Durga Puja: दुर्गा सप्तशती अब अवधी भाषा में भी, स्वामी आगमानंद की यह कृति सर्वग्राही
Durga Puja देवी दुर्गा के उपासकों के लिए भागलपुर के संत परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने श्रीदुर्गाचरितमानस ने एक अद्भुत ग्रंथ की रचना की है। श्री दुर्गा सप्तशती को उन्होंने अवधी भाषा में अनुवाद किया है। उनकी यह कृति सर्वग्राही है। यह प्रस्तेक घरों में रखने वाली पुस्तक है।
आनलाइन डेस्क, भागलपुर। अभी तक लोग दुर्गा उपासना के लिए संस्कृत में उपलब्ध श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ किया करते थे। लेकिन अब संस्कृत में पढ़ी जाने वाली श्री दुर्गा सप्तशती का बेहतर विकल्प सबके सामने आ चुका है। आम लोगों के बीच यह पुस्तक पहुंच रहा है। भागलपुर के संत परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने श्रीदुर्गाचरितमानस नाम से एक अद्भुत अनुपम ग्रंथ की रचना की है। इस ग्रंथ में उन्होंने संस्कृत में उपलब्ध दुर्गा सप्तशती का अवधी में अनुवाद किया है। यह पुस्तक की रचना में छंद, दोहा, सोरठा आदि का इस्तेमाल किया गया है। बहुत ही सहज और ग्राह्य है। लययात्मक ढंग से इसकी रचना की गई है। बहुत ही आसान शब्दों का उपयोग किया गया है। यह पुस्तक आम लोगों की समझ में आने वाली है। दुर्गा सप्तशती संस्कृत में उपलब्ध होने के कारण आज के नई पीढ़ी के लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में यह पुस्तक वैसे लोगों के लिए बेहतर विकल्प के रूप में उपलब्ध है। आज यह पुस्तक काफी लोकप्रिय है। लोग काफी उपयोग करते हैं।
स्वामी आगमानंद जी महाराज ने बताया कि जिस प्रकार बाल्मिकी रामायण (संस्कृत भाषा) को तुलसीदास ने रामचरितमानस (अवधी भाषा) के रूप में रूपांतरित किया है, उसी प्रकार दुर्गा सप्तशती का भी संस्कृत से अवधी में अनुवाद किया गया है। रामचरितमानस की तरह ही यह पढ़ने में आसान है। इसमें छंद, दोहा, सोरठा आदि उसी प्रकार हैं, जैसे रामचरितमानस में है। पढ़ने का लय भी उसी प्रकार है। इसे पाठ करने से भी वही फल प्राप्त होता है, जो दुर्गा सप्तशती पढ़ने से होता है।
108 दिनों में हुई है रचना
परमहंस स्वामी अगमानंद जी महाराज का वैष्णवनाम-स्वामी रामचन्द्राचार्य है। इसका पूर्वाश्रम नाम-रामचंद्र पांडेय 'रसिक' है। इनका आश्रम पचगछिया बाजार, नवगछिया भागलपुर में है। स्वामी अगमानंद जी महाराज ने कहा कि इस पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2021-02 में आया था। इसके बाद से इसके छह संस्करण का चुके हैं। इसकी रचना उन्होंने 108 दिनों में की है। यह कहें कि लगातार तीन वर्षों तक चारों नवरात्र के दौरान इसकी रचना की गई है। अर्थात एक वर्ष में 36 दिन इस ग्रंथ को लिपिबद्ध करने में लगा है। तीन वर्ष में 108 दिन यह लिपिबद्ध हुआ। यह पुस्तक पूरे देश में हर जगह पहुंच चुका है। इस पुस्तक के लिए स्वामी आगमानंद जी महाराज को लगातार शुभकानमाएं दी जा रही है। अब इस रचना को आडियो व वीडियो के रूप में भी रूपांतरित किया जा चुका है। शीघ्र ही लोगों के बीच श्रीदुर्गाचरितमानस का आडियो व वीडियो उपलब्ध होगा। डा. हिमांशु मोहन मिश्र 'दीपक' ने इसमें स्वर दिया है।