नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

अठारहवीं लोकसभा के लिए दूसरे चरण का मतदान हो चुका है। जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के लिए ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जाएगी। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें। नॉलेज सीरीज में बात शिक्षा और महिलाओं की।

आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं ने काफी तरक्की है। इसी का परिणाम है कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में सफलता के नए प्रतिमान स्थापित कर रही है। स्टेम में जहां भारतीय महिलाओं का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है तो आर्ट्स, स्पेस और इकोनॉमिक्स में भी महिलाओं का योगदान लगातार बढ़ रहा है। महिलाओं के शिक्षा के क्षेत्र में आए आमूल-चूल बदलावों और चुनौतियों को लेकर बात करने के लिए हमने आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन के विजिटिंग फेलो डा. दुर्गेश त्रिपाठी और बेनेट यूनिवर्सिटी के आईक्यूएसी के डायरेक्टर और न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस सोसाइटी के सदस्य डा. मनीष भल्ला से बात की।

स्टेम में महिलाओं की तरक्की

भारत में स्टेम यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स के डिग्रीधारक भी अमेरिका, ब्रिटेन और चीन की तुलना में अधिक हैं। तस्वीर का सबसे शानदार पहलू यह है कि स्टेम में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के मुकाबले काफी उम्दा है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार स्टेम में भारतीय महिलाओं की संख्या 43 फीसद है जबकि इसके बनिस्पत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश पीछे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस में लड़कियों की तादाद क्रमश: 34 फीसद, 38 फीसद, 27 फीसद और 32 फीसद रही है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में स्टेम कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी एक तिहाई से भी कम ( 27 प्रतिशत) है । महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की यह घटना, जो कई देशों में आम है, को "लीक पाइपलाइन" के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि एसटीईएम करियर में सफल होने की क्षमता के बावजूद, महिलाएं आगे नहीं बढ़ती हैं या धीरे-धीरे कार्यबल से बाहर हो जाती हैं।

दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि इसमें एक ‘एम’ को जोड़ने की आवश्यकता है। वह एम प्रबंधन का है। इससे इसकी समग्र तस्वीर सामने आ सकेगी। भारत सरकार की कई योजनाओं ने इसे बदलने मे अहम भूमिका निभाई है। सर्व शिक्षा अभियान ने महिलाओं की शिक्षा की अनिवार्यता को मजबूत किया है। कई सारे कारण आर्थिक और व्यापारिक भी शामिल है। डा. मनीष भल्ला कहते हैं कि एक गृहणी जब घर के काम करती है तो वह पूरा घर मैनेज करती है। सरकार की गांव तक नीतियां पहुंची है। इंटरनेट और डिजिटलीकरण की सुविधा भी गांव के लोगों को मुहैया हो रही है। सरकार ने एक नारा दिया था बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। सरकार ने डिजिटल लाइब्रेरी जैसे इनीशिएटिव लिए जो बेहद काम के साबित हो रहे हैं। महिलाओं का साइंस विषय में बढ़ते रूझान और बेहतर करने की वजह से भी तस्वीर बदली है।

पुरुषों की बराबरी के करीब महिलाएं

1951 में पुरुषों की साक्षरता दर 27.16% और महिलाओं की सिर्फ 8.86% थी। आज 84.70% पुरुष साक्षर हैं तो महिला साक्षरता दर भी 70.3% हो गई है। यानी पुरुष साक्षरता दर तीन गुना हुई तो महिला साक्षरता दर आठ गुना हो गई है। उच्च शिक्षा में महिलाओं की प्रतिभा खौस तौर से दिख रही है। सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार स्टेम में बीते तीन सालों में पुरुषों की संख्या 12.9 लाख से कम होकर 11.9 लाख रह गई, जबकि महिलाओं की संख्या 10 लाख से बढ़कर 10.6 लाख हो गई। यानी स्टेम में महिलाएं पुरुषों की बराबरी के करीब हैं।

भारत सरकार की किरण (नॉलेज इंवाल्वमेंट रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नरचरिंग) और वुमेन साइंटिस्ट स्कीम से लड़कियों को स्टेम में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिल रही है। ऑनलाइन कोर्स भी स्टेम एजुकेशन को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो रहे हैं।”

सरकार ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत उच्चतर शिक्षा के लिए स्टेम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। प्रतिभा किरण योजना के अलावा कामकाजी महिला वैज्ञानिकों के स्थानांतरण की समस्या के समाधान के लिए मोबिलिटी कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके अतिरिक्त भारतीय महिला वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों को अमेरिका में प्रमुख संस्थानों में 3-6 माह की अवधि के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनुसंधान का अवसर प्रदान करने के लिए इंडो-यूएस फेलोशिप शुरू की गई थी। स्टेम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है, 9 से 12 कक्षाओं की मेधावी छात्राओं के लिए विज्ञान ज्योति कार्यक्रम शुरू किया गया है।

महिलाओं की शिक्षा बढ़ने के उत्प्रेरक के बारे में दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि यूनीसेफ से जुड़ी कहावत है कि एक पुरूष पढ़ता है तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है वहीं महिला के पढ़ने से पूरा परिवार शