आपको मालूम है भगवान विष्णु के दस अवतारों में शुकर अवतार किस जगह से जुड़ा है, यहां होगा कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा को नेपाल के वराह क्षेत्र में लगने वाले मेले में पहुंचते हैं कोसी-सीमांचल के हजारों श्रद्धालु। यहां कहा जाता है कि यह इलाका भगवान विष्णु के शुकर अवतार से जुड़ा है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशेष आयोजन किया जाता है।

संवाद सूत्र, सिकटी (अररिया)। भारत और नेपाल दो देशों के बीच सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ता सदियों पुराना रहा है। खासकर भगवान विष्णु का वराह मंदिर दो देशों को हीं नहीं बल्कि दो दिलों को भी जोड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बराह क्षेत्र में लगने वाले इस मेले में हर वर्ष भारत से हजारों लोग पहुंचते हैं एवं भगवान विष्णु का दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं। लोगों में ऐसा मानना है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर इस क्षेत्र के कोसी में स्नान के पश्चात वराह भगवान की पूजा अर्चना व दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वराह क्षेत्र में बहने वाली कोसी नदी हिमालय से नीचे उतरती है और भारत के वीरपुर पहुंचकर कोसी बेराज में सम्मिलित हो जाती है। चतरा से छह किलोमीटर पैदल दूरी तय कर श्रद्धालु बाराह क्षेत्र में पहुंचते हैं। भगवान विष्णु के दस अवतारों मीन, कच्छप, शुकर (वराह), नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध औऱ कल्कि में तीसरा अवतार अर्थात शुकर नेपाल के वराह क्षेत्र में विराजमान है। रोटी बेटी का सम्बंध रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल भौगोलिक ²ष्टि के जरिए एक दूसरे के करीब है हीं साथ हीं अध्यात्म के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़ा है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आदिकाल में हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से सारे जीव त्राहिमाम कर रहे थे। यहां तक कि वह पृथ्वी को भी पाताल लोक में छिपा रखा था। सारे देवी -देवताओं ने भगवान विष्णु से पृथ्वी को बचाने की याचना की। देवताओं की विनती पर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का संहार किया औऱ पृथ्वी को बाहर निकाला। वराह रूप होने के कारण उस स्थान का नाम वराह क्षेत्र पड़ा। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी कोशी नदी का जल भरकर भगवान वराह को अर्पित करता है वह पुण्य का भागी बनता है और उसे देवलोक की प्राप्ति होती है।
कुर्साकांटा से 80 किमी की दूरी पर है वराह क्षेत्र
कुर्साकांटा तथा सिकटी प्रखंड से लगभग 80 किमी दूर कोशी नदी के तलहटी में स्थित भगवान विष्णु का वराह मंदिर है। इस क्षेत्र के लोग नेपाल के बार्डर क्षेत्र बेतौना के रास्ते विराटनगर होते हुए चतरागद्दी पहुंचते हैं। चतरागद्दी में 10-12 बजे तक लोगों का जमावड़ा़ होता है। मध्य रात्रि के बाद से लोग मंदिर जाने के लिए प्रस्थान करते है। वहाँ से छह किमी दूर पहाडिय़ों का रास्ता तय कर पहुंचना होता है। रास्ते भर वराह क्षेत्र कि प्राकृतिक छटा, लोगों का रहन -सहन, बोलचाल आदि को नजदीक से जानने का मौका मिलता है।
निकटता मिटा देती है भाषा की विविधताएं
लगातार वराह क्षेत्र जाने वाले दीपक केशरी, चंदन यादव, भोला साह, सरदार गोरख सिंह , पवन साह, ठेंगापुर से बिनोद कुमार मंडल, करण सिंंह, विनोद चौधरी, कुर्साकांटा से पप्पू गुप्ता, अरविंद मंडल, चितरंजन कुमार यादव, पंकज साह, अमित साह, अभय केशरी, आलोक गुप्ता, जितेंद्र गुप्ता, राजू गुप्ता बताते हैं कि नेपाल पहुंचने पर वहां की टूटी-फूटी भाषा बोलने लगते हैं। नेपाली समझ में भी आती है। यही कारण है कि भीतरी इलाकों में भी भारतीय लोगों को कोई परेशानी नहीं होतीं। सीमा से सटे भारतीय क्षेत्र के लोगों को दैनिक कार्य के लिए भी नेपाल आना जाना लगा होता है। अब तो नेपाल के लोग भी हिंदी भाषा फर्राटे के साथ बोलते हैं। वराह मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन न केवल नेपाल के धर्मावलंबी बल्कि भारत के लाखों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं।
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