्मात्तं पूजयेत्तत्र यथा वित्तानुरूपतः।। मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र लगने पर ही बाल रूप में भगवान गोविन्द ने चतुर्भुजी स्वरूप में अवतार लिया था। इसलिए ही अपने वैभव-व्यवस्था के अनुसार उनकी पूजा की जानी चाहिए। रोहिण्यामर्द्धरात्रे तु सदा कृष्णाष्टमी भवेत्। तस्यामभ्यर्चनं शौरेर्हन्ति पापं त्रिजन्मजम्।।

    कृष्णाष्टमी को रोहिणी नक्षत्र के अर्धरात्रि में होने पर ही मनानी चाहिए। ऐसा करने पर तीन जन्मों के पाप का नाश होता है। यह संयोग 20 अगस्त को उपस्थित है। काशी के पंचांगों के अनुसार रोहिणी नक्षत्र 20 अगस्त को सूर्योदय से 21 अगस्त के प्रातः 7:00 तक है। मिथिला के पंचांगों के अनुसार रोहिणी नक्षत्र 20 अगस्त को सूर्योदय से 21 अगस्त के प्रातः 7:09 तक है। अतः 20 को ही सूर्योदय कालीन एवं मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र उपस्थित है ।