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    30 साल का हुआ मंझौल अनुमंडल, नहीं हुआ अपेक्षित विकास

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 31 Mar 2021 09:59 PM (IST)

    बेगूसराय बिहार राज्य का ऐसा अनुमंडल जहां न तो प्रखंड कार्यालय है न थाना। अनुमंडल मुख्यालय

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    30 साल का हुआ मंझौल अनुमंडल, नहीं हुआ अपेक्षित विकास

    बेगूसराय : बिहार राज्य का ऐसा अनुमंडल जहां न तो प्रखंड कार्यालय है न थाना। अनुमंडल मुख्यालय की सुरक्षा व्यवस्था ओपी पर टिकी हुई है। सुनहरे अतीत और स्याह भविष्य के बीच मंझौल के अनुमंडल बने 30 वर्ष पूरे हो गए। परंतु अनुमंडल क्षेत्र का यहां अपेक्षित विकास नहीं हो सका है।

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    बताते चलें कि एक अप्रैल 1991 को बेगूसराय सदर अनुमंडल से काटकर बखरी, चेरिया बरियारपुर एवं खोदावंदपुर प्रखंड के साथ मंझौल अनुमंडल बनाया गया। बिहार के तत्कालीन सीएम लालू यादव के कार्यकाल में बना मंझौल अनुमंडल का मुख्यालय मंझौल पंचायत को बनाया गया। बाद में मंझौल अनुमंडल से अलग होकर बखरी अनुमंडल का निर्माण हुआ। वर्तमान मंझौल में चेरिया बरियारपुर, खोदावंदपुर एवं छौड़ाही प्रखंड शामिल है। मंझौल के अनुमंडल बने 30 साल होने के बाद भी नगर निकाय, थाना, प्रखंड, अंचल, अग्निशमन कार्यालय नसीब नहीं हो पाया है। वहीं बीते विस चुनाव से पहले ही रजिस्ट्री कार्यालय की घोषणा हुई, परंतु अबतक धरातल पर रजिस्ट्री कार्यालय का भी कोई अता पता नहीं है। क्षेत्र युवाओं की असीमित प्रतिभा है, जिसको निखारने के लिए खेल स्टेडियम की सख्त जरूरत है। मंझौल में बिजली का सब स्टेशन है। अनुमंडल क्षेत्र में बिजली भी भरपूर रहती है, मगर क्षेत्र की जनता का एक बड़ा तबका विगत सालों में विभागीय लापरवाही का खामियाजा गलत बिल चुका कर भुगत रहे हैं।

    मंझौल अनुमंडल मुख्यालय में चौतरफा है अतिक्रमण

    बताते चलें कि बढ़ती आबादी और सीमित संसाधनों में बेहतर प्रशासन के अभाव में 21वीं सदी के शुरू से ही मंझौल में धीरे-धीरे अतिक्रमण अपना पैर पसारना शुरू कर चुका था। परंतु, कार्रवाई के अभाव में एसएच 55, बस स्टैंड, शहीद मेजर मुकेश भवन, अनुमंडलीय अस्पताल परिसर, रेफरल अस्पताल, मोइन, सत्यारा चौक स्थित बापू गोलंबर के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है।

    किसान और सरकार के बीच फंस गया है पर्यटन का विकास

    मंझौल अनुमंडल में बिहार का एकमात्र रामसर साइट कावर झील पक्षी बिहार स्थित है। कई दशक पहले ही इसे पक्षी बिहार का दर्जा दिया गया। आशा के अनुरूप अबतक इसके विकास की दिशा में सार्थक पहल नहीं किया गया है। मंझौल में स्थित बौद्ध स्तूप, कावर झील पक्षी बिहार, जयमंगलागढ़ आदि के विकास की दिशा में कदम नहीं उठाए गए। मछुआरों के लिए मछली पालन की परियोजना अधर में लटकी हुई है।

    स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थित लचर

    मंझौल अनुमंडल उत्तरी बेगूसराय का जंक्शन है। उत्तरी बेगूसराय में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बेहद खराब है। कई बार तो मरीज बेगूसराय जाते-जाते रास्ते में ही दम तोड़ देता है। अनुमंडल बनने के साथ ही मंझौल में रेफरल अस्पताल भी बनाया गया जो अब पूर्णत: जर्जर हो चुका है। इधर डेढ़ दशक से निर्माणाधीन अनुमंडलीय अस्पताल लोगों के लिए वरदान कम अभिशाप ज्यादा साबित हो रहा है। वर्तमान में अनुमंडल मुख्यालय की आबादी करीब एक लाख हो चुकी है। यहां लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हैं। संपूर्ण अनुमंडल मुख्यालय में कई जगहों पर कचरे का ढेर जमा हो गया है।

    रेल लाइन की नहीं है पहुंच

    बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रामजीवन सिंह कहते हैं कि जनता की मांग और बहुत दिनों से इच्छा थी कि मंझौल अनुमंडल बने जब सरकार में गया तो मंझौल को अनुमंडल का दर्जा दिलवाया। रेल लाइन की बात पूछने पर उन्होंने कहा कि जब मंझौल अनुमंडल का निर्माण हुआ तब रेललाइन अनुमंडल में था। परंतु, बखरी के अलग होते ही मंझौल रेल के नक्शे से अलग हो गया। रेल मंत्री ललित बाबू, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी सभी को बरौनी से हसनपुर के लिए रेललाइन बिछाने के लिए पत्र भी लिखा। ललित बाबू ने अपने समय में क्षेत्र में रेललाइन के लिए विभाग को टोह लेने का आदेश दिया था। बाद में रामविलास पासवान के समय में विभाग से सर्वे कराने के लिए एक लाख रुपये भी जारी हुए। लंबे अंतराल के बाद अब बरौनी-गढ़पुरा रेलखंड की चर्चा शुरू हुई है।

    डिजिटल जमाना आने से पहले मंझौल हो चुका था डिजिटल

    मंझौल के अनुमंडल बनने के बाद लगातार कई सारे विकास के कार्य हुए। इसी कड़ी में 2000 में मंझौल में बीएसएनएल का टेलीफोन एक्सचेंज बनाया गया। आसपड़ोस के दर्जनों गांवों तक लैंडलाइन फोन और इंटरनेट पहुंच गया। बाद में बीएसएनएल का मोबाइल टावर भी लगाया गया। परंतु, विभागीय लापरवाही के चलते टेलीफोन एक्सचेंज भी जर्जर और मृतप्राय अवस्था में पहुंच गया है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार की है जरूरत है

    मंझौल अनुमंडल बनने से पहले ही यहां शिक्षा व्यवस्था काफी सु²ढ थी। डिग्री कॉलेज, महिला कॉलेज, हाई स्कूल, इंटर कॉलेज आदि शिक्षण संस्थान मौजूद थे। अनुमंडल बनने के 30 साल बाद महिला कॉलेज का अस्तित्व खत्म हो गया। आरडीपी ग‌र्ल्स और जयमंगला इंटर स्कूल जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। आरसीएस कॉलेज में भी पीजी की पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी है। इस दिशा में भी पहल की जरूरत है।