Tata ‘अश्व’ और ‘गरुड़’ बन सकते हैं भारत की VVIP कार, Maybach और Range Rover को दे सकती हैं टक्कर?
टाटा अल्ट्रोज से प्रेरित 'टाटा अश्व' (प्रधानमंत्री के लिए) और 'टाटा गरुड़' (राष्ट्रपति के लिए) नामक दो स्वदेशी VVIP बख्तरबंद वाहनों की अवधारणा सामने आ ...और पढ़ें

टाटा ‘अश्व’ और ‘गरुड़’ कॉन्सेप्ट कार।
ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। आपने अक्सर देखा होगा कि भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में VVIPs ऐसी गाड़ियों में सफर करते हैं जो बेहद प्रीमियम होती हैं। ये गाड़ियाँ सिर्फ लग्जरी के लिए नहीं होतीं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद खास होती हैं। कई मामलों में तो ये पूरी तरह बख्तरबंद होती हैं, ताकि किसी भी खतरे से यात्रियों को सुरक्षित रखा जा सके।
इसी बीच हाल ही में Tata Altroz से इंस्पायर्ड दो अनऑफिशियल कॉन्सेप्ट सामने आए हैं। इनमें प्रधानमंत्री के लिए टाटा अश्व सेडान और राष्ट्रपति के लिए टाटा गरुड़ लिमो की कल्पना की गई है। ये दोनों कॉन्सेप्ट इस बात पर चर्चा छेड़ते हैं कि अगर भारत अपनी स्वदेशी VVIP बख्तरबंद गाड़ियाँ बनाए, तो वे कैसी हो सकती हैं। आइए आसान भाषा में समझते हैं कि इन कॉन्सेप्ट्स में क्या-क्या खास हो सकता है।
टाटा अश्व और गरुड़ में क्या हो सकते हैं फीचर्स?
टाटा अश्व और गरुड़, दोनों को हाई-सिक्योरिटी जरूरतों को ध्यान में रखकर सोचा गया है। इनमें जिन फीचर्स की बात की गई है, वे किसी भी टॉप-लेवल आर्मर्ड व्हीकल के बराबर माने जाते हैं।
- 60 से 90 mm तक का लैमिनेटेड बुलेट-रेसिस्टेंट ग्लास
- मल्टी-लेयर बैलिस्टिक स्टील और कंपोजिट आर्मर (VR10 लेवल)
- CBRN प्रोटेक्शन के साथ पूरी तरह सील्ड केबिन
- रन-फ्लैट टायर्स, ताकि टायर खराब होने के बाद भी गाड़ी चलती रहे
- EMP शील्डिंग और एनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन सिस्टम
- अलग से ऑक्सीजन सप्लाई
- माइन और IED ब्लास्ट से बचाव
गरुड़ लिमो में वही मजबूत सुरक्षा दी गई है, लेकिन ज्यादा स्पेस के साथ। यही वजह है कि इसे स्टेट सेरेमनी और औपचारिक कार्यक्रमों के लिए ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है। कुल मिलाकर ये कॉन्सेप्ट दिखाते हैं कि एक आम पैसेंजर कार के डिजाइन को किस तरह बेहद हाई-लेवल सिक्योरिटी व्हीकल में बदला जा सकता है।
What are the key challenges in adopting Indian-designed cars as official vehicles for VVIPs over foreign platforms like Maybach, RR or Toyota?
— Rishav Gupta (ऋषव गुप्ता) | 🇮🇳 (@connect_rishav) December 29, 2025
Here are 2 concepts, inspired from Tata Altroz design, reimagined as "Ashva" sedan (for PM) and "Garuda" limo (for Prez.) pic.twitter.com/gqAn1uTe7b
स्वदेशी VVIP गाड़ी क्यों जरूरी है?
