स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। पिछले वित्त वर्ष में 21,083 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड रक्षा निर्यात होने से भारत सरकार इस सेक्टर को लेकर उत्साहित है। सरकार ने 16 ऐसे देशों में डिफेंस अताशे की नियुक्ति की है, जहां भारत हथियारों की सप्लाई करता है या जहां संभावनाएं हैं। इसमें पोलैंड आर्मेनिया, जिबूती, पोलैंड, तंजानिया, मोजाम्बिक, इथियोपिया और फिलीपींस आदि शामिल हैं। हालांकि, डिफेंस अताशे की नियुक्ति का फायदा सिर्फ निर्यात तक ही सीमित नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक, डिफेंस अताशे इन देशों के साथ न सिर्फ भारत का सैन्य तालमेल बढ़ाने में मदद करेंगे, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव से भी निपटने में मदद करेंगे।

भारत ने इस महीने अफ्रीका के कई देशों, पोलैंड, आर्मेनिया और फिलीपींस सहित करीब 16 देशों में पहली बार अपने डिफेंस अताशे ( सैन्य प्रतिनिधि) की नियुक्ति की है। जबकि कुछ ही दिनों पहले भारत ने रूस, यूके समेत कुछ देशों से डिफेंस अताशे की संख्या में कमी की थी। अब माना जा रहा है कि नए देशों में डिफेंस अताशे नियुक्त करने के लिए यह कमी की गई थी।

डिफेंस अताशे सैन्य अधिकारी होते हैं और दूतावासों में राजदूत के मातहत काम करते हैं। यह दोनों देशों के द्विपक्षीय सैन्य और रक्षा संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। डिफेंस अताशे अपने गृह देश के सशस्त्र बलों और मेजबान देश की सेना के बीच संचार और सहयोग को बढ़ावा देने में भूमिका निभाते हैं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, इंडियन नेवी, एयरफोर्स और आर्मी से लगभग 15-16 नए अताशे पोलैंड, फिलीपींस, आर्मेनिया के साथ-साथ तंजानिया, मोज़ाम्बिक, जिबूती, इथियोपिया और आइवरी कोस्ट जैसे अफ्रीकी देशों में तैनात किए जा रहे हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत सरकार की योजना इन देशों के साथ अपने रणनीतिक संबंध मजबूत करने और हथियारों के निर्यात को बढ़ावा देने की है।

दरअसल, भारत सरकार देश से रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहे रक्षा निर्यात को लेकर उत्साहित है। बीते वित्त वर्ष यानी 2023-24 में देश से रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपये (2.63 अरब डॉलर) तक पहुंच गया। छह साल पहले इसका आकार 5 हजार करोड़ रुपए से भी कम था। प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2025 तक 5 अरब डॉलर के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है।

पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं, भारत ने पिछले कुछ सालों में अपने रक्षा उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है। कई मामलों में हम आत्मनिर्भर होने के साथ दूसरे देशों को निर्यात भी कर रहे हैं। इन देशों में डिफेंस अताशे की मौजूदगी से हमें अपना डिफेंस एक्सपोर्ट बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

भारत से रक्षा निर्यात कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है। वर्ष 2016-17 में भारत का रक्षा निर्यात 1,521 करोड़ रुपए था, जो 2020-21 में बढ़कर 8435 करोड़ और 2023-24 में बढ़कर 21,083 करोड़ रुपए हो गया।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, म्यांमार भारतीय हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है, जिसका भारत के निर्यात में 31 फीसदी हिस्सा है। श्रीलंका (19%) दूसरे स्थान पर है। मॉरीशस, नेपाल, आर्मेनिया, वियतनाम और मालदीव अन्य प्रमुख आयातक हैं।

जहाज भारत से सबसे अधिक निर्यात होने वाली रक्षा सामग्री है, जिसकी देश के कुल रक्षा निर्यात में करीब 61% हिस्सेदारी है। इसके बाद विमान, सेंसर, बख्तरबंद, तटीय निगरानी प्रणाली, कवच एमओडी लॉन्चर और एफसीएस, रडार के लिए स्पेयर, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और लाइट इंजीनियरिंग मैकेनिकल पार्ट्स आदि आते हैं।

निजी क्षेत्र की लगभग 50 भारतीय कंपनियों के साथ पब्लिक सेक्टर की डिफेंस कंपनियां और ऑर्डिनेंस फैक्टरी मिलकर यह निर्यात करती हैं। रक्षा उत्पादों के कुछ नए निर्यात डेस्टिनेशन में इटली, मालदीव, रूस, फ्रांस, नेपाल, मॉरीशस, श्रीलंका, इज़राइल, मिस्र, यूएई, इथियोपिया, सऊदी अरब, फिलीपींस, पोलैंड, स्पेन और चिली आदि शामिल हैं।

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और लेफ्टिनेंट कर्नल (रि) जेएस सोढ़ी कहते हैं, हथियारों की सबसे ज्यादा जानकारी सैन्य अधिकारियों को ही होती है। डिफेंस अताशे हमारे हथियारों के बारे में जितनी अच्छी जानकारी दूसरे देश के अपने समकक्ष अधिकारियों को दे सकते हैं, वैसा कोई नहीं दे सकता। इससे हमारे हथियारों के बारे में दूसरे देशों को बेहतर जानकारी मिल सकेगी, इसका फायदा ज्यादा निर्यात के रूप में सामने आएगा।

सोढ़ी कहते हैं, डिफेंस अताशे इन देशों के साथ सैन्य तालमेल बढ़ाने, उन्हें भारत की सैन्य क्षमताओं से अवगत कराने और चीन का प्रभाव का काउंटर करने में भी मदद करेंगे।

भंडारी ने एक और महत्वपूर्ण बात का जिक्र किया। डिफेंस अताशे की ज्यादातर नियुक्तियां अफ्रीकी देशों में हुई हैं। ये काफी अहम और सकारात्मक पहल है। दरअसल अफ्रीकी देशों में चीन का काफी दबदबा है। भारत के इस कदम से वहां भारत की स्थिति और मजबूत करने में मदद मिलेगी। भंडारी ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता चाहता है। ऐसा करने के लिए दुनिया को अपनी सैन्य ताकत का परिचय कराना जरूरी है। डिफेंस अताशे की नियुक्ति इसमें भी मददगार होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक अपनी सैन्य ताकत को लेकर अंतर्मुखी रहने के बाद भारत ने इस नीति में बदलाव किया है। मोदी सरकार के कार्यकाल में विदेश नीति के साथ सैन्य ताकत को जोड़ दिया गया है। कभी हथियार बेचने में कोताही बरतने वाला देश रक्षा निर्यात को प्रोत्साहित कर रहा है। बीते दिनों अरब सागर और अदन की खाड़ी में भारतीय नौसेना ने समुद्री लुटेरों और हूती विद्रोहियों के हमलों के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन कर भारत को अरब सागर के रक्षक की छवि बनाने में मदद की है। डिफेंस अताशे की नियुक्ति न सिर्फ हथियारों के निर्यात में मदद करेगी, बल्कि इन देशों को भारत की सैन्य ताकत से भी परिचित कराएगी।