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उत्तराखंड का गुजराती संस्था की सेवा लेने से इन्कार

केदार घाटी में शवों को तलाशने के लिए राज्य सरकार ने पहले तो सूरत, गुजरात की एक संस्था को बुलावा भेज दिया और जब वह संस्था लाव-लश्कर के साथ आ गई तो सरकार बुलावे से ही मुकर रही है। बगैर कोई शुल्क लिए सेवा के लिए देहरादून पहुंची 14 सदस्यीय इस टीम के पास कठिन परिस्थितियों में काम करने का खासा अनुभव है। टीम तीन दिन से सरकारी गलियारों की खाक छान रही है, लेकिन सरकार है कि उसे पास ही नहीं फटकने दे रही। यह तब है जब केदार घाटी में शवों को खोजना और उनका दाह संस्कार करना मुश्किल हो रहा है। यह संस्था मलबे में शव ढूंढ़ने के साथ ही उनका धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार भी करती है। संस्था में अलग-अलग धर्मो के सदस्य शामिल हैं।

By Edited By: Published: Tue, 02 Jul 2013 06:24 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2013 06:25 AM (IST)

ऋषिकेश [देवेंद्र सती/हरीश तिवारी]। केदार घाटी में शवों को तलाशने के लिए राज्य सरकार ने पहले तो सूरत, गुजरात की एक संस्था को बुलावा भेज दिया और जब वह संस्था लाव-लश्कर के साथ आ गई तो सरकार बुलावे से ही मुकर रही है। बगैर कोई शुल्क लिए सेवा के लिए देहरादून पहुंची 14 सदस्यीय इस टीम के पास कठिन परिस्थितियों में काम करने का खासा अनुभव है। टीम तीन दिन से सरकारी गलियारों की खाक छान रही है, लेकिन सरकार है कि उसे पास ही नहीं फटकने दे रही। यह तब है जब केदार घाटी में शवों को खोजना और उनका दाह संस्कार करना मुश्किल हो रहा है। यह संस्था मलबे में शव ढूंढ़ने के साथ ही उनका धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार भी करती है। संस्था में अलग-अलग धर्मो के सदस्य शामिल हैं।

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राज्य सरकार अब सूरत की संस्था को बुलावा न भेजने की बात भले कर रही हो, लेकिन खुद उसी ने टीम के खाने-ठहरने की व्यवस्था की हुई है। सरकार के रवैये से टीम आहत है, लेकिन अपनी उपेक्षा-अनदेखी पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं। सियासी गलियारों में इसके पीछे गुजरात फैक्टर को देखा जा रहा है। केदार घाटी में तबाही का पता चलने पर सूरत की एकता ट्रस्ट ने 25 जून को मुख्यमंत्री को भेजे मेल के जरिये आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मलबे में दबे शवों को तलाशने और उनका अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई। संस्था ने बताया कि उसके पास इस तरह के काम का अनुभव है। भुज में आए भूकंप और चेन्नई में सुनामी में मारे गए लोगों के शव ढूंढने में टीम के लोगों ने मदद की थी।

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संस्था के प्रस्ताव पर गृह विभाग के प्रमुख सचिव ओम प्रकाश के कार्यालय से 26 जून को इस संबंध में मेल किया गया कि संस्था की सेवा लिए जाने की स्थिति में उसके सदस्यों को हवाई यात्रा और मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाएगा। संस्था ने इस पर हामी भरी तो प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय से 27 जून को एक और मेल किया गया कि टीम सदस्यों को देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डे से आपदा प्रभावित क्षेत्र तक हवाई मार्ग से ले जाने के साथ वहां प्रवास के दौरान जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। विषम क्षेत्र का हवाला देकर संस्था को टीम सदस्यों के स्वास्थ्य पहलुओं पर भी गौर करने का सुझाव दिया गया।

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संस्था के चेयरमैन अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनकी टीम के सदस्य 29 जून को हवाई मार्ग से देहरादून पहुंचे। उन्होंने प्रमुख सचिव गृह को जौलीग्रांट पहुंचने की जानकारी दी तो उनसे वापस लौटने का आग्रह किया गया। रहमान के अनुसार शासन ने वापसी के लिए हेलीकॉप्टर का इंतजाम करने के साथ ही यहां आने पर हुआ खर्च लौटाने का ऑफर भी दे डाला। रहमान बताते हैं कि चूंकि वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव से अपने खर्चे पर यहां आए हैं, लिहाजा उन्होंने प्रमुख सचिव से सेवा का मौका देने की गुजारिश की। इस पर कुछ पुलिस कर्मी टीम के पाए आए और उसें ऋषिकेश में माता मंदिर धर्मशाला में ठहरा गए। 29 जून से टीम केदारघाटी में रवानगी के आदेश का इंतजार कर रही है।

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टीम में शामिल डॉ. इमरान मुल्ला दो दिन से सीएम व अधिकारियों से मिलने के लिए सचिवालय के गलियारों धक्के खा रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है। एक स्थानीय एनजीओ के माध्यम से भी संस्था ने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की, पर इंतजार खत्म नहीं हुआ। टीम लीडर अब्दुल का कहना है कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि बुलाने के बाद सरकार उन्हें केदारघाटी क्यों नहीं भेज रही?

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