भारतीय ट्रेनों में कैसे हुई टॉयलेट की शुरुआत, जानें पूरी कहानी
ट्रेनों में बायो टॉयलेट कहां से आया और कब इन्हें बनाया गया। इसके पीछे एक मजेदार पत्र है जिसे भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट की शुरुआत का जिम्मेदार माना जाता है।
नई दिल्ली। भारतीय रेलवे में अब बायो टॉयलेट लगाए जाने की शुरुआत हो चुकी है। ट्रेन में टॉयलेट की गंदगी और सुविधाओं को लेकर हर कोई शिकायत करता नजर आता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक वक्त ऐसा भी था जब भारत में चलने वाली किसी भी ट्रेन में टॉयलेट नहीं था और यात्रियों को ट्रेन रूकने पर प्लेटफॉर्म बने टॉयलेट्स का उपयोग करना पड़ता था। तो फिर सवाल उठता है कि ट्रेनों में यह टॉयलेट आए कहां से और कब इन्हें बनाया गया। इसके पीछे एक मजेदार पत्र है जिसे भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट की शुरुआत का जिम्मेदार माना जाता है।
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यह है कहानी
1909 में ओखिल चंद्र सेन नाम का एक व्यक्ति ट्रेन में यात्रा कर रहा था। अहमदपुर स्टेशन पर ट्रेन रूकी और ओखिल भागते हुए टॉयलेट यूज करने पहुंचे। जब वो टॉयलेट में थे तभी ट्रेन चल पड़ी और वो पीछे रह गए। ट्रेन में टॉयलेट ना होने से नाराज ओखिल ने एक मजेदार पत्र पश्चिम बंगाल के साहिबगंज डिविजनल रेलवे को लिखा। माना जाता है कि इस पत्र के बाद ही ट्रेन में टॉयलेट लगना शुरू हुए। यह पत्र आज भी दिल्ली स्थिति रेलवे संग्रहालय में रखा हुआ है।
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यह था पत्र का मजमून
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प्रिय श्रीमान,
मैं पैसेजंर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन आया और कटहल की वजह से मेरा पेट फूल रहा था। मैं शौच के लिए वहां एकांत में गया। मैं शौच से निवृत्त हो ही रहा था कि ट्रेन के गार्ड से सिटी बजा दी। ट्रेन जाते हुए देख मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ में धोती पकड़कर दौड़ा, लेकिन धोती उलझने की वजह से प्लेटफार्म पर गिर पड़ा।
मेरी धोती खुल गई और मुझे देखकर वहां मौजूद सभी महिला-पुरुष हंसने लगे जिसके चलते मुझे शर्मिन्दा होना पड़ा। मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया। यह कितनी बुरी बात है कि एक यात्री शौच के लिए गया हो और ट्रेन का गार्ड कुछ मिनट उसका इंतजार भी नहीं कर सकता। इसलिए मेरा विनम्र निवेदन है कि जनता की भलाई के लिए उस गार्ड पर भारी जुर्माना करें।
आपका विश्वसनीय सेवक
ओखिल चंद्र सेन
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