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    बिहार में स्ट्रॉबेरी क्रांति: 15 कट्ठे से शुरू हुई कहानी 80 हेक्टेयर खेतों तक फैली

    Updated: Sun, 28 Sep 2025 03:35 PM (IST)

    औरंगाबाद जिले में स्ट्रॉबेरी की खेती किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। किसान बृजकिशोर मेहता ने इसकी शुरुआत की और आज जिले में 60-80 हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती हो रही है। झारखंड के किसान भी उत्साहित हैं। सितंबर-अक्टूबर में पौधे लगाए जाते हैं और दिसंबर-जनवरी में फल मिलते हैं। किसान महाराष्ट्र से पौधे मंगाते हैं क्योंकि राज्य में नर्सरी नहीं है।

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    जिले में तेजी से बढ़ रही है स्ट्रॉबेरी की खेती

    ओम प्रकाश शर्मा, अंबा(औरंगाबाद)। औरंगाबाद जिले में स्ट्रॉबेरी की खेती सब्जी फल उत्पादक किसान की पहली पसंद बनती जा रही है। 15 कट्ठा से चिल्हकी बिगहा गांव का किसान बृजकिशोर मेहता ने बिहार में इसकी खेती की शुरुआत की थी। अब किसान का यह प्रयोग बिहार में औषधि खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया।

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    बृज किशोर मेहता ने बिहार की कृषि जगत में एक ऐसा अफसाना लिख दिया जिसकी कल्पना भी बिहार के लोग नहीं कर पा रहे थे। आज अकेले औरंगाबाद जिले में 60 से 80 हेक्टेयर भूमि में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है।

    देखा जाए तो समीपवर्ती झारखंड राज्य के किसान भी उत्साहित हो बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत की है। बिहार से सटे झारखंड का हरिहरगंज, छतरपुर, जपला समेत अन्य प्रखंड के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती में गहरी रुचि ले रहे हैं।

    स्ट्रॉबेरी लगाने का सितंबर व अक्टूबर का महीना उपयुक्त

    स्ट्रॉबेरी उत्पादक किसान बृजकिशोर मेहता ने बताया कि स्ट्रॉबेरी लगाने का उपयुक्त महीना सितंबर का अंतिम सप्ताह तथा अक्टूबर का प्रथम सप्ताह महत्वपूर्ण है। उक्त समय लगाए गए स्ट्रॉबेरी के पौधे तेजी से विकास करते हैं और उसका ग्रोथ बढ़ता है।

    मौसम सामान्य रहने के कारण पौधे रोग ग्रस्त नहीं होते हैं जिससे किस को परेशानी नहीं होती है। सितंबर अक्टूबर में लगाए गए पौधे दिसंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर जनवरी महीने से फल देना प्रारंभ करते हैं।

    महाराष्ट्र के पुणे से मंगाया गया स्ट्रॉबेरी के पौधे

    स्ट्रॉबेरी उत्पादक चिल्हकी बिगहा गांव के किसान बृज किशोर मेहता ने बताया कि बड़े पैमाने पर प्रखंड के किसानों नहीं संयुक्त रूप से महाराष्ट्र के पुणे से स्ट्रॉबेरी के पौधे मंगवाए हैं। शुक्रवार को एक ट्रक स्ट्रॉबेरी के पौधे सतबहिनी स्थान के निकट ट्रक से नीचे उतरे जा रहे थे।

    पौधे उतारे जाने के समय प्रखंड के विभिन्न गांव से आए किसान वहां मौजूद थे जो अपने-अपने पौधे ले जाने के लिए छोटे-छोटे वाहन लेकर पहुंचे थे। किसान ने बताया कि राज्य में स्ट्रॉबेरी की नर्सरी ना होने के कारण महाराष्ट्र के पुणे से पौधे मंगाना हम सब की मजबूरी है।

    औषधीय खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले बृजकिशोर मेहता ने बताया कि अगर बिहार सरकार ने किसानों को सहायता दी होती तो स्ट्रॉबेरी की नर्सरी बिहार में तैयार कर अन्य राज्यों को भेजा जा सकता था। पिछले आठ नौ वर्षों से स्ट्रॉबेरी की खेती औरंगाबाद जिले में की जा रही है। सूबे के मुख्यमंत्री ने अपनी आंखों से इसे देखा।

    अब तक स्ट्रॉबेरी की नर्सरी तैयार करने, बाजार उपलब्ध कराने, औषधीय खेती में प्रयोग में लिए जाने वाले मशीन एवं अन्य प्रकार के संसाधन को अब तक किसानों को अपने राज्य में उपलब्ध न होने के कारण अन्य राज्यों से लाना पड़ता है। बिहार सरकार ने इस दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है जिस कारण किसानों को अन्य प्रदेश की राहत तकनी पड़ती है।

    दिसंबर में ही कोलकाता से आकर ठहरते हैं व्यापारी

    स्ट्रॉबेरी की खेती की जानकारी कोलकाता के व्यापारियों को मिल चुकी है इस कारण वे दिसंबर में ही अंबा में आकर अपना ठौर ठिकाना बना लेते हैं और जब तक स्ट्रॉबेरी का उत्पादन होता रहता है तब तक वे यहां रहकर उसे खरीद कर कोलकाता भेजते रहते हैं।

    पिछले वर्ष से अधिक लगाई जाएगी स्ट्रॉबेरी की फसल

    प्रखंड के किसानों का मानना है कि स्ट्रॉबेरी की फसल से किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आया है। एक बार फसल अगर अच्छी तरीके से उत्पादित हो गई तो किसानों को आगे का मौका दिखाई देता है।

    पिछले दो वर्षों से स्ट्रॉबेरी की फसल किसानों को फायदा देने वाला साबित हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि इस वर्ष गत वर्ष की तुलना में 80 से 100 हेक्टेयर भूमि में स्ट्रॉबेरी की फसल लगाई जाएगी।

    उल्लेखनीय है कि बृज किशोर मेहता ने हरियाणा से एक पौधा लाकर यहां लगाया था और उसे ठीक-ठाक देखकर अगले वर्ष 15 कट्ठा में स्ट्रॉबेरी लगाकर इसकी जांच की थी जो पूर्णता सफल साबित हुई थी। इसके बाद तो इसे लगाने का हो सी मच गई।

    इतना ही नहीं जिले तथा अन्य राज्यों के किसान भी इसके प्रति उत्साहित हुए। 2 वर्ष तक तो इसे जानने और समझने के लिए चिल्हकी बिगहा गांव में भीड़ लगी रहती थी। कृषि विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं विभिन्न राज्यों के किसान इसके उत्पादन के गुर सीखने यहां आते थे।