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कहां गुम हो गई चंपा : चंपा नदी के अस्तित्व के साक्षी हैं पुराण

चंपा का आध्‍यात्मिक और धार्मिक महत्‍व भी है। धार्मिक ग्रंथों में इस नदी का वर्णन मिलता है। उत्तर वैदिक काल के 16 महाजनपदों में एक महाजनपद अंग था। राजधानी वर्तमान में चंपानगर ही थी।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 01 Dec 2019 02:26 PM (IST)Updated: Sun, 01 Dec 2019 02:26 PM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा : चंपा नदी के अस्तित्व के साक्षी हैं पुराण
कहां गुम हो गई चंपा : चंपा नदी के अस्तित्व के साक्षी हैं पुराण

भागलपुर [डॉ. राजीव रंजन ठाकुर]। लोगों को जल देने वाली चंपा सिर्फ एक नदी भर नहीं है, इसका पौराणिक अतीत भी है। इस नदी के सामाजिक-आर्थिक मायने हैं और आस्था के साथ विश्वास भी। उत्तर वैदिक काल के 16 महाजनपदों में एक महाजनपद अंग था। इसकी राजधानी चंपा वर्तमान में भागलपुर का चंपानगर ही थी। वर्तमान के बिहार के मुंगेर, बांका और भागलपुर जिले इसमें आते थे।

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अंग क्षेत्र और चंपा के बारे में वाल्मीकि रामायण के बालकांड के नवम सर्ग के कई श्लोकों में वर्णन मिलता है। इसके अनुसार-काश्यापस्य च पुत्रो:स्ति विभाण्डक इति श्रुत:।

ऋ ष्य श्रृंग ति ख्यात: तस्य पुत्रो भविष्यति।। 1-9-20

अर्थात- महर्षि कश्यप के विभाण्डक नाम का एक पुत्र है और विभाण्डक का ही पुत्र श्रृंगी है।

एतस्मिन एव काले तु रोमपाद प्रतापवान। आडग़ेषु पथितो राजा भविद्वयति महाबन।। 1-9-7

तस्य व्यक्तिक्रमात राजो भविष्यति सुदारूणा।

अनावृष्टि सुघोरा वै सर्वलोक भयावहा।। 1-9-8

अर्थात-उस समय अंग देश में रोमपाद नामक बड़ा ही शक्तिशाली और प्रतापी राजा था। किसी कारण उनके द्वारा धर्म का उल्लंघन हो जाने के कारण सब लोग भयभीत हो गए। लंबे समय तक क्षेत्र में वर्षा नहीं हुई। इससे व्यथित राजा रोमपाद ने मंत्रियों से मंत्रणा की। यह कहा गया कि किसी तरह ऋ षी श्रृंगी को यहां लाया जाए। तभी समस्या का सामाधान हो सकता है। श्रृंगी ऋषि का आश्रम कोसी तट पर सनोखर के पास था। उस समय मधेपुरा का यह पूरा क्षेत्र अंगराज का अरण्य भाग कहलाता था। ऋ षी श्रृंगी यहां पधारे। उनका अंग की धरती पर शानदार स्वागत किया गया।

अंग की राजधानी मालिनी में प्रवास के दौरान ही श्रृंगी ऋषि के गहन पर्यवेक्षण में एक नहर का निर्माण हुआ, जिससे दक्षिण की नदियों की उफनती धारा को गंगा में मिलाने का मार्ग दिया गया। इसी के जल से इस क्षेत्र को नया जीवन मिला। रोमपाद के पौत्र चंप के नाम पर मालिनी का नाम चंपा हो गया और उसके बगल से श्रृंगी द्वारा निकाली गई नहर का नाम बाद में चंपानदी हो गया।

धार्मिक ग्रंथों में चंपा

-विष्णु पुराण के अनुसार पृथुलाक्ष के पुत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था-ततश्चंपो यशच्म्पां निवेश्यामास।

-हरिवंश पुराण और मत्स्य पुराण में कहा गया है- चंपस्य तु पुरी चंपा या मालिन्यभवत् पुरा। चंपा को चंपपुरी भी कहा गया है। इससे यह भी जानकारी मिलती है कि चंपा का पहला नाम मालिनी था और चंप नामक राजा ने उसे चंपा नाम दिया था।

-महाभारत के अनुसार-च्प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरीनथ। अंगेषु नरशार्दूल स राजाऽऽसीत् सपत्नजित्॥ पालयामास चम्पां च कर्ण: परबलार्दन:।

दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथाच्॥

अर्थात-जरासंध ने कर्ण को चंपा या मालिनी का राजा मान लिया था।

इसी में वर्णित एक आख्यान के अनुसार चंपा गंगा के तट पर बसी थी--चर्मण्वत्याश्च यमुनां ततो गंगा जगाम ह, गंगाया सूत विषयं चंपामनुययौ पुरीम्।

-प्राचीन कथाओं से सूचित होता है कि इस नगरी के चतुर्दिक चंपक वृक्षों की मालाकार पंक्तियां थीं। इस कारण इसे चंपमालिनी या केवल मालिनी कहते थे।

-चंपा के बारे में जातक-कथाओं और चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रावृतांत में भी उल्लेख है। इस क्षेत्र की समृद्धि तथा यहां के संपन्न व्यापारियों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। चंपा में कौशेय या रेशम का सुंदर कपड़ा बुना जाता था, जिसका दूर-दूर तक भारत से बाहर दक्षिणपूर्व एशिया के अनेक देशों तक व्यापार होता था। रेशमी कपड़े की बुनाई की यह परंपरा अभी भी बरकरार है।

चंपा का इतिहास

-16 महाजनपदों में से एक था चंपा, अंगुत्तर निकाय में है चर्चा

- 06ठी ईसा पूर्व में चंपा नगर में था सिक्कों का चलन, अन्य देशों से होता था व्यापार

- गौतम बुद्ध के काल में अंग और मगध के बीच शुरू हुआ था संघर्ष। पाली साहित्य के अनुसार कुछ समय के लिए अंग ने मगध को जीत लिया था।

- मगध सम्राट बिंबिसार ने अंगराज ब्रह्मदत्त को पराजित कर अंग को मगध राज्य में मिला लिया।


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