एस.के. सिंह/अनुराग मिश्र, नई दिल्ली। अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक को दिए इंटरव्यू में भारत-चीन संबंधों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने सबको चौंका दिया है। चीन को भी। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार के साथ रिश्तों में तल्खी कम करने वाला मोदी का बयान आपसी कड़वाहट तो दूर कर ही सकता है, इससे पूरे एशिया क्षेत्र में स्थिरता आ सकती है। यह द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने में भी सहायक होगा। हालांकि चीन का पुराना रिकॉर्ड देखते हुए वे सतर्क रहने की भी सलाह देते हैं और कहते हैं कि संबंधों में नरमी काफी हद तक चीन के रवैये पर निर्भर करेगी। वैसे, चीन के साथ कटुता कम करने के प्रयास दूसरे देश भी कर रहे हैं। हाल में अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने ऐसे संकेत दिए हैं, लेकिन वह अभी बातचीत के ‘टोन’ तक ही सीमित है।

इंटरव्यू में पीएम मोदी ने कहा, “भारत के लिए चीन के साथ रिश्ते महत्वपूर्ण हैं। मेरा मानना है कि हमें सीमा पर लंबे समय से बनी स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है…। भारत और चीन के बीच स्थिर और शांतिपूर्ण संबंध न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि इस क्षेत्र और विश्व के लिए अहम है। मेरी उम्मीद और मेरा विश्वास है कि कूटनीति और सैन्य स्तर पर सकारात्मक तथा रचनात्मक द्विपक्षीय वार्ता से हम अपनी सीमाओं पर पुनः शांति बहाल करने में सफल होंगे।”

जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने टिप्पणी की, “चीन-भारत के बीच स्थिर संबंध दोनों देशों के हित में है, यह इस क्षेत्र में और इससे बाहर शांति और विकास में सहायक होगा। सीमा का सवाल चीन-भारत संबंधों की संपूर्णता को नहीं दर्शाता...। हमें उम्मीद है कि भारत दीर्घकालिक नजरिए से चीन के साथ मिल कर काम करेगा।”

भारत-चीन का हाल का सीमा तनाव 2020 से बना हुआ है। दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की 21 और डब्लूएमसीसी (वर्किंग मेकैनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन) स्तर की 26 दौर की बात हो चुकी है, लेकिन अभी तक समाधान नहीं निकला है। पूर्वी लद्दाख में चीन सीमा पर 50 हजार से अधिक भारतीय सैनिक तैनात हैं।

कूटनीति और सहयोग की इच्छा का संकेत

थिंक टैंक पार्ले पॉलिसी इनीशिएटिव में दक्षिण एशिया मामलों के विशेष सलाहकार नीरज सिंह मन्हास जागरण प्राइम से कहते हैं, “बीते चार वर्षों में भारत और चीन के संबंध खराब हुए हैं। दोनों पक्षों की ओर से बढ़ी हुई सैन्य तैनाती कटु संबंधों को सीधे तौर पर दिखाती है।” इसलिए चीन के साथ संबंध सुधारने पर प्रधानमंत्री का बयान कूटनीति और सहयोग की इच्छा का संकेत देता है।

दून विश्वविद्यालय में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर मधुरेंद्र कुमार झा के अनुसार, “कुछ समय पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि सीमा विवाद और गलवान की घटना से भारत-चीन दोनों को नुकसान ही हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान भी उसी दिशा में है।” चीन मामलों के जानकार राजीव रंजन कहते हैं, “आप पड़ोसी तो बदल नहीं सकते। इसलिए भारत की पहल स्वागत योग्य है। चीन ने अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारे हैं। भारत की सकारात्मक पहल भी सराहनीय है।”

थिंक टैंक कुबेरनेइन इनिशिएटिव में प्रोग्राम मैनेजर और इंडो-पैसिफिक भू-राजनीति में विश्लेषक आकाश साहू का कहना है, “पीएम मोदी का बयान संभावनाओं को देखते हुए काफी अहम है। उनकी टिप्पणी को चीनी पक्ष ने अच्छी तरह से स्वीकार किया है। यह संकेत है कि आने वाले समय में संबंधों में नरमी आ सकती है। चीन के साथ राजनीतिक और रचनात्मक संवाद का अधिक आदान-प्रदान संभव है।”

दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत

इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंसेज रिसर्च और इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के सीनियर फेलो अतुल भारद्वाज के अनुसार, “मोदी पहले भी कह चुके हैं कि यह लड़ाई-झगड़े का वक्त नहीं, तनाव कम करना आवश्यक है। यही मौके की नजाकत है। सीमा विवाद डिप्लोमेसी और बातचीत से ही हल होते हैं।”

