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Lok Sabha Election 2024: केरल में बदलते सियासी समीकरण; क्या खुलेगा भाजपा का खाता या कांग्रेस और लेफ्ट में ही मुख्य मुकाबला?

Kerala Lok Sabha Election 2024 दक्षिण का किला भेदने की योजना में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती केरल है जहां पार्टी का अब तक खाता नहीं खुल सका है। हालांकि बदले सियासी समीकरण में भाजपा चाहेगी कि वह कुछ सीटे जरूर जीते। वहीं कांग्रेस और लेफ्ट मजबूती से मैदान में डटे हुए हैं। जानिए कौन से फैक्टर तय करेंगे केरल में चुनाव परिणाम।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Published: Sat, 27 Apr 2024 01:35 PM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2024 01:35 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: केरल में धार्मिक एवं जातीय समूह भी चुनावी समीकरण तय करते हैं।

नीलू रंजन, तिरुवनंतपुरम। केरल में 2019 की तरह इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगियों की बढ़त दिख रही है। पिछली बार सिर्फ एक सीट पर सिमटा वामपंथी गठबंधन (एलडीएफ) अपने शीर्ष नेताओं को मैदान में उतारकर खोई हुई जमीन हथियाने की कोशिश में है, लेकिन दो-तीन सीटों से ज्यादा पर वह यूडीफ के उम्मीदवारों को टक्कर देने की स्थिति में नहीं दिख रहा है।

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पिछले तीन चुनावों में वोट प्रतिशत दोगुना करने बावजूद खाता खोलने में विफल रही भाजपा इस बार केरल में कमल खिलाने को बेताब दिख रही है। यूडीएफ, एलडीएफ और एनडीए के बीच तीखी लड़ाई में इस बार पिछले चार दशकों से स्थापित धार्मिक व जातीय समूहों के राजनीतिक समीकरण बनने के भी स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।

केरल में मुस्लिम, इडवा, ईसाई, नायर और अनुसूचित जाति राजनीति की दिशा तय करते हैं। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की लगभग 28 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है और यह 1979 से यूडीएफ का हिस्सा है। इसी तरह से ईसाई मुख्यतौर पर कांग्रेस का वोटबैंक रहे हैं।

उत्तरी केरल में कांग्रेस का दबदबा

इन दोनों को मिलाकर उत्तरी केरल के मुस्लिम और ईसाई बहुल सीटें कांग्रेस व यूडीएफ के लिए अजेय गढ़ बन जाती हैं। राहुल गांधी के लिए वायनाड भी इसी समीकरण के कारण सबसे सुरक्षित बन गई है, जहां मुस्लिम और ईसाई आबादी लगभग 59 प्रतिशत है। इसके साथ ही लगभग 10 प्रतिशत की आबादी वाली नायर जाति भी मूलतः कांग्रेस का वोटबैंक रही है। यह मध्य व दक्षिण केरल में यूडीएफ के उम्मीदवारों की जीत में अहम भूमिका निभाती है।

अभी तक भाजपा के लिए अभेद्य

आरएसएस का संगठन बहुत मजबूत होने के बावजूद भाजपा के लिए केरल अभेद्य होने के पीछे इडवा जाति की अहम भूमिका है। केरल में लगभग 23 प्रतिशत आबादी वाली इडवा ओबीसी जाति है और सीपीएम काडर का मूल आधार यही है। इसके साथ ही नौ प्रतिशत आबादी वाली एससी और एसटी भी सीपीएम व वामपंथी दलों के साथ रही है।

इडवा वोटबैंक के साथ मिलकर यह कई सीटों पर एलडीएफ गठबंधन को मजबूत राजनीतिक आधार देता है । 2019 में केरल से चुनाव लड़े राहुल गांधी के पीएम बनने की संभावना ने यूडीएफ के कोर वोटबैंक साथ-साथ एलडीएफ के भी कुछ समर्थकों ने यूडीएफ उम्मीदवारों को वोट दिया। इससे कांग्रेस के अकेले 15 सीटों के साथ यूडीएफ ने 19 सीटें जीतीं।

इस चुनाव में कांग्रेस की बढ़त होने के पीछे मुस्लिम व ईसाई वोटरों की यूडीएफ के प्रति प्रतिबद्धता कायम रहना है। पीएफआई के राजनीतिक संगठन एसडीपीआई ने कांग्रेस को समर्थन देने का एलान किया है। वैसे कांग्रेस ने ईसाई वोटरों की नाराजगी से बचने के लिए खुले तौर पर एसडीपीआई का समर्थन लेने से इन्कार कर दिया है, लेकिन इससे मुस्लिम वोटरों के कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के साथ होने का संकेत मिल जाता है।

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भाजपा का बढ़ता ग्राफ

चार दशकों से यूडीएफ और एलडीएफ के बीच का राजनीतिक संतुलन भाजपा के बढ़ते ग्राफ के कारण बिगड़ने लगा है। भाजपा का वोट प्रतिशत 2009 में 6.3 से बढ़कर 2019 में 13 हो गया। 2014 में तिरुअनंतपुरम में भाजपा के ओ राजगोपाल से कांग्रेस के शशि थरूर 14 हजार मतों से जीते थे। 2015 में भाजपा ने सीपीएम का इडवा वोटबैंक हथियाने के लिए भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के गठन और उससे गठबंधन के साथ गंभीर प्रयास शुरू किया।

इसका गठन तुषार वेल्लाप्पल्ली ने किया है, जो श्री नारायण धर्म परिपालन योगम प्रमुख वेल्लाप्पल्ली नतेशन के बेटे हैं। यह इडवा जाति का सामाजिक संगठन है। 2019 में भाजपा ने बीडीजेएस के बनैर तले तुषार वेल्लाप्पल्ली को वायनाड से खड़ा किया था। भाजपा मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के सहारे सीपीएम के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

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ईसाई समुदाय में बढ़ी पैठ

पिछले एक साल में विभिन्न ईसाई धर्मगुरुओं के बयान व कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी का भाजपा में शामिल होना ईसाई समुदाय के बीच बढ़ती स्वीकार्यता का संकेत है। भाजपा ने अनिल एंटनी को पथनमथिट्टा से उम्मीदवार बनाया है। भाजपा कुछ हद तक कांग्रेस के नायर वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल है। नायर समुदाय के बीच स्वीकार्यता बढ़ती है, जिसके संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा केरल में खाता खोलने में कामयाब भी हो सकती है।

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