Lok Sabha Election 2024: बंगाल में इन मतदाताओं पर दलों की निगाहें, कई सीटों पर निर्णायक है इनकी भूमिका
Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कांग्रेस वाममोर्चा और नवागत इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) की निगाहें मुस्लिम मतदाताओं पर हैं। इन दलों में खींचतान भी जारी है। बंगाल के सभी चुनावों में मुस्लिम वोट बेहद मायने रखता है। अब हर कोई इस वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित करने में जुट गया है। बंगाल में 30 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं।
विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। बंगाल में भाजपा-विरोधी दलों में गठबंधन नहीं हो पाने से मुसलमानों का वोट बंटने की प्रबल संभावना है इसलिए इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, वाममोर्चा व नवागत इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) में खींचतान शुरू हो गई है। हर कोई इस वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित करने में जुट गया है।
कारण, बंगाल में मुसलमानों का वोट बेहद अहम है। नगर निकाय, पंचायत से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनावों तक में यह बेहद मायने रखता आया है। वाम मोर्चा ने मुस्लिम वोट बैंक के बूते ही बंगाल में 34 साल तक राज किया, उसके बाद मुसलमान तृणमूल की ओर झुके तो ममता बनर्जी तीन बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। बंगाल में 30 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। 16-17 लोस सीटें ऐसी हैं, जहां वे निर्णायक भूमिका में हैं।
सबके अपने-अपने दावे
बंगाल में मुस्लिम वोट कहां जाएगा, यह कहना मुश्किल है, हालांकि सबके अपने-अपने दावे हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को विश्वास है कि मुसलमान इस बार भी उन्हीं का साथ देंगे।
ममता ने इसी विश्वास के साथ कांग्रेस और वाममोर्चा, दोनों में से किसी के साथ बंगाल में गठबंधन नहीं किया जबकि राष्ट्रीय स्तर पर वह आईएनडीआईए में दोनों के साथ शामिल हैं और राहुल गांधी और सीताराम येचुरी के साथ मंच भी साझा कर चुकी हैं।
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राजनीति के जानकार इसे ममता का जोखिम भरा दांव भी बता रहे हैं। दूसरी तरफ बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को भी यकीन है कि बंगाल के मुसलमान इस बार उनकी पार्टी का समर्थन करेंगे। इसकी एक बड़ी वजह राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों से होकर गुजरना है।
कांग्रेस-वाममोर्चा में गठबंधन नहीं
वाममोर्चा भी पिछले नगर निकायों, पंचायत व विस उपचुनाव में अपेक्षाकृत अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए आस लगाए बैठा है कि उसे छोड़कर तृणमूल की ओर बढ़ गए मुसलमान वापस लौट आएंगे। मालूम हो कि कांग्रेस-वाममोर्चा में भी बंगाल में गठबंधन नहीं हुआ है, हालांकि दोनों के बीच कुछ सीटों पर 'अघोषित समझौता' जरूर है, यानी वहां दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारे हैं लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां दोनों एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। जानकार बताते हैं कि यह मुस्लिम मतदाताओं को भ्रमित कर सकता है।
आईएसएफ भी चुनाव मैदान में
फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी आईएसएफ भी लोस चुनाव में ताल ठोक रही है। उनका दावा है कि तृणमूल ने मुसलमानों को गुमराह करने के अलावा कुछ नहीं किया है। मुसलमान इसे समझ गए हैं और अबकी बार उसके झांसे में नहीं आएंगे। इस पर तृणमूल का कहना है कि विस चुनाव की तरह लोस चुनाव में भी आईएसएफ का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
मुस्लिम प्रत्याशियों पर विशेष जोर
मुस्लिम वोट बैंक को देखते हुए भाजपा-विरोधी सभी दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर विशेष जोर दिया है। ममता ने बहरमपुर से पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को टिकट देकर सबको चौंकाया है। इसके अलावा भी तृणमूल ने कई मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
कांग्रेस ने भी कई मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जिसमें बंगाल में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष अजहर मलिक प्रमुख हैं। वाममोर्चा की अगुआई करने वाली माकपा से सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरा तो खुद इसके राज्य अध्यक्ष मोहम्मद सलीम हैं, जो इस बार मुर्शिदाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं।
सलीम के अलावा दक्षिण कोलकाता पर पार्टी ने सायरा शाह हलीम को टिकट दिया है, जो बॉलीवुड अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की भतीजी हैं। वहीं आईएसएफ के ज्यादातर प्रत्याशी मुस्लिम ही हैं।
आईएसएफ बिगाड़ सकती है खेल
आईएसएफ ने पिछला विस चुनाव कांग्रेस व वाममोर्चा के गठबंधन में शामिल होकर लड़ा था। गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस व वाममोर्चा जैसी बंगाल की दो सबसे पुराने दलों को कोई सीट नहीं मिली जबकि आईएसएफ एक सीट जीतने में सफल रही।
इसलिए नहीं बनी बात
सियासी विश्लेषकों का कहना है कि आईएसएफ को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है। पिछले पंचायत चुनाव में भी उसका प्रदर्शन अच्छा रहा था। सूत्रों के मुताबिक आईएसएफ 14 सीटें चाहती थी जबकि वाममोर्चा चार सीटें देने को राजी थी इसलिए बात नहीं बनी।
एक सीट ऐसी भी
बंगाल में मुर्शिदाबाद ऐसी सीट है, जहां आज तक मुस्लिम प्रत्याशी को छोड़कर कोई और जीत दर्ज नहीं कर पाया, फिर वह किसी भी पार्टी का क्यों न रहा हो। 1952 में पहले लोस चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद खुदा बख्श से लेकर 2019 में तृणमूल के अबू ताहेर खान तक सभी मुस्लिम समुदाय से हैं। इस बार भी यहां तृणमूल से अबू ताहेर खान हैं जबकि माकपा से मोहम्मद सलीम हैं। भाजपा ने यहां गौरी शंकर घोष को टिकट दिया है।
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