भारद्वाज के मुताबिक पांच ट्रिलियन की इकोनॉमी बनने के लिए भारत को चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को और सुदृढ़ करने की जरूरत है। वे कहते हैं, “चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। भारतीय अर्थव्यवस्था तेज छलांग मार रही है। सेमीकंडक्टर और टेक्नोलॉजी के स्तर पर भारत को भी चीन की जरूरत है। चीन हमारा पड़ोसी है, इसलिए उसके साथ हमारे व्यापार की लागत भी कम होती है। भारत खुद को चीन से डिलिंक नहीं कर सकता।”

मधुरेंद्र झा एक चीनी कहावत बताते हुए कहते हैं, “नजदीक का पड़ोसी दूर के रिश्तेदार से बेहतर है। चीन हमारा पड़ोसी है और वह हमारे दूर के रिश्तेदार से बेहतर होगा। रिश्ते सुधरने से व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ होंगे, सांस्कृतिक संबंध मजबूत होगा, एक-दूसरे के प्रति भ्रांतियां भी दूर हो सकेंगी।” राजीव रंजन के अनुसार, “रिश्तों में नरमी आने से व्यापारिक संबंध भी बेहतर होंगे। यह भारत के साथ वैश्विक परिदृश्य के लिए भी अच्छा है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते लगातार मज़बूत हुए हैं। भारत-चीन व्यापार लगातार बढ़ रहा है।”

नीरज मन्हास भी मानते हैं कि मोदी का बयान चीन के साथ स्थिर और रचनात्मक संबंध बनाए रखने के महत्व को दर्शाता है। भारत और चीन के बीच बेहतर संबंध से क्षेत्र में स्थिरता बढ़ेगी, जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। तनाव कम होने से व्यापार और निवेश के लिए माहौल बनेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा।

चीन, भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझीदार है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने चीन को 15 अरब डॉलर का निर्यात और वहां से 98 अरब डॉलर का आयात किया था। इस तरह कुल व्यापार 113 अरब डॉलर का रहा। भारत के कुल विदेश व्यापार में चीन का हिस्सा 9.75% था। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। वर्ष 2022-23 में उसके साथ भारत ने 129 अरब डॉलर का कारोबार किया और भारत के कुल विदेश व्यापार में अमेरिका का हिस्सा 11% था।

ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणी

चीन सरकार का मुखपत्र कहे जाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को विशेष महत्व देते हुए अमेरिका पर उंगली उठाई है। उसने लिखा है, “पिछले साल जापान के हिरोशिमा में जी7 बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा था, संबंध सामान्य बनाने के लिए भारत-चीन सीमा पर शांति जरूरी है, और भारत अपनी सार्वभौकिता की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। मोदी ने वह बयान पश्चिमी देशों के सामने दिया था। इस बार उनका बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका के पक्षपाती रुख के कारण चीन-भारत सीमा तनाव बढ़े हैं और भारत में चुनाव होने वाले हैं। इसलिए यह बयान ज्यादा उल्लेखनीय है।”

उसने आगे लिखा है, मोदी का यह इंटरव्यू प्रभावशाली अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक में प्रकाशित हुई है। मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि इसका मुख्य ऑडियंस अमेरिका और पश्चिमी देश हैं। उनके इस बयान को वॉशिंगटन में बैठे कुछ लोग नापसंद कर सकते हैं, जो भारत और चीन के बीच बिगड़ते रिश्तों से चीन के कमजोर होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह उन्हें क्या संदेश देना चाहता है। वॉशिंगटन ड्रैगन और हाथी के बीच टकराव बढ़ाना चाहता है, लेकिन भारत ने संयम दिखाया है…। यह (मोदी की) टिप्पणी मौजूदा भू-राजनीतिक और आर्थिक संबंधों पर भारत का नजरिया प्रस्तुत करती है…। विकास भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। चीन के साथ विवाद की स्थिति में विकास के लिए संसाधन कम होंगे। दूसरी तरफ चीन के साथ संबंधों में स्थिरता बनाए रखना भारत के लिए बेहतर भू-राजनीतिक और आर्थिक विकल्प है।

भारत को सतर्क रहने की जरूरत

ग्लोबल टाइम्स ने एक तरफ मोदी के बयान की सराहना की है तो दूसरी तरफ अपना दोहरा रवैया भी दिखाया है। संपादकीय से इतर एक अन्य लेख में उसने शंघाई अकादमी ऑफ सोशल साइंसेज के रिसर्च फेलो हू झियोंग के हवाले से लिखा है, “भारत में अभी चुनाव चल रहे हैं और मोदी की टिप्पणी वोट हासिल करने के मकसद से है। यह संभव नहीं लगता कि वे मौलिक रूप से सीमा विवाद हल करेंगे। सच तो यह है कि भारत सीमा विवाद को चीन के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है..., ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर विदेशी शक्तियों से सहानुभूति और सहयोग हासिल करना चाहता है।”

