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    भागलपुर : साहब मूड खराब है... जल्‍दी दो पीस मछली पहुंचा तो, खाते ही सारा गुस्‍सा हो जाता है शांत

    By Sanjay SinghEdited By: Dilip Kumar shukla
    Updated: Mon, 28 Nov 2022 12:34 PM (IST)

    भागलपुर में एक साहब की खूब चर्चा हो रही है। साहब मछली खाने के शौकीन हैं। बस उन्‍हें जानकारी मिलनी चाहिए कि मछली कहां बना है वे पहुंच जाएंगे। जैसे ही उनके अधीनस्‍थ कर्मचारियों को पता चलता है साहब का मूड खराब है मछली मंगवा कर उन्‍हें खिला देते हैं।

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    साहब को बस दो पीस मछली चाहिए।

    भागलपुर। दो पीस मछली : कुछ आदतें लोगों को मशहूर बना देती है। बदन पर वर्दी और चेहरे पर रौब साहब की पहचान है, लेकिन साहब के मछली खाने के शौक ने उन्हें मशहूर कर दिया है। साहब दो पीस मछली खाते हैं। वे भी बड़े चाव से। मछली के टेस्ट के लिए कभी इस होटल, तो कभी उस होटल का चक्कर भी लगाते हैं। किसी होटल में बढ़िया मछली बनने की खबर मिलते ही साहब पहुंच जाते हैं। पहुंचते ही दो पीस मछली का आर्डर कर देते हैं। सबसे खास बात यह है कि मछली इस तरह से खाते हैं कि देखने वाले भी वाह-वाह कर उठते हैं। वर्दी पहनने के बाद भी बिना पैसे दिए, वे मछली नहीं खाते हैं। ऐसे में होटल संचालक भी उनकी खूब आवभगत करते हैं। साहब को जानने वाले अब उनका मूड खराब देखते ही दो पीस मछली का आफर कर देते हैं।

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    निरीक्षण एक रिपोर्ट चार

    शिक्षा विभाग के अधिकारी इन दिनों काफी परेशान हैं। परेशानी की वजह भी वाजिब है। शिक्षा विभाग, प्रमंडलीय आयुक्त और डीएम ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को नियमित विद्यालयों के निरीक्षण का टास्क सौंप रखा है। शिक्षा विभाग की ओर से विद्यालयों के निरीक्षण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, तो प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा भी। ऐसे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों का इस सर्दी में भी पसीना छूट रहा है। निरीक्षण की एक रिपोर्ट बेस्ट एप के माध्यम से शिक्षा विभाग के मुख्यालय को भेजनी है। दूसरी रिपोर्ट प्रमंडलीय आयुक्त, तीसरी रिपोर्ट डीएम और चौथी रिपोर्ट जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय को भेजनी पड़ रही है। निरीक्षण प्रतिवेदन की भी समीक्षा होती है। निरीक्षण प्रतिवेदन के आधार पर वरीय अधिकारी विद्यालयों का निरीक्षण करते हैं। अब अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि एक निरीक्षण की चार रिपोर्ट में से कहां कौन मामला फंस जाए।

    तन्हा-तन्हा जीना ये भी कोई बात है

    फ्रेंच कट दाढ़ी वाले साहब कहानी सुनाने के शौकीन हैं। इन दिनों वे हर आने वालों से अपनी तन्हाई की कहानी सुना रहे हैं। कहानी के साथ गीत भी... तन्हा तन्हा जीना ये भी कोई बात है। साहब कहते हैं- परिवार को कभी अपने साथ नहीं रखा। जहां भी रहे, वहीं के लोगों को अपना बनाने की कोशिश की। लोगों को प्यार देता हूं, बदले में लोगों का प्यार लेता हूं। अब नौकरी के चंद दिन बचे हैं। रिटायरमेंट के बाद पत्नी बच्चों के संग शेष जीवन व्यतीत करूंगा। तन्हा तन्हा जीना ये भी कोई बात है। खैर, साहब के कार्यालय में काम करने वाले बताते हैं कि जब कार्यालय के कर्मी शाम में अपने-अपने घर जाने लगते हैं, तब साहब की तन्हाई की पीड़ा सामने आने लगती है। कर्मियों को भी अपने तन्हाई की कहानी सुनाने से बाज नहीं आते हैं।

    सिर से हटी छतरी

    एक कार्यालय के कर्मी परेशान हैं। परेशानी की वजह यह है कि साहब का स्थानांतरण दूसरे जिला में हो गया है। साहब के कार्यकाल में कार्यालय कर्मियों की खूब चलती थी। किसी से सीधे मुंह बात तक नहीं करते थे। किसी को भी किसी बात पर झिड़क देते थे। साथ ही टका सा जवाब भी- जहां जाना हो जाओ। कर्मियों को इस बात का भरोसा था कि साहब के रहते कोई कुछ नहीं कर सकता है। अब जब साहब का स्थानांतरण हो गया है, तो ऐसे कर्मियों के सुर भी बदल गए हैं। अब वे कार्यालय आने वालों से बड़े ही नरमी से पेश आते हैं। एक कर्मी ने इस बदलाव की वजह बताते हुए कहा- सर से छतरी हट गई है। बचाने वाले साहब अब रहे नहीं। अब कोई शिकायत लेकर ऊपर चला गया, तो कार्रवाई तय है। ऐसे में बस अब प्रभु का ही सहारा है।