Move to Jagran APP

Pathankot News: अब पाकिस्तान को नहीं देना पड़ेगा देश का बहुमूल्य जल, RSD झील में तेजी से किया जा रहा पानी स्टोर

Pathankot News पंजाब के पठानकोट में अब पाकिस्‍तान को बहुमूल्‍य पानी नहीं छोड़ना पड़ेगा। दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। जिसके मुताबिक रावी सतलुज और ब्यास नदी के पानी पर भारत का अधिकार था। अब भारत ने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया और रावी नदी का पानी रोक दिया है। साल 2001 में रणजीत सागर बांध का निर्माण पूरा हो गया था।

By Purshotam Sharma Edited By: Himani Sharma Published: Mon, 29 Apr 2024 03:48 PM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2024 03:48 PM (IST)
अब पाकिस्तान को नहीं देना पड़ेगा देश का बहुमूल्य जल

जागरण संवाददाता, जुगियाल। रावी नदी के पानी को स्टोर करने के लिए शाहपुरकंडी में बनाए गए बांध का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। जिसमें पानी भरने का काम तेजी से चल रहा है। पानी को स्टोर करने के बाद इसे जेएंडके व पंजाब के साथ लगते इलाकों के किसानों को दिया जाएगा। जिसके बाद देश का बहुमूल्य पानी पाकिस्तान को छोड़ना नहीं पड़ेगा।

loksabha election banner

1960 में हुई थी जल संधि

दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। जिसके मुताबिक रावी, सतलुज और ब्यास नदी के पानी पर भारत का अधिकार था। अब भारत ने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया और रावी नदी का पानी रोक दिया है।

इसी के तहत साल 1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकारों ने पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए रंजीत सागर बांध और डाउनस्ट्रीम शाहपुर कंडी बैराज बनाने के लिए समझौता हुआ था। साल 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री ने इस परियोजना की नींव रखी थी। इसे साल 1998 तक पूरा होने की उम्मीद थी।

2001 में रणजीत सागर बांध का हुआ था निर्माण 

साल 2001 में रणजीत सागर बांध का निर्माण पूरा हो गया था। लेकिन शाहपुर कंडी बांध नहीं बन पाया। साल 2008 में इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था। लेकिन इसका काम साल 2013 में शुरू हुआ था।

यह भी पढ़ें: Ludhiana News: 'बाहर से लाना पड़ रहा उम्मीदवार, कांग्रेस की हालत खराब', रवनीत सिंह बिट्टू ने राजा वडिंग पर बोला हमला

साल 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर में विवाद के कारण परियोजना फिर से रोक दी गई थी। साल 2018 में दोनों राज्यों में समझौता हो गया। इसके बाद बांध निर्माण का काम एक बार फिर रूका और केंद्र की दखलअंदाजी से फिर शुरू हुआ और अब वो पूरा हो गया है।

कठुआ और सांबा को सिंचित करने में होगा इस पानी का इस्‍तेमाल

गौरतलब है कि शाहपुर कंडी बांध एक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के पूरा होने से रावी नदी का पानी पाकिस्तान नहीं जाएगा। इस पानी का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख जिलों कठुआ और सांबा को सिंचित करने में होगा।

1150 क्यूसेक पानी से केंद्र शासित प्रदेश की 32 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होगी। जबकि बांध से पैदा होने वाली बिजली का 20 फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर को मिलेगा। इस बांध के बनने से रावी नदी के पानी से जम्मू-कश्मीर के अलावा पंजाब और राजस्थान को भी फायदा होगा। विश्व बैंक की देखरेख में भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ था।

ऐसे हुआ था पानी का बंटवारा

यह समझौता जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में हुआ था। इस समझौते के तहत सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी का बंटवारा हुआ था। समझौते के तहत भारत को 19.5 फीसदी हिस्सा और पाकिस्तान को 80 फीसदी हिस्सा मिलता है।

यह भी पढ़ें: Sangroor News: दलवीर सिंह गोल्‍डी की कांग्रेस से बढ़ी नाराजगी, सोशल मीडिया पर पोस्‍ट शेयर कर लिखी दिल की बात

हालांकि भारत आवंटित हिस्से का करीब 90 फीसदी पानी ही इस्तेमाल करता है। इस समझौते के तहत सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। जबकि रावी, सतलुज और ब्यास नदी के पानी पर भारत का अधिकार है. इस समझौते के तहत ही भारत ने रावी नदी पर बांध बनाया है।

किसानों ने जताई खुशी

बात की जाए कंडी क्षेत्र की जो की जिसका ज्यादातर हिस्सा वर्षा पर निर्भर था अब नहर बनने से किसानों को नहर से निकलने वाले नालों से जमीन को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होना है। किसान रणधीर सिंह,तारा सिंह, प्रदीप सिंह आदि ने कहा कि उक्त कार्य कई वर्षों से चल रहा है।

साथ ही अब उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही डैम एवं डैम से निकलने वाली नहर से नाले और जम्मू कश्मीर को जा रही नहर का कार्य जल्दी संपन्न हो जाएगा जिससे लोगों को काफी फायदा होगा सिंचाई विभाग के एसडीओ प्रदीप कुमार का कहना है कि सरकार के आदेशों पर कार्य किए जा रहे हैं ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.