भारतीय स्वतंत्रता संग्राम : नील की खेती नहीं करने पर किसानों को दी जाती थी यातना
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम बांका के चांदन प्रखंड में स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान है। स्वतंत्रता सेनानियों की याद में गांधी चौक पर स्थापित है स्मारक। विरोध में नील के बीज को उबालकर बोते थे किसान। अंग्रेजों ने काफी यातना दी है।

आमोद दुबे, चांदन (बांका)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम : आजादी की लड़ाई में अंग्रजों के दांत खट्टे करने में जिले के चांदन प्रखंड में कई स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान है। यहां महात्मा गांधी से लेकर विनोबा भावे तक आकर रुके थे। आजादी के दीवानों और अग्रेजों की क्रूरता की कहानी बिरनिया पंचायत की नीलकोठी बयान कर रही है।
बुजुर्ग बताते हैं कि किसानों को नील की खेती करने पर मजबूर किया जाता था। महात्मा गांधी और विनोबा भावे द्वारा प्रेरित करने पर किसानों ने नील की खेती करने से मना कर दिया। कई किसानों पर इसके बाद काफी जुल्म किया गया।
बुजुर्ग उमेशचंद पांडेय बताते हैं कि अंग्रेज अपनी दुकान से किसानों को नील खरीदने पर मजबूर करते थे। उपज होने पर कम कीमत देकर नील खरीदकर इंग्लैंड भेजा जाता था। बाद में महात्मा गांधी और विनोबा भावे द्वारा प्रेरित करने पर किसानों ने नील की खेती करने से मना कर दिया। इस कारण कई किसानों पर जुल्म भी ढाए गए। इससे बचने के लिए किसानों ने एक जुगत निकाली। वृद्ध लालमोहन पांडेय, भागवत पांडेय, जयराम सोरेन और बासुदेव राय बताते हैं कि नील से निजात पाने के लिए किसान अंग्रेजों से मिले नील के बीजों को उबालकर बोते थे।
इसके बाद नील की पैदावार ठप हो गई। तब अग्रेजों ने इनसे नील की खेती करानी बंद कर दी। इन सेनानियों में सबसे आगे रहने वाले काशीनाथ मालवीय को अंग्रेजों द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन वे जेल से भाग निकले थे। देश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें क्षमा कर दिया गया। काशीनाथ मालवीय के अलावा ईश्वरचंद्र दुबे, विष्णुलाल मोदी, ब्रजकिशोर प्रसाद, हरिकिशोर प्रसाद, मथुरानाथ पांडेय, सुखु मांझी, शंकर पांडेय, देवी पांडेय, नरङ्क्षसह राय, श्यामला राय सहित अन्य सेनानियों का स्मारक बांका में है। यहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को गांधी चौक पर स्थित स्मारक पर फूल चढ़ा कर बलिदानियों को याद किया जाता है।
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