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    Bihar News: बिहार में 59 उत्पादों को मिल सकता है GI TAG, लिट्टी-चोखा के अलावा इन प्रोडक्टों की सामने आई लिस्ट

    बिहार कृषि विश्वविद्यालय राज्य के 59 उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की तैयारी में है। जर्दालू आम कतरनी चावल मिथिला मखाना जैसे पांच उत्पादों को पहले ही यह टैग मिल चुका है। जीआई टैग मिलने से इन उत्पादों की कीमत बढ़ी है और किसानों को लाभ हो रहा है। विश्वविद्यालय का लक्ष्य है कि बिहार की विरासत को राष्ट्रीय पहचान मिले और किसान अपनी धरोहर से आय प्राप्त कर सकें।

    By Hirshikesh Tiwari Edited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 20 Apr 2025 03:27 PM (IST)
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    उत्पादों को पहचान, लिट्टी-चोखा के साथ सत्तू भी चढ़ेगा परवान

    ललन तिवारी, भागलपुर। बाहर के लोग समझते हैं कि बिहारी जब भी टिफिन बाक्स खोलेगा, उससे लिट्टी-चोखा निकलेगा। बिहार की इस पहचान के साथ 59 उत्पादों को जीआइ दिलवाने की बीएयू की तैयारी है।

    इससे पूर्व पांच उत्पादों जर्दालू आम, कतरनी चावल, मिथिला मखाना, शाही लीची और मगही पान को जीआइ टैग  मिल चुका है।

    बीएयू का मानना है कि जो चीजें मुख्य रूप से बिहार की पहचान हैं, उनमें सत्तू से लेकर अन्य कई चीजें हैं। विडंबना यह है कि उन उत्पादों से जुड़े लोगों को कोई लाभ नहीं हो पाता था।

    अब जीआइ के मंच पर आने के बाद मखाना की कीमत काफी बढ़ी है। देश-विदेश तक इसके विभिन्न उत्पाद भेजे जा रहे हैं।

    जर्दालू आम, कतरनी चावल, शाही लीची आदि पूरे बिहार के लोगों को भी चखने को नहीं मिल पाती, कारण इनकी इतनी अधिक मांग है। अब जीआइ टैग के सहारे 59 अन्य उत्पादों को भी देश-दुनिया के सामने लाने की तैयारी है।

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    बीएयू के कुलपति डा. दुनियाराम सिंह का मानना है कि प्रदेश की विरासत का विस्तार होना चाहिए। इसी सोच के साथ बीएयू उत्पादों को जीआइ टैग के लिए चयनित कर रहा है।

    बिहार की विरासत को अब राष्ट्रीय पहचान मिलने लगी है। बिहार के महज पांच उत्पाद को अब तक जहां जीआइ  मिली है वहीं अब इसकी तेज रफ्तार हो गई है।

    जीआइ पर बीएयू की टीम कर रही काम

    बिहार कृषि विश्वविद्यालय में नवार्ड के आर्थिक  सहयोग से जीआइ  फैसिलिटी सेंटर खोला गया है। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. सिंह के नेतृत्व में वरीय विज्ञानियों की टीम काम करती है।

    इसका मूल उद्देश्य विरासत में मिले बिहार के खास उत्पाद जो अंधेरों में गुम हो गया है समय की मोटी धूल की परत उस पर बैठ गई है, उसे खोज कर निकालना उसे चिन्हित करना और उसे उत्पादन के हकदार का समूह बनाना है। 

    उसके बाद उत्पाद को राष्ट्रीय स्तर पर एकाधिकार के रूप में पहचान बनाने के लिए निर्धारित मापदंड के नियमों के अनुसार उस उत्पाद की खास जगह की प्रमाणिकता के साथ जरूरत के सारे कागजात लेकर फाइल बनाई जाती है।

    उसे फिर जीआइ कार्यालय रजिस्टर्ड के लिए भेजा जाता है। किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं रहने की स्थिति में जीआइ उस उत्पादन का मिलती है।

    क्या है प्रगति

    विश्वविद्यालय ने कृषि से जुड़े बिहार के उत्पाद कतरनी धान ,मगही पान, जर्दालू आम, शाही लीची, मिथिला मखाना सहित पांच उत्पाद को जीआइ प्राप्त कराने में सफल रहा है।

    पिछले वर्ष से एक उच्च स्तरीय टीम गठित होने से तेज गति से जी  आई पर काम हो रहा है। इस संदर्भ में टीम लीडर डॉ. ए.के. सिंह कहते हैं की बिहार की समृद्ध विरासत के 59 उत्पाद को चिह्नित कर उस पर काम किया जा रहा है।

    दर्जन भर उत्पाद को जीआई कार्यालय के लिए अपलोड कर दिया गया है और एक दर्जन उत्पाद अपलोड करने के लिए प्रक्रिया किया जा रहा है जो अंतिम चरण में है। नेक्स्ट फेज में 30 उत्पाद को जीआइ लेने की कतार में खड़ी की जाएगी।

    दिख रहा असर

    विरासत  से व्यापार करने की  दिशा में एक हजार से ज्यादा यूजर की संख्या हो गई है और लोग बड़े बाजार सहित देश-विदेश में व्यापार आरंभ कर दिए हैं।

    इसी कड़ी में आकर्षक छोटे पैकेज में भागलपुर जर्दालू आम के यूजर ने विदेश में बेचकर पिछले वर्ष बेहतर आय प्राप्त किया। वहीं भागलपुर कतरनी चावल भी कई बड़े बाजारों में बेची जा रही है।

    मखाना का तो सबसे ज्यादा विदेश में ही डिमांड है जहां की यूजर भेजना आरंभ कर दिए हैं। इस तरह पूर्वजों की धरोहर मखाना  जर्दालू आम, कतरनी चावल का व्यापार आरंभ हो गया है। अर्थात विरासत से व्यापार शुरू हो गया है।

    क्या है सोच

    आने वाले समय में जीआइ टूरिज्म विकसित किया जाएगा। एक जिला का कम से कम एक जीआइ उत्पाद होगा।  जीआइ यूजर प्रदेश में बड़ी संख्या में होगा।

    प्रदेश के विरासत पर एकाधिकार और विस्तार हो जिससे यहां के किसान पूर्वजों की धरोहर से आय प्राप्त कर सकें। इसके लिए जीआइ मिलना जरूरी है। इसी सोच के साथ विश्वविद्यालय जीआइ मिलने के लिए ठोस, मुकम्मल और सुव्यवस्थित काम कर रहा है। बहुत जल्द बेहतर परिणाम धरातल पर दिखेंगे।-डॉ. डीआर सिंह कुलपति बीएयू सबौर

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