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    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: 1942 में 14 दिनों तक आजाद रहा था तारापुर, 34 युवाओं ने दी शहादत, लहराया तिरंगा, बनी समानांतर सरकार

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 09 Aug 2021 07:51 AM (IST)

    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1942 के आंदोलन को देखकर तारापुर से भाग गए थी अंग्रेजी हुकूमत। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जलियांवाला की तरह तारापुर गोलीकांड का है नाम। 34 युवाओं की शहादत के बाद थाना परिसर में फहराया गया था तिरंगा।

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    स्वतंत्रता आंदोलन में तारापुर में भी क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत।

    तारापुर (मुंगेर) [मनोज कुमार मिश्र]। अंग्रेजों से कई वर्षो तक चले संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। मुंगेर के तारापुर में देश की आजादी से पांच वर्ष पहले 1942 में जश्न मना था। 1942 में तारापुर 14 दिनों तक आजाद रहने वाला देश का पहला प्रखंड है। यहां अंग्रेजों के भगाने के बाद 14 दिनों तक कांग्रेसियों की समानांतर सरकार चली थी। तारापुर को देश में सबसे पहले आजादी हासिल करने की सूचना तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को मिली तो वह आग बबूला हो गए और ह्वेयर इज तारापुर व्हाय नाट द नेम आफ तारापुर डिवालिस फ्राम द मैप आफ द वल्र्ड (यह तारापुर कहां है? क्यों नहीं विश्व के नक्शे से तारापुर का नाम मिटा दिया जाय) का आदेश दिया था।

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    अखिल भारतीय कांग्रेस ने मुंबई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तब करो और मरो का नारा बुलंद किया था। इसके बाद पूरे देश में आंदोलन की आग सुलग उठी। कांग्रेसियों ने तारापुर में ब्रिटिश हुकूमत के समानांतर अपनी सरकार कायम कर ली थी। स्वतंत्रता सेनानी सह पूर्व विधायक स्व. जय मंगल ङ्क्षसह शास्त्री ने स्वहस्त लिखित पुस्तक आजादी काल की स्मृतियां में लिखा है कि गांधी जी का सत्याग्रह आंदोलन का दूसरा दौर 1942 में करो या मरो से शुरू हुआ। देश की परिस्थिति पर विचार करने के लिए मुंबई में कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई, वहीं पर इकट्ठे सभी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। राजेंद्र बाबू पटना में ही गिरफ्तार कर लिए गए। उसी समय तारापुर एवं खडग़पुर में किसान आंदोलन भी चल रहा था। पांच अगस्त 1942 को बनेली राज किसान सम्मेलन हुआ। आचार्य कृपलानी तथा अनुग्रह बाबू शामिल हुए। आंदोलन को सुचारू रूप से चलाने का प्रस्ताव पारित हुआ । आंदोलन ने जोर पकड़ा । जगह-जगह राज बनेली के कचहरी में भी आग लगा दी गई। सरकार परेशान हो गई। किसान आंदोलन भी करो या मरो आंदोलन में शामिल हो गया।

    ब्रिटिश हुकूमत ने हटाया था थाना

    तारापुर थाना को हटा दिया गया। इलाका थाना विहीन व शासनविहीन हो गया। जानकारी मिलते ही स्वतंत्रता सेनानियों ने थाना में आग लगा दी। शासन विहीन व थाना विहीन हो जाने से क्षेत्र में अराजकता फैल गई। चोरी डकैती के साथ-साथ स्त्रियों की इज्जत भी खतरे में पड़ गई। इलाके में असरगंज जलालाबाद हाई स्कूल को जेल बनाया गया। तारापुर कांग्रेस ऑफिस एवं संग्रामपुर में कैंप कायम किए गए। इन्हीं तीनों कैंपों से कांग्रेस के आज्ञानुसार काम प्रारंभ हुआ । चार बदमाशों को सजा मिली । जिस की खबर फैलते ही शांति कायम हो गया । जन समर्थन भी समानांतर सरकार को मिली। 15 से 28 अगस्त 1942 तक समानांतर सरकार चली थी। एक महीने के बाद तारापुर थाना में पुलिस आई ।

    बड़ा बलिदान था तारापुर गोलीकांड

    15 फरवरी 1932 को अंग्रेजों के थाना पर तिरंगा फहराने के लिए देश भक्तों ने सीने पर गोलियां खाई। सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े थे। अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर वंदे मातरम भारत माता की जय नारों की गूंज लिए हंसते-हंसते गोलियां खाई थी। देशभक्त पहले से लाठी गोली खाने को तैयार होकर घर से निकले थे। 34 सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया था। पंडित नेहरू ने भी 1942 में तारापुर की एक यात्रा पर 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख किया था। अमर शहीदों की स्मृति में तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था। आजादी से पूर्व तक अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा हर 15 फरवरी 1932 को तारापुर दिवस मनाया जाता था।