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    आजादी की कहानी : जरा याद करो कुर्बानी

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    Updated: Sat, 13 Aug 2016 03:09 AM (IST)

    औरंगाबाद। आजादी के 70 साल हो गए। इक्के-दुक्के ही ऐसे बुजुर्ग हमारे बीच हैं जो हमें आजादी के

    औरंगाबाद। आजादी के 70 साल हो गए। इक्के-दुक्के ही ऐसे बुजुर्ग हमारे बीच हैं जो हमें आजादी के संघर्ष की गाथा सुना या बता सकते हैं। उस स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास हमें प्रेरित करता है एवं राष्ट्रभक्ति का जोश रग-रग में भर देता है। आज हम खुली हवा में यूं ही आजाद होकर सांस नहीं ले रहे। इसके पीछे सेनानियों की कुर्बानी रही है। जेल की यातनाएं कई ने सहा तो कई ने पीठ पर कोड़े खाए। अत्याचारी अंग्रेजों से मुक्ति सस्ते में नहीं मिली। सर्वस्व न्यौच्छावर किया है कई वीर सपूतों ने तब जाकर हम आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। कुछ वीर सेनानियों की संक्षिप्त कहानी, ताकि वर्तमान पीढ़ी भी उन्हें जान सके।

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    केदार सिंह :

    हसपुरा प्रखंड के पथरौल गाव निवासी केदार सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान दिया। विदेशी कपड़ों की होली जलाने के साथ जन जागृति के कार्य करने में आगे रहे। सन 1930 में जेल की यातनाएं झेली। अंग्रेजों के खिलाफत में हमेशा अग्रणी भूमिका में रहे।

    जगदेव मिस्त्री :

    ओबरा प्रखंड के अतरौली गांव निवासी जगदेव मिस्त्री स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारी साथियों के लिए पिस्तौल बनाकर दिया करते थे ताकि अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया जा सके। गया षडयंत्र केस में इन्हें सन 1933 में गिरफ्तार किया गया और जेल की यातनाएं सही।

    श्यामाचरण भरथुआर

    ओबरा प्रखंड के खराटी निवासी श्यामाचरण जी उग्र विचारधारा के थे। सन 1942 की अगस्त क्रांति में इनकी भूमिका के कारण इन्हें काला पानी की सजा मिली। कठोर यातनाएं सही। स्वतंत्रता के बाद गया शहर से विधायक बने।

    रामविलास शर्मा

    गोह प्रखंड के पेमा गांव में 22 फरवरी 1915 को जन्में रामविलास शर्मा कई बार जेल गए। 1945 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। पटना स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र एवं पटना गया स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र से परिषद के सदस्य रहे। सरदार हरिहर सिंह मंत्रीमंडल में कैबिनेट मंत्री बने। सन 1974 समेत दो बार बिहार विधान परिषद में विरोधी दल के नेता भी रहे। काग्रेस में कई पदों को सुशोभित किया।

    रामनरेश सिंह :

    इनका जन्म गोह प्रखंड के बुधई गाव में 11 फरवरी 1912 को हुआ था। वे कई बार जेल गए। बाबू बद्री नारायण सिंह को सहयोग करते हुए चौरम आश्रम का स्थापना किया। फरवरी 1938 में यहा नेताजी सुभाषचंद्र बोस को उन्होंने बुलाया। सन 1952 एवं 1967 में विधानसभा से विधायक बने। सन 1967 में स्वास्थ्य मंत्री बने। कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना किया।

    नथुनी मिस्त्री

    ओबरा के कारा गांव निवासी नथुनी विश्वकर्मा को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। यातनाएं सही, लेकिन इनके परिजन इसका अनावश्यक लाभ लेने से खुद को वंचित रखने में सफल रहे।

    जगेश्वर दयाल सिंह

    दाउदनगर प्रखंड के हिच्छन बिगहा निवासी श्री सिंह को भी अपनी सक्रिय भूमिका के लिए कई बार जेल जाना पड़ा। सामाजिक सास्कृतिक उत्थान के लिए भी निरंतर संघर्ष किया। निस्वार्थ जन सेवा की। इन्हें हिच्छन बिगहा का गाधी बताते हुए एक पुस्तक भी लिखा गया है।