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बंधन जो स्वतंत्रता देता है

प्रेम व स्नेह का बंधन और रक्षा का संकल्प। यही है रक्षा बंधन के त्योहार के पीछे निहित दर्शन। हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहार सिर्फ मौज-मस्ती व खाने-पीने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन त्योहारों के माध्यम से जीवन में नव-चेतना के प्राण फूंकने का प्रयास होता है। रक्षा बंधन के पर्व पर हम परंपरागत मूल्यों स

By Edited By: Published: Wed, 06 Aug 2014 11:26 AM (IST)Updated: Wed, 06 Aug 2014 11:52 AM (IST)
बंधन जो स्वतंत्रता देता है

[रक्षा बंधन (10 अगस्त) पर विशेष..]

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प्रेम व स्नेह का बंधन और रक्षा का संकल्प। यही है रक्षा बंधन के त्योहार के पीछे निहित दर्शन। हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहार सिर्फ मौज-मस्ती व खाने-पीने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन त्योहारों के माध्यम से जीवन में नव-चेतना के प्राण फूंकने का प्रयास होता है। रक्षा बंधन के पर्व पर हम परंपरागत मूल्यों से ऊर्जा ग्रहण करते हैं और उससे अपने जीवन को अनुप्राणित करते हैं। रक्षा करने का भाव एक ऐसा भाव है, जो हमें अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा तो देता ही है, वहीं दूसरों को भी निर्भय प्रदान करने की स्वतंत्रता देता है। रक्षा बंधन का त्योहार हालांकि भाई-बहन के प्रेमपूर्ण संबंधों और भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प तक ही सीमित रह गया है, लेकिन इस त्योहार के पीछे व्यापक संदेश निहित है। इसमें बहन की रक्षा, परिवार की रक्षा, समाज की रक्षा, देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, अपनी संस्कृति की रक्षा आदि का भाव सम्मिलित है।

वहीं रक्षा बंधन में प्रयुक्त शब्द 'बंधन' भले ही नकारात्मक दिखे, लेकिन यहां यह अत्यंत सकारात्मक है। अच्छे प्रयोजन के लिए स्वयं को या किसी को बंधन में बांधना निजी स्वतंत्रता का सूचक है। यह हमारी आत्मिक स्वतंत्रता की ओर इंगित करता है। रक्षा बंधन हमें स्वतंत्रता देता है स्वयं को इस योग्य बनाने का ताकि हम रक्षा कर सकें अपने बल के द्वारा, अपनी बुद्धि के द्वारा और अपनी विद्या के द्वारा। बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधती है, तो वह अपनी बहन को अभय प्रदान करता है। बहन स्वतंत्रता का अनुभव करती है। हमारे सैनिक देश की रक्षा का संकल्प लेकर देश को अभय प्रदान करते हैं।

हमारे पौराणिक आख्यानों में भी रक्षा-बंधन रक्षा करने से ही संबंधित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। मान्यता है कि तभी से रक्षा के लिए राखी बांधने की प्रथा शुरू हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार, ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बांधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बांधते हैं।

महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को राखी बांधने का वृत्तांत मिलता है। महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर पट्टी बांध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।

पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि के अभिमान को रक्षा बंधन के दिन ही चकानाचूर कर दिया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर अपने जनेऊ बदलते हैं। इसे 'श्रावणी' तथा 'सलोना' पर्व भी कहते हैं।

रक्षा बंधन पर्व पर हमें मानवीय मूल्यों की रक्षा करनी है। आज हमारी बहनें सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में हमें उनकी रक्षा का व्रत लेना होगा, इससे हमारी भारतीय समाज और संस्कृति की भी रक्षा हो सकेगी। चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुंचा था। आज भी हम देश की सभी बहनों की रक्षा का संकल्प लें। साथ ही भारतीय संस्कृति और मूल्यों की रक्षा के सूत्र भी हम एक-दूसरे को बांधें और प्रतिज्ञा करें कि हम नारी के सम्मान की रक्षा करेंगे। तभी रक्षा बंधन सार्थक होगा।

[डॉ. अनेकांत कुमार जैन]

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