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    JNUSU President नीतीश कुमार का रोचक है सफर, मोदी प्रशंसक से बने वामपंथी; चाचा हैं बीजेपी MLA

    Updated: Tue, 29 Apr 2025 05:26 PM (IST)

    अररिया के नीतीश कुमार JNUSU अध्यक्ष बने हैं। कभी मोदी के समर्थक रहे नीतीश BHU से JNU आकर वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हुए। सरस्वती विद्या मंदिर से पढ़ाई करने वाले नीतीश के चाचा भाजपा विधायक हैं। उनका जेएनयू अध्यक्ष बनना एक रोचक सफर है जिसपर पूरे इलाके को गर्व है।

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    जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष बने नीतीश का रोचक है सफर, मोदी प्रशंसक से बने वामपंथी; चाचा हैं बीजेपी एमएलए

    संवाद सूत्र, फुलकाहा (अररिया)। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष बने नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र के शेखपुरा गांव के नीतीश कुमार उर्फ राजा का सफर बेहद रोचक है, जब वो बीएचयू में थे तो मोदी के समर्थक थे। जेएनयू जाकर वो वामदल के विचारधारा से प्रेरित हुए और वामपंथ के नेता बन गए। देश के नामी विश्वविद्यालयों में एक जेएनयू में एकबार फिर से बिहार से छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गया है।

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    जवाहर लाल नेहरू विवि के छात्रसंघ चुनाव में इस बार अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर आइसा और डीएसएफ के वाम गठबंधन ने जीत हासिल की है। बिहार के अररिया जिले के रहने वाले नीतीश इस बार अध्यक्ष चुने गए हैं। नीतीश की शुरुआती पढ़ाई सरस्वती विद्या मंदिर में हुई। उनके चाचा जय प्रकाश यादव भाजपा के विधायक हैं।

    बड़ा रोचक है नीतीश कुमार का सफर

    नरपतगंज के एक छोटे से गांव कन्हैली से निकलकर जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने नीतीश कुमार का यह सफर बेहद रोचक है। कन्हैली नीतीश का ननिहाल है, उसका पैतृक घर भरगामा प्रखंड के शेखपुरा गांव में है। मां अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, इसलिए उनके पिता अपने ससुराल में ही बस गये।

    पिता प्रदीप कुमार यादव पेशे से किसान हैं और एक वित्त रहित कॉलेज में पढ़ाते हैं। पिता अपने इस मेधावी पुत्र को आईएएस बनाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने शुरुआत से ही अपने बेटे की पढ़ाई पर ध्यान दिया। वे कहते हैं कि पहले नीतीश का नाम हमने फारबिसगंज शहर के एक कान्वेंट स्कूल में लिखवाया।

    आरएसएस के सरस्वती विद्या मंदिर में की 10वीं तक पढ़ाई

    वहां एक-दो साल पढ़ने के बाद नीतीश ने कहा कि यहां की पढ़ाई अच्छी नहीं है। ऐसे में हमने उसका एडमिशन आरएसएस के सरस्वती विद्या मंदिर में करवा दिया। वहां उसने 10 वीं तक पढ़ाई की और मैट्रिक परीक्षा पास की। नीतीश ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूर्णिया कालेज से पूरी की और स्नात की पढ़ाई के लिए वे बीएचयू चले गये, प्रदीप यादव बताते हैं कि जब तक नीतीश बीएचयू में था, वह पीएम नरेंद्र मोदी का समर्थक हुआ करता था।

    आईएएस बनना चाहता था नीतीश

    उस वक्त तक उसका लक्ष्य आईएएस बनना ही था, मगर वह जेएनयू में गया तो उसका लक्ष्य बदल गया और उसकी सोच भी, अब हम उसे आईएएस बनने कहते हैं तो कहता है, मुझे नौकरी नहीं करनी, मेरे चचेरे भाई जयप्रकाश यादव नरपतगंज से विधायक हैं। जयप्रकाश नरपतगंज से विधायक हैं, मगर उन्होंने बिहार पुलिस के दारोगा की अपनी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद राजनीति में प्रवेश किया।