झियोंग ने यहां तक कहा कि चीन को एक तरफ भारत की दोस्ताना टिप्पणी का स्वागत करना चाहिए, तो दूसरी तरफ संभावित सैन्य संघर्ष की तैयारी करनी चाहिए। उस लेख में ग्लोबल टाइम्स ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर की सख्त बयानी का भी जिक्र किया है। उसने लिखा है, “प्रधानमंत्री की नरम भाषा के विपरीत जयशंकर कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं।”

चीन के दोहरे रवैये का एक ताजा उदाहरण भी है। भारत में इलेक्ट्रिक वाहन प्लांट लगाने के लिए टेस्ला की बात चल रही है। लेकिन ग्लोबल टाइम्स ने इसे पटरी से उतारने की कोशिश की है। एक लेख में उसने यह बताया है कि भारत में टेस्ला का प्लांट क्यों नहीं चलेगा। उसने लिखा है, टेस्ला की कारें मिड और हाई सेगमेंट के लिए हैं। कोई नहीं जानता कि भारत में इसे सफलता मिलेगी या नहीं। भारत में सप्लाई चेन के साथ चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है।

विशेषज्ञ चीन के इसी दोहरे रवैये के प्रति सतर्क रहने की सलाह देते हैं। नीरज मन्हास के अनुसार, भारत के बैकयार्ड में तीन चीनी जहाजों की उपस्थिति कई संकेत देती है। जियांग यांग होंग 01 ने अंडमान द्वीप समूह के 600 मील पश्चिम में लंगर डाला, जियांग यांग होंग 03 ने मालदीव के 350 मील का सर्वेक्षण किया और दा यांग हाओ ने मॉरीशस की पोर्ट लुइ से 1200 मील दक्षिण में। ये सभी जहाज चीनी सेना से जुड़े हैं और इनका बिना अनुमति के अन्य देशों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) में प्रवेश करने का इतिहास है। यह भारत के लिए चुनौती बढ़ाने वाला है।

नीरज के मुताबिक, “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन के साथ संबंधों में सुधार का मतलब अपने सिद्धांतों या हितों से समझौता करना नहीं है। भारत अपनी संप्रभुता पर जोर देना, राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने हितों की वकालत करना जारी रखेगा।”

आकाश के अनुसार, “उच्च स्तर पर द्विपक्षीय डायलॉग से सार्थक परिणाम निकाले जा सकते हैं, लेकिन नीति को हकीकत बनने में कुछ समय लग सकता है। दोनों देशों में व्यापार की अनंत संभावनाएं हैं। हालांकि व्यापार नीति में ऐसा परिवर्तन जिससे स्थानीय उत्पादकों के बीच चिंता पैदा हो, फिलहाल उस पर बात होने की संभावना कम है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर भारत सरकार अपना रुख नहीं बदलेगी।”

अभी तक दोनों देश अपने-अपने रुख पर कायम हैं, ऐसे में भरोसा कैसे बढ़ेगा, इस पर मधुरेंद्र कहते हैं, “हठधर्मिता तब होती है जब इतिहास को झुठलाने की कोशिश की जाती है। यह औपनिवेशिकता की देन है। चीन और भारत दोनों उसके भुक्तभोगी हैं। यह धीरे-धीरे ही बेहतर होगा। भरोसे की बुनियाद पर ही संबंध बेहतर हो सकते हैं।”

चीन-अमेरिका संबंधों में भी तनाव घटाने की कोशिश

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने बुधवार को चीन की सॉवरेन रेटिंग (आउटलुक) स्थिर से घटा कर निगेटिव कर दी। फिच का कहना है कि चीन प्रॉपर्टी सेक्टर पर निर्भर इकोनॉमी से सतत विकास वाली इकोनॉमी में बदल रहा है। इसलिए आगे अनिश्चितता बढ़ने का जोखिम है। राजकोषीय घाटा 2023 के 5.8% से बढ़ कर 2024 में 7.1% हो सकता है।