आज भारत के प्रधानमंत्री और कई अन्य बड़े नेता Mercedes-Maybach S650 Guard या Range Rover Sentinel जैसी विदेशी बख्तरबंद गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। ये गाड़ियाँ VR10 लेवल की सुरक्षा देती हैं। दिलचस्प बात यह है कि Range Rover बनाने वाली Jaguar Land Rover खुद टाटा मोटर्स ग्रुप का हिस्सा है, यानी कहीं न कहीं भारतीय कनेक्शन पहले से मौजूद है।
लेकिन असली मुद्दा सिर्फ कंपनी के मालिकाना हक का नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की सोच का है। अगर हमारे शीर्ष नेता पूरी तरह स्वदेशी बख्तरबंद गाड़ियों में सफर करें।
- देश का आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गर्व बढ़ेगा
- आयात पर निर्भरता कम होगी
- देश में हाई-एंड इंजीनियरिंग और रोजगार के नए मौके बनेंगे
भारतीय सड़कों, मौसम और बॉर्डर एरिया जैसी परिस्थितियों के हिसाब से गाड़ियों को बेहतर तरीके से कस्टमाइज किया जा सकेगा।
लेकिन चुनौतियां क्या हैं?
यह आइडिया सुनने में जितना अच्छा लगता है, असल में उतना ही मुश्किल भी है। सबसे बड़ी चुनौती इकोनॉमी ऑफ स्केल का है। अगर प्रधानमंत्री, सभी मुख्यमंत्रियों और बैकअप गाड़ियों को भी जोड़ लें, तो कुल जरूरत लगभग 60 गाड़ियों के आसपास ही होगी। इतनी कम संख्या के लिए बिल्कुल नया प्लेटफॉर्म तैयार करना, सैकड़ों करोड़ रुपये का रिसर्च और डेवलपमेंट, कड़ी टेस्टिंग और VR10 सर्टिफिकेशन और काफी महंगा और समय लेने वाला काम है।
इसके अलावा विदेशी कंपनियां पहले से ही अपनी भरोसेमंद क्वालिटी, मजबूत लॉबिंग और जल्दी डिलीवरी के लिए जानी जाती हैं। एक और बड़ी चुनौती है लोगों की सोच। आज भी विदेशी ब्रांड्स को लग्ज़री और स्टेटस का प्रतीक माना जाता है, जबकि स्वदेशी विकल्पों को वही पहचान बनाने में समय लगेगा।
टाटा का अनुभव क्यों भरोसा दिलाता है?
- यह मानना बिल्कुल गलत होगा कि टाटा मोटर्स इस क्षेत्र में नई है। टाटा दशकों से डिफेंस व्हीकल्स बना रही है। इसमें 1940 के दशक से आर्मर्ड व्हीकल्स का अनुभव के साथ WWII के दौरान टाटानगर आर्मर्ड कैरियर बनाने का है। आज WhAP (8x8 Wheeled Armoured Platform) जैसे एडवांस्ड व्हीकल, जिनका एक्सपोर्ट भी हो रहा है। इसके LATC और MPV जैसे व्हीकल्स का इस्तेमाल काउंटर-टेरर ऑपरेशंस में इस्तेमाल होते हैं।
- इतना ही नहीं, 1958 से टाटा इंडियन आर्म्ड फोर्सेस को मिलिट्री ट्रक्स की सप्लाई कर रही है। इस लंबे अनुभव के चलते बैलिस्टिक मटीरियल, मोबिलिटी और प्रोटेक्शन सिस्टम्स में टाटा की पकड़ मजबूत मानी जाती है। यही वजह है कि अश्व और गरुड़ जैसे कॉन्सेप्ट पूरी तरह नामुमकिन नहीं लगते।
हमारी राय
अगर सरकार स्वदेशी प्रोक्योरमेंट को इंसेंटिव या किसी तरह के नियमों के जरिए सपोर्ट दे, तो तस्वीर बदल सकती है। चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश पहले से अपनी स्टेट लिमोज का इस्तेमाल करते हैं। भारत भी इस दिशा में कदम बढ़ा सकता है। इससे न सिर्फ देश की सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि डिफेंस एक्सपोर्ट और आत्मनिर्भर भारत जैसे लक्ष्यों को भी मजबूती मिलेगी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।