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    Bihar Politics: कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टी से बने चार-चार विधायक, यहां भाजपा के लिए अबतक दरवाजा बंद

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 06:54 PM (IST)

    चेरिया बरियारपुर विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास दिलचस्प रहा है जहाँ कांग्रेस सोशलिस्ट जनता दल राजद लोजपा जदयू और कम्युनिस्ट पार्टियों को मौका मिला। यहाँ से कई नेता मंत्री पद तक पहुंचे हैं। 2020 में राजद उम्मीदवार राजवंशी महतो ने जीत हासिल की। अब भाजपा 2025 के चुनाव में यहाँ अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।

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    कांग्रेस व सोशलिस्ट पार्टी से चार-चार बने विधायक, भाजपा के लिए अबतक बंद दरवाजा

    बलबंत चौधरी, छौड़ाही (बेगूसराय)। चेरिया बरियारपुर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से बेहद रोचक इतिहास रखता है। अपने समय में राजनीति समीकरण को प्रभावित करने की हैसियत रखने वाले सोशलिस्ट स्व. राम नारायण चौधरी, कांग्रेसी स्व. हरिहर महतो, कम्युनिस्ट स्व. सुखदेव महतो व समाजवादी रामजीवन सिंह यहां से विधायक रहे हैं।

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    वर्ष 1952 से लेकर 2020 तक हुए चुनावों में यहां जनता ने कांग्रेस, सोशलिस्ट, जनता दल, राजद, लोजपा, जदयू और कम्युनिस्ट तक को मौका दिया, लेकिन अबतक भाजपा को जनता ने यहां से प्रवेश नहीं करने दिया। क्योंकि पहले भाजपा के प्रत्याशी चुनाव जीत नहीं पाए।  इधर, तीन बार से विधानसभा सीट भी सहयोगी दल के कोटे में जा रही है।

    सबसे ज्यादा मंत्री देने वाला विधानसभा:

    इस क्षेत्र से जीते स्व. हरिहर महतो, रामजीवन सिंह, अशोक महतो और कुमारी मंजू वर्मा मंत्री पद तक पहुंचे। बेगूसराय जिले में सबसे ज्यादा मंत्री पद देने का रिकार्ड भी चेरिया बरियारपुर के नाम है। रामजीवन सिंह ने पांच बार और हरिहर महतो ने चार बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

    दिग्गजों का बना अखाड़ा:

    पहले चुनाव 1952 में प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी के रामनारायण चौधरी ने कांग्रेस नेता हरिहर महतो को हराकर इतिहास रचा। लेकिन 1957 और 1962 में हरिहर महतो ने वापसी कर जीत दर्ज की। इसके बाद 1967, 69 और 1972 में रामजीवन सिंह ने लगातार जीत दर्ज कर हैट्रिक बनाई।

    जेपी लहर के बावजूद 1977 में हरिहर महतो ने कांग्रेस का परचम लहरा वापसी की। 1980 में सीपीआइ नेता स्व. सुखदेव महतो विजयी हुए, लेकिन 1985 में हरिहर महतो ने पुनः कब्जा जमाया। 1990 और 1995 में जनता दल से रामजीवन सिंह विधायक बने और कैबिनेट मंत्री पद तक पहुंचे।

    कां टे के मुकाबले और उलटफेर:

    2000 में राजद के अशोक महतो भारी मतों से विजयी हुए। 2005 में लोजपा के अनिल चौधरी ने लगातार दो चुनाव दो हजार से कम वोट से जीतकर अपनी पहचान बनाई लेकिन 2010 में मात्र 1061 वोट से जदयू की मंजू वर्मा से हार गए।

    2015 में महागठबंधन की लहर में मंजू वर्मा 29 हजार से अधिक मतों से दोबारा विधायक बनीं। 2020 में लोजपा ने जदयू का खेल बिगाड़ दिया और राजद उम्मीदवार राजवंशी महतो ने 40 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की।

    अबकी बार भाजपा की नजर:

    इतिहास गवाह है कि यह सीट कभी एकतरफा नहीं रही। हर चुनाव में कांटे का मुकाबला और अप्रत्याशित उलटफेर होता रहा है। 2025 के चुनाव को देखते हुए भाजपा के नेता-कार्यकर्ता पटना से लेकर दिल्ली तक पूरी ताकत लगा रहे हैं, ताकि पहली बार इस क्षेत्र को भगवा रंग मिल सके। वहीं लोजपा और जदयू भी अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुट गए हैं।

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