आर्थिक संकट से जूझ रहा चीन, अमेरिका से भी तनाव कम करने की कोशिश में है। उसने पिछले दिनों अमेरिकी व्यापार मंडल को आमंत्रित किया था। बाइडेन प्रशासन भी तल्खी कम करने के पक्ष में नजर आ रहा है। इसलिए अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलन चार दिन के चीन दौरे पर थीं। पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच फोन पर लंबी बातचीत भी हुई। बाइडेन ने हाल ही कहा, मैं पूरा प्रयास करूंगा कि चीन के साथ प्रतिस्पर्धा खतरनाक विवाद में न बदले। बाइडेन प्रशासन की तरफ से भी बयान आया कि जहां संभव होगा वह चीन के साथ मिलकर चलेगा और जहां जरूरी होगा उसे चुनौती भी देगा।

अतुल भारद्वाज कहते हैं, “पूरी दुनिया में इस बात पर जोर है कि तनाव कम हो और व्यापार बढ़े। अमेरिका भी चीन के साथ तनाव कम रहा है।” तनाव कम करने के लिए अमेरिका और चीन ने सितंबर 2023 में वर्किंग ग्रुप का गठन किया था। मधुरेंद्र के अनुसार, “चीन यह समझता है कि मौजूदा समय में दुनिया के साथ मिलकर रहने में ही फायदा है।”

हालांकि अभी तक यह सिर्फ बयानबाजी तक सीमित लगता है। वैश्विक इन्वेस्टमेंट फर्म नेटेक्सिस में एशिया पैसिफिक की चीफ इकोनॉमिस्ट एलिसिया गार्सिया हेरेरो ने जागरण प्राइम से कहा, “मुझे नहीं लगता कि चीन के साथ संबंधों में किसी का एक्शन अभी तक नरम हुआ है, सिर्फ टोन में नरमी आई है। मेरे विचार से आम धारणा यह बन रही है कि चीन को दरकिनार करना खतरनाक होगा।”

यह बात येलन के बयान से भी साबित होती है। चीन के चार दिवसीय दौरे की समाप्ति पर उन्होंने कहा, “बाइडेन प्रशासन अमेरिका में नौकरियों के लिए खतरा बनने वाली चीन की औद्योगिक नीति बदलने के लिए उस पर दबाव डालेगा।”

आधुनिक टेक्नोलॉजी चीन-अमेरिका विवाद का नया बिंदु है। चीन ने इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी), सोलर पैनल और बैटरी की उत्पादन क्षमता काफी बढ़ाई है। दूसरी तरफ बाइडेन प्रशासन ने भी अपने यहां इन उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति बनाई है। अमेरिका के साथ यूरोप, भारत और मेक्सिको जैसे देशों में यह चिंता हो रही है कि अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए चीन इनका सस्ता निर्यात बढ़ाएगा जिससे इन देशों की स्थानीय इंडस्ट्री प्रभावित होगी।

चीन की ईवी कंपनी बीवाइडी ने हाल ही सिर्फ 14,000 डॉलर में एसयूवी उतारी है। उसके बाद अमेरिकी ट्रेड ग्रुप अलायंस फॉर अमेरिकन मैन्युफैक्चरिंग ने चीन की ऑटो इंडस्ट्री को अमेरिकी कार निर्माताओं के अस्तित्व के लिए खतरा बताया है। अमेरिका ने चीन से कार आयात पर 25% ड्यूटी लगा रखी है, जिससे चीन से आयात लगभग रुक गया है। लेकिन मेक्सिको के साथ अमेरिका का मुक्त व्यापार समझौता है, और वहां चाइनीज कंपनियां अपने प्लांट लगा रही हैं।

विभिन्न देशों की यह चिंता वाजिब भी लगती है। नेटेक्सिस के अनुसार, वर्ष 2018 में चीन के निर्यात में ईवी, बैटरी और सोलर पैनल का हिस्सा सिर्फ एक प्रतिशत था, 2023 में यह 4.2% हो गया। इन पांच वर्षों में सोलर पैनल के ग्लोबल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 4% से बढ़ कर 88% हो गई। बैटरी निर्यात में उसकी हिस्सेदारी 11% और ईवी में 28% है।

अपनी रिसर्च रिपोर्ट में इसने लिखा है, वैसे तो चीन में ओवरकैपेसिटी को लेकर दूसरे देशों में चिंता एक दशक से भी ज्यादा समय से है, जेनेट येलन की चीन यात्रा से यह फिर चर्चा में है। पहले स्टील और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में चीन के पास ओवरकैपेसिटी थी, अब ग्रीन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में है। नेटेक्सिस के अनुसार, “चीन की ओवरकैपेसिटी के कारण आने वाले समय में भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार बाधाएं और औद्योगिक नीति में बदलाव देखने को मिल सकते हैं। ऐसा सिर्फ पश्चिम के देशों में नहीं बल्कि भारत, ब्राजील और तुर्की जैसे देशों में भी होगा।”