यज्ञ मंडप की परिक्रमा से होता है ज्ञान प्राप्त
निज प्रतिनिधि, लाखो (बेगूसराय) : सदभावना से किए जाने वाले यज्ञ से परमात्मा की प्राप्ति होती है। इस चराचर जगत में मुख्यत: दो तत्व होते हैं। अण्ड और पिण्ड। अण्ड ब्रह्माण्ड का प्रतीक और पिण्ड शरीर का प्रतीक है। जिस प्रकार से इस शरीर में जठारागनी को शांत करने के लिए भोजन रूपी आहूति डालते हैं। तो यह शरीर को पोषण करता है। ठीक उसी प्रकार से यज्ञ की अग्नि में आहूति डालने से पूरे ब्रह्माण्ड के जीवों का पोषण होता है। उक्त बातें रविवार को भैरबार पुरानी ठाकुरबाड़ी परिसर में आयोजित अनंत श्री हरिहारात्मक विष्णु महायज्ञ के पाचवें दिन प्रवचन के दौरान आचार्य परमानंद शास्त्री जी महाराज ने कही। इन्होंने कहा कि यज्ञ में भाग लेने वाले जितने पग बढ़ाते हैं, उन्हें अश्वमेघ यज्ञ की फल प्राप्त होती है। वैदिक विधि से यज्ञ मंडप का परिक्रमा करने से अनंत गुणा अधिक फल प्राप्त होता है। इष्ट मंत्र जपते हुए माला से परिक्रमा करने वाले विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करते है। फल से परिक्रमा करने वाले को पुत्र, पौत्र, नात्र की प्राप्ति होती हैं। कंचन व द्रव्य लेकर परिक्रमा करने वाले को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जौ से परिक्रमा करने वाले यश की प्राप्ति करते है। रविवार की सुबह सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने हवन आहूति एवं परिक्रमा में भाग लिया। इस मौके पर सचिदानंद जी महाराज, आचार्य रत्नेश्वर पाठक, रामाज्ञाशरण जी महाराज, ऋषिकांत जी महाराज, मनोहर दास जी महाराज, वैदिक रामकृष्ण, राकेश बिहारी व्यास, पिताम्बर जी महाराज एवं ठाकुरबाड़ी के महंत जगदीश झा व्यास प्रवचन स्थल व यज्ञ स्थल पर उपस्थित थे।
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