क्या होता है पीक आवर, जिसके दौरान अब दोगुना किराया वसूलेंगे Ola-Uber जैसी कैब कंपनियां
ओला-उबर जैसे ऐप बेस्ड कैब सर्विसेज को लेकर सरकार ने मोटर व्हीकल एग्रीगेटर गाइडलाइंस 2025 जारी की हैं। पीक ऑवर में अब एग्रीगेटर दोगुना किराया चार्ज कर सकेंगे। कैंसिलेशन पर भी जुर्माना लगेगा। सरकार जल्द ही एग्रीगेटर लाइसेंस के लिए ऑनलाइन पोर्टल विकसित करेगी। ड्राइवरों के लिए 5 लाख का हेल्थ और 10 लाख का टर्म इंश्योरेंस अनिवार्य होगा। शिकायतों के लिए ग्रिवांस ऑफिसर की नियुक्ति भी की जाएगी।

ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। भारत में Ola-Uber जैसे ऐप बेस्ड कैब सर्विसेज लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। चाहे ऑफिस जाना हो, बाजार या रेलवे स्टेशन, कैब सर्विस आज के समय की जरूरत बन गई है, लेकिन अक्सर किराए, ड्राइवर के बर्ताव और कैंसलेशन को लेकर पैसेंजर और ड्राइवरों दोनों की परेशानियां सामने आती थीं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में मोटर व्हीकल एग्रीगेटर गाइडलाइंस 2025 जारी की हैं। आइए विस्तार में जानते हैं कि इनमें क्या-क्या बदलाव किए गए हैं और इसका सीधा असर कैब यूजर्स और ड्राइवरों पर कैसे पड़ेगा?
पीक आवर क्या होता है?
सबसे पहले ये जान लें कि गाइडलाइंस में पीक आवर (Peak Hours) शब्द बार-बार आ रहा है। असल में पीक आवर वह समय होता है जब कैब की डिमांड सबसे ज्यादा होती है। जैसे- सुबह ऑफिस के लिए निकलने का समय, शाम को ऑफिस से लौटने का समय या कोई त्योहारी सीजन। इस समय सड़कों पर भीड़ ज्यादा होती है और लोग जल्दी कैब बुक करना चाहते हैं। इसलिए एग्रीगेटर्स इस समय किराया बढ़ाकर चार्ज करते हैं, जिसे डायनैमिक प्राइसिंग कहा जाता है।
पीक आवर में अब डबल किराया चार्ज कर सकेंगे एग्रीगेटर
नई गाइडलाइंस के मुताबिक, कैब कंपनियां अब पीक आवर के दौरान बेस फेयर का दो गुना तक किराया वसूल सकती हैं। पहले यह सीमा 1.5 गुना थी, यानी अगर किसी राइड का बेस फेयर 100 रुपये है, तो पीक टाइम में अब अधिकतम 200 रुपये चार्ज किए जा सकते हैं। इससे एग्रीगेटर्स को भी ज्यादा कमाई का मौका मिलेगा और ड्राइवरों को बेहतर कमाई का लाभ मिल सकता है। वहीं, नॉन-पीक आवर यानी कम भीड़भाड़ के समय में, न्यूनतम किराया बेस फेयर का कम से कम 50% रखना अनिवार्य होगा। इससे यात्रियों को सस्ते किराए का फायदा मिल सकता है।
डेड माइलेज के लिए भी किराया मिलेगा
नई गाइडलाइंस के अनुसार, बेस फेयर कम से कम 3 किलोमीटर के लिए तय किया जाएगा। इसका मकसद डेड माइलेज कवर करना है। डेड माइलेज का मतलब है वह दूरी, जो ड्राइवर बिना सवारी के तय करता है, जैसे- किसी पैसेंजर को लेने के लिए खाली गाड़ी लेकर जाना। इससे ड्राइवरों को बेहतर मुआवजा मिलेगा और उनका नुकसान कम होगा।
बेस फेयर कौन तय करेगा?
नई गाइडलाइंस के तहत अलग-अलग कैटेगरी की गाड़ियों के लिए बेस फेयर राज्य सरकार तय करेगी, यानी Ola-Uber जैसी कंपनियों को वही किराया बेस मानना होगा जो राज्य सरकार तय करेगी। राज्यों को इन नियमों को लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है।
कैंसलेशन पर लगेगा जुर्माना
कई बार ड्राइवर बिना वजह राइड कैंसल कर देते हैं, जिससे यात्रियों को दिक्कत होती है। वहीं, कुछ यात्री भी बुकिंग के बाद कैंसिल कर देते हैं। नई गाइडलाइंस में इस पर सख्त प्रावधान किए गए हैं। अगर ड्राइवर बिना किसी वाजिब कारण के राइड कैंसल करता है, तो उस पर कुल किराए का 10 प्रतिशत (अधिकतम 100 रुपये तक) जुर्माना लगेगा। इसी तरह, अगर यात्री भी बिना किसी वाजिब वजह के राइड कैंसल करता है, तो उस पर भी यही जुर्माना लगेगा। इससे कैंसलेशन के मामलों में कमी आ सकती है और यूजर्स का भरोसा भी बढ़ेगा।
एग्रीगेटर लाइसेंस के लिए बनेगा ऑनलाइन पोर्टल
सरकार जल्द एक ऐसा ऑनलाइन पोर्टल विकसित करेगी, जहां से एग्रीगेटर कंपनियां लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकेंगी। लाइसेंस फीस 5 लाख रुपये तय की गई है। लाइसेंस पांच साल के लिए वैध रहेगा। इससे कंपनियों को कागजी झंझट से मुक्ति मिलेगी और प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी होगी। ड्राइवरों के लिए अनिवार्य इंश्योरेंस होगा। ड्राइवरों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए भी गाइडलाइंस में अहम प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत एग्रीगेटर को अपने ड्राइवरों के लिए कम से कम 5 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस देना होगा। इसके अलावा, 10 लाख रुपये का टर्म इंश्योरेंस देना भी अनिवार्य होगा। यह कदम ड्राइवरों और उनके परिवारों के लिए बड़ा सुरक्षा कवच साबित होगा।
शिकायतों के लिए ग्रिवांस ऑफिसर अनिवार्य
नई गाइडलाइंस में हर एग्रीगेटर को एक ग्रिवांस ऑफिसर (शिकायत अधिकारी) नियुक्त करना होगा। यह अधिकारी यात्रियों और ड्राइवरों की समस्याओं का समाधान करेगा। इससे सर्विस क्वालिटी में सुधार आने की उम्मीद है।
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