Bhagalpur: प्रशासन की लापरवाही से सरकारी खजाने को 101 करोड़ का लगा चूना, बड़ा रोचक है मामला
प्रशासन की लापरवाही से सरकारी खजाने को 101 करोड़ का चुना लगा है। समय पर मुआवजा नहीं देने के चलते सात लाख की जमीन की कीमत बढ़कर सौ करोड़ हो गई। ऐसे में मामले की जांच के लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने जांच के लिए चार सदस्यीय टीम गठित की। क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक को कमेटी के अध्यक्ष बनाया गया है।

नवनीत मिश्र, भागलपुर: प्रशासन की लापरवाही से सरकारी खजाने को 101 करोड़ का चुना लगा है। समय पर मुआवजा नहीं देने के चलते सात लाख की जमीन की कीमत बढ़कर सौ करोड़ हो गई। ऐसे में मामले की जांच के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने जांच के लिए चार सदस्यीय टीम गठित की। क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक को कमेटी के अध्यक्ष बनाया गया है।
वन संरक्षक अनुश्रवण एवं मूल्यांकन के गणेश कुमार, पर्यावरण विभाग के संयुक्त सचिव धीरेंद्र पासवान व समाहर्ता भागलपुर के प्रतिनिधि जिला भू-अर्जन पदाधिकारी कमेटी का सदस्य बनाया गया है। कमेटी को जल्द से जल्द जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। वन संरक्षक सह अपर सचिव सुधीर कुमार ने इस बाबत पत्र जारी किया है।
क्या है पूरा मामला
जानकारी के मुताबिक, पर्यावरण विभाग पटना के क्षेत्रीय कार्यालय एवं आवास के लिए भागलपुर शहर में 23 एकड़ जमीन की अधिग्रहण की कार्रवाई 1981 में प्रारंभ हुई थी। उस वक्त उस जमीन की प्राक्कलित राशि 7.5 लाख रुपये थी। विभाग की ओर से उक्त राशि जिला प्रशासन को उपलब्ध करा दी थी।
1981 में जमीन का हुआ था अधिग्रहण
उक्त जमीन को 1981 में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया, लेकिन अवार्ड की राशि भूधारी को समाहर्ता भागलपुर द्वारा भुगतान नहीं किया गया।
समाहर्ता द्वारा 2005 में 1981 के भू-अर्जन की कार्रवाई के तहत नया अवार्ड लगभग 75.67 लाख रुपये घोषित किया गया। इसे लेकर राशि भी वन विभाग द्वारा उपलब्ध करा दी गई। राशि जिला प्रशासन भूधारी को ड्राफ्ट के माध्यम से भेजी गई, लेकिन चेक पर भूधारी का नाम गलत लिखा हुआ था। जिसके कारण भुगतान नहीं हुआ।
वन विभाग के पक्ष में आया था फैसला
बाद में मामले को लेकर 2004 में विभाग, भूधारी एवं एक अन्य लोकहित के द्वारा पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया गया था। तीनों की याचिका पर समेकित सुनवाई हुई। फिर एक अक्टूबर 2010 को आदेश पारित किया गया, जो वन विभाग के पक्ष में था।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
इसके विरुद्ध भूधारी द्वारा सर्वोच्य न्यायालय में सिविल अपील 2011 में दायर की गई। कोर्ट ने 17 अगस्त 2015 में भूधारी के पक्ष में आदेश पारित किया। इसके बाद राज्य सरकार द्वारा रिव्यू पीटिशन दाखिल किया गया। उच्चतम न्यायालय ने सात नवंबर 2019 को राज्य सरकार द्वारा दायर रिव्यू पीटिशन खारिज कर दिया गया।
इसके आलोक में पुन: जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई प्रारंभ की गई, जिसमें 101 करोड़ 51 लाख 74 हजार 434 रुपये का अवार्ड स्वीकृत हुआ और भूधारी को लगभग 99 करोड़ का भुगतान कर दिया गया है। यह भू-अर्जन कार्रवाई 1981 में प्रारंभ हुई थी और पूर्ण करने में 40 वर्ष का समय लग गया। भू-अर्जन की कार्रवाई पूर्ण करने में 40 वर्षों का समय क्यों लगा, की जांच कराने का विभाग ने निर्णय लिया है।
प्रशासन पर उठ रहे सवाल
1981 में प्रारंभ किए गए अधिग्रहण की कार्रवाई क्यों नहीं पूर्ण की जा सकी एवं राशि उपलब्ध होते हुए भी भूधारी को क्यों नहीं भुगतान हुआ। इसके लिए जवाबदेह कौन है। इसके बाद 2015 व 2019 व अंतिम रूप से 2020 में भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई प्रारंभ की गई, तब उसमें क्या भूमि के वर्गीकरण में कोई परिवर्तन किया गया।
मामले की गंभीरता से होगी जांच
इसकी जांच होगी। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा दोबारा लगभग 75 लाख की राशि 2005 में तैयार किए गए। अवार्ड के आलोक में उपलब्ध कराई गई थी। 1981 से 2020 तक के पूरे घटनाक्रम की जांच करते हुए उसमें किसी भी स्तर से लापरवाही स्पष्ट होती है, तो उत्तरदायित्व का निर्धारण करें।
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