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रावण से बड़ा बुद्धिजीवी पैदा नहीं हुआ, लेकिन उसके नहीं थे 10 सिर!

रावण के बारे में जो जानकारियां मिली हैं वो वाकई चौंका देने वाली हैं, ये सभी मानने लगे हैं कि रावण बहुत बड़ा ज्ञानी पुरुष था लेकिन आपको ये नहीं पता होगा कि उसके 10 सिर नहीं थे।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Tue, 14 Jun 2016 03:06 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jun 2016 04:29 PM (IST)

रामायण में बुराई पर अच्छाई की जीत का पाठ हमें हमेशा से ही पढ़ाया जाता रहा है। राम और रावण के बीच का युद्ध, जिसमें राम सत्य के प्रतीक थे तो वहीं रावण असत्य का पताका हाथ में लिए था। हमें रावण को हमेशा अधर्मी और शैतान का रूप बताया गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण एक ऐसा रूप था, जिसके ज्ञान के आगे देवता भी नतमस्तक हो जाते थे! अपनी अधर्मी छवि के बावजूद रावण के कई ऐसे उदाहरण पेश किए जिससे पता चलता है कि वो सच में एक बहुत बड़ा ज्ञानी पुरूष था।

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वेद और संस्कृत का ज्ञाता
रावण को वेद और संस्कृत का ज्ञान था। वो साम वेद में निपुण था। उसने शिवतांडव, युद्धीशा तंत्र और प्रकुठा कामधेनु जैसी कृतियों की रचना की। साम वेद के अलावा उसे बाकी तीनों वेदों का भी ज्ञान था। इतना ही नहीं पद पथ में भी उसे महारत हासिल थी। पद पथ एक तरीका है वेदों को पढ़ने का।

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आयुर्वेद का ज्ञान
रावण ने आयुर्वेद में भी काफी योगदान दिया था। अर्क प्रकाश नाम की एक किताब भी रावण ने लिखी थी, जिसमें आयुर्वेद से जुड़ी कई जानकारियां हैं। रावण को ऐसे चावल भी बनाने आते थे जिसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन होता था। इन्हीं चावलों को वो सीता जी को दिया करता था।


कविताएं लिखने में भी पारंगत
रावण सिर्फ एक योद्धा नहीं था। उसने कई कविताओं और श्लोकों की भी रचनाएं की थीं। शिवतांडव इन्हीं रचनाओं में से एक है। रावण ने भगवान शिव को खुश करने के लिए 'मैं कब खुश होउंगा' लिखी। भगवान शिव इतने खुश हुए कि उन्होंने रावण को वरदान दिया दे दिया।

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संगीत का भी ज्ञान
रावण को संगीत का भी शौक़ था। रूद्र वीणा बजाने में रावण को हराना लगभग नामुमकिन था। रावण जब भी परेशान होता वो रूद्र वीणा बजाता था। इतना ही नहीं रावण ने वायलन भी बनाया था जिसे रावणहथा कहते थे। आज भी राजस्थान में इसे बजाया जाता है।


स्त्री रोगविज्ञान और बाल चिकित्सा में भी योगदान
अपने आयुर्वेद के ज्ञान से रावण ने स्त्री रोगविज्ञान और बाल चिकित्सा के ऊपर भी कई किताबें लिखी थीं। इन किताबों में 100 से ज्यादा बीमारियों का इलाज लिखा हुआ है। इन किताबों को उसने अपनी पत्नी मंदोदरी के कहने पर लिखा था।

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रावण ने युद्ध के लिए की थी राम की मदद
भगवान राम को समुद्र के ऊपर पुल बनाने से पहले यज्ञ करना था। यज्ञ तभी सफल होता जब भगवान राम के साथ देवी सीता बैठतीं। राम के यज्ञ को सफल करने के लिए रावण खुद देवी सीता को ले कर आया था। यज्ञ खत्म होने के बाद जब राम ने रावण का आशीर्वाद मांगा तो रावण ने 'विजयी भव' कहा था।


ज्ञान का सागर 'रावण'
युद्ध में हार के बाद जब रावण अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान प्राप्त करने को कहा। लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठ गए। रावण ने लक्ष्मण से कहा कि अगर आपको अपने गुरू से ज्ञान प्राप्त करना है तो हमेशा उनके चरणों में बैठना चाहिए। ये परंपरा आज भी चल रही है।

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सीता रावण की बेटी थी
रामायण कई देशों में ग्रंथ की तरह अपनाई गई है। थाइलैंड में जो रामायण है उसके अनुसार सीता रावण की बेटी थी, जिसे एक भविष्यवाणी के बाद रावण ने जमीन में दफना दिया था। भविष्यवाणी में कहा गया था कि 'यही लड़की तेरी मौत का कारण बनेगी'। बाद में देवी सीता जनक को मिलीं। यही कारण था कि रावण ने कभी भी देवी सीता के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया।


ग्रह नक्षत्रों को अपने हिसाब से चलाता था रावण
मेघनाथ के जन्म से पहले रावण ने ग्रह नक्षत्रों को अपने हिसाब से सजा लिया था, जिससे उसका होने वाला पुत्र अमर हो जाए। लेकिन आखिरी वक्त में शनि ने अपनी चाल बदल ली थी। रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने शनी को अपने पास बंदी बना लिया था।

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रावण के दस सिर नहीं थे
अकसर रावण को दस सिरों वाला समझा जाता है, लेकिन ये सही नहीं है। रावण जब छोटा था तब उसकी मां ने उसे 9 मोतियों वाला हार पहनाया था। उस हार में रावण के चेहरे की छाया दिखती थी। साथ ही ये भी कहा जाता है कि रावण के अंदर दस सिरों जितना दिमाग था। यही कारण था कि रावण को दशानन कहा गया है।

नोट- ये जानकारी सिर्फ तथ्यों और रिसर्च पर आधारित है।

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