RSS नहीं मानता 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, अमृत महोत्सव का उद्घाटन करने भागलपुर पहुंचे प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक
अमृत महोत्सव समारोह का उद्घाटन करने प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजन रामशीष सिंह भागलपुर पहुंचे। तिमांविवि के बहुउद्देश्यीय प्रशाल में आयोजित इस समारोह में उन्होंने स्वतंत्रता से स्वाधीनता की ओर विषय पर व्याख्यान दिया। कहा कि भारत को स्वतंत्र करने के लिए हर वर्ग के लोगों की भूमिका रही।

ऑनलाइन डेस्क, भागलपुर। भारत की स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित अमृत महोत्सव समारोह की शुरूआत भागलपुर जिले में हुई। जिले भर में अमृत महोत्सव आयोजन समिति के तत्ववधान में अगस्त माह तक 100 स्थानों पर समारोह आयोजित करेगी। भागलपुर का पहला कार्यक्रम तिमांविवि के बहुउद्देश्यीय प्रशाल में आयोजित की गई। श्रीशिवशक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज की अध्यक्षता में यह समारोह हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक प्रज्ञा प्रवाह के पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के क्षेत्रीय संयोजक रामाशीष सिंह काशी (उत्तप्रदेश) से यहां आए हुए थे। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर विषय पर बोलते हुए रामाशीष सिंह ने कहा कि देश को स्वतंत्र कराने में हर वर्ग के लोगों का साथ रहा है। हर गांव से क्रांति की आवाज उठी है। संथाल वर्ग की अहम भूमिका रही। अंग्रेजों ने 20 हजार संथालियों को गोली मार दी। पूरा देश आंदोलित हो उठा। संन्यासियों ने जब आवाज उठायी तो 150 संतों पर अंग्रेजों ने एक साथ गोली चला दी। लाखों लोग स्वतंत्रता आंदोलन में बलिदान हुए।

बंकिम चंद्र चटर्जी ने आनंदमठ की रचना की। स्वाधीनता आंदोलन में इस पुस्तक की अहम भूमिका है। बंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन का नारा बन गया। बंदे मारतम सुनकर अंग्रेज कांप उठते थे। कवियों और साहित्यकारों की भी इस आंदोलन में अहम भूमिका रही।
रामाशीष सिंह ने कहा कि इतिहासकारों ने कई ऐसे प्रसंगों की जानकारी हमें नहीं दी, जो हमारे देश की दशा और दिशा में सहायक सिद्ध होती। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों ने हमें पढ़ाया कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह ही पहला स्वतंत्रता आंदोलन है, लेकिन यह सरासर झूठ है। क्रांतिकारी देश को स्वतंत्र करने काफी पहले से जुट गए थे। इतिहासकारों ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों को हमसे छुपाया है।

रामाशीष सिंह ने कहा कि देश का स्वाभिमान जगाने वाले हमारे ग्रंथ को झूठा बताया। रामायण, महाभारत जैसे प्ररेणादायी ग्रंथ को झूठी कहानी कहा। जबकि स्वतंत्रता की लड़ाई ने क्रांतिकारी गीता का अध्याय पढ़कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था हर भारतीय वेद की ओर लौटो।
रामाशीष सिंह ने कहा कि सनातन धर्म ही भारत की राष्ट्रीयता है, लेकिन देश जब स्वतंत्र हुआ उसी समय देश का विभाजन हो गया। यह भारत की अखंडता का बाधक है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे इस देश का प्राण धर्म है।
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पूर्व कुलपति प्रो डा नंद कुमार यादव इंदू ने कहा कि भारत फिर से अखंड होगा। कार्यक्रम संयोजक हरविंद नारायण भारती ने राष्ट्र की जयचेतना का गान बंदे मातरम गीत गाया। मंच पर आरएसएस के सह जिला संघचालक डॉ चंद्रशेखर साह भी मौजूद थे। मारवाड़ी महाविद्यालय के हिंदी विभाग के प्राेफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. ब्रज भूषण तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम में एक हजार लोगों ने हिस्सा लिया।

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