    राजनीति के लिए पैसे चाहिए, मेरे बेटे के पास पैसे कहां, प्रदीप जिन जयप्रकाश यादव का जिक्र करते हैं, वे भाजपा से नरपतगंज के विधायक हैं, वे भी अपने भतीजे की इस जीत पर काफी खुश हैं। बातचीत में वे कहते हैं,नीतीश के घर का पुकारू नाम राजा है, उसकी जीत से हमलोग काफी खुश हैं। बचपन से वह पढ़ने-लिखने में काफी इंटेलिजेंट था।

    'राजनीति संभावनाओं का खेल...'

    जहां तक विचारधारा की बात है, एक घर में बाप-बेटे की विचारधारा अलग-अलग होती है। उससे मुझे कोई दिक्कत नहीं, जो जिस वातावरण में रहता है, वहीं की विचारधारा में ढल जाता है, मेरे लिए खुशी की यही बात है कि जेएनयू जैसे देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्र संघ का वह अध्यक्ष चुना गया है। हालांकि, बाद में वे हंसते हुए कहते हैं, राजनीति संभावनाओं का खेल है, अगर कन्हैया लेफ्ट की राजनीति से कांग्रेस में आ सकते हैं, तो मेरा भतीजा नीतीश भी आने वाले समय में हमारे साथ आ सकता है।

    नीतीश की इस राजनीतिक पृष्ठभूमि से उसके संगठन आइसा के नेता भी परिचित हैं यूनिवर्सिटी एक ऐसी जगह है, जहां इंसान नई चीजें सीखता है और कुछ चीजें भूल भी जाता है। जेएनयू के माहौल और छात्रों के साथ इस सरकार में होने वाली दिक्कतें हम सब की सोच पर असर डालती हैं। इसने नीतीश की सोच पर भी असर डाला होगा।

    आइसा नेता ने नीतीश के बारे में क्या बताया?

    आइसा के एक नेता साद आजमी आगे यह भी कहते हैं, पिछले चार-पांच साल से वह जेएनयू में है और हमारे साथ है, वह यूनिवर्सिटी कैंपस में होने वाले प्रशासनिक और वैचारिक हमलों को लेकर लगातार सक्रिय रहता है। वह काफी मजबूती से छात्रों के पक्ष की बात करता है और इसलिए वह छात्रों के बीच काफी पापुलर भी है। जाना-पहचाना नाम है। पिछले साल उसने स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस के काउंसलर का पद भी जीता था।

    नीतीश यह स्वीकार करते हैं कि शुरुआती दिनों में, खासकर 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त उनका झुकाव भाजपा और मोदी की तरफ था, मगर 2017 में जब वे बीएचयू में आये तब से उनका मोदी और भाजपा से मोहभंग होने लगा।

    वे कहते हैं, बीएचयू में मुझे समझ आने लगा था कि ये डेवलपमेंट के नाम पर आये थे, मगर इनकी नीतियां सांप्रदायिक और विभाजनकारी हैं। सितंबर, 2017 में बीएचयू में महिलाओं के साथ जो छेड़खानी हुई थी, उसमें भी मैंने बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी। 5 जनवरी, 2020 को परिषद के लोगों ने जेएनयू के लोगों के साथ मारपीट की थी, उस वक्त मैं जेएनयू के लड़ने की ताकत से प्रभावित हुआ और इसके खिलाफ जो प्रदर्शन बीएचयू में हुआ उसमें मैंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कुल मिलाकर यह कि बीएचयू में भले मैं वाम छात्र संगठन का हिस्सा नहीं बना, मगर इस विचारधारा से प्रभावित होने लगा। नीतीश को जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष बनने पर नरपतगंज के छात्राओं ने उन्हें बधाई दी है और कहा कि वह छात्रों के हित में बेहतर कार्य करेंगे हम लोगों को काफी उम्मीद है।

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