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बरसाना की गोपियों के वेलेंटाइन तो श्रीकृष्ण

सांसारिक प्रेम के पाश्चात्य पर्व वेलेंटाइन डे को भगवान श्रीकृष्ण के दीवाने ब्रजवासी अनूठे तरीके से मनाते हैं। वृषभान नंदिनी के निज धाम बरसाना के गहवरवन में रहने वाली दर्जनों गोपियां आज भी राधा के प्रियतम कान्हा को अपना प्रेमी मानती हैं। ये युवतियां मीराबाई की तरह खुद को श्रीकृष्ण के लिए समर्पित कर चुकी हैं।

By Edited By: Published: Fri, 14 Feb 2014 11:47 AM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2014 01:32 PM (IST)

मथुरा, [किशन चौहान]। सांसारिक प्रेम के पाश्चात्य पर्व वेलेंटाइन डे को भगवान श्रीकृष्ण के दीवाने ब्रजवासी अनूठे तरीके से मनाते हैं। वृषभान नंदिनी के निज धाम बरसाना के गहवरवन में रहने वाली दर्जनों गोपियां आज भी राधा के प्रियतम कान्हा को अपना प्रेमी मानती हैं। ये युवतियां मीराबाई की तरह खुद को श्रीकृष्ण के लिए समर्पित कर चुकी हैं।

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मान मंदिर में रहने वाली विभिन्न प्रांतों की युवतियों का आज भी जीवन द्वापर कालीन गोपियों की तरह है। वो कहती हैं की असली वेलेंटाइन तो श्रीकृष्ण हैं, जो प्रेम और उसका अर्थ जानते हैं। मानमंदिर में कथा वाचक मुरलिका शर्मा का कहती हैं कि जहां इष्ट को प्रसन्न करने की चेष्टा हो, उसी को प्रेम की संज्ञा दी गई है। श्रीकृष्ण प्रेम के सच्चे परम प्रकाशक हैं। राजकोट की माधुरी कहती हैं कि सांसारिक लोग इस पर्व को माया के वशीभूत होकर मनाते हैं। जबकि यह संसार विनाशी और भगवान अविनाशी हैं। खामनी (हरियाणा) की देवी कहती हैं कि सच्चा प्रेम तो भगवान के पास है, जिसे हमारी संस्कृति दर्शाती है। आगरा की जयप्रिया ने बताया कि आजकल जो लोग सच्चे प्यार की बात करते हैं, जीने-मरने की कसमें खाते हैं, उन्हें स्वयं नहीं पता कि वो कब तक जीवित रहेंगे। वेलेंटाइन-डे का ये पर्व झूठ की बुनियाद पर टिका है।

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उदयपुर की मीरादासी का कहना है कि सभी लोग ममता रूपी अंधकार में सो रहे हैं। मध्य प्रदेश के सागर की शिवानी तिवारी कहती हैं कि वास्तविक प्रेम तो भगवान श्रीकृष्ण ने किया है, जिसकी बांसुरी की धुन पर गोपियां सुध-बुध खोकर नाचती हैं। मध्य प्रदेश के ही सिमराई की रासेश्वरी बताती हैं कि यह संसार तो सिर्फ एक सपना है, ईश्वर ही सत्य है। खायरा की रामा ने बताया जो भगवान को अपना सर्वस्व समर्पित कर उसके प्रेम में पागल हो जाता है, वही सच्चा प्रेम है।

श्रीनाथजी को भी चढ़ा था प्यार का बुखार

आंखों के रास्ते दिल में उतरने वाला प्यार का खुमार एक बार जिंदगी में आ जाए, तो धड़कनों के साथ ही जाता है। देवता, मानव, ऋषि, मुनि, पशु पक्षी कोई भी इस रोग से अछूता नहीं रहा है। प्यार के सुखद अहसास और अनमोल पलों की कशिश ने भगवान श्रीनाथजी को भी अपने बंधन में बांध लिया। अजब कुमारी के प्रेम का समर्पण और विश्वास श्रीनाथजी को राजस्थान तक खींच ले गया। महबूब से मिलने की चाहत ने 700 किमी लंबी गुफा बनाने पर मजबूर कर दिया।

मेवाड़ की रहने वाली अजब कुमारी अपने बीमार पिता को ठीक करने की मन्नत से श्रीनाथजी के दर्शन करने आईं। संतों और ग्रंथों के अनुसार बांके प्रभु की छवि निहार अजब कुमारी ने ठाकुर को मन से अपना पति मान लिया। वह तलहटी में रहकर सेवा करने लगीं। प्रभु ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिया, तो अजब कुमारी ने नाथद्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने का आग्रह किया। भगवान ने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। लेकिन भक्त के वशीभूत भगवान ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी का आग्रह मान लिया। मान्यता है कि इस गुफा के रास्ते प्रभु सुबह नाथद्वारा चले जाते हैं और नयनों में नींद भरते ही वापस घर लौट आते हैं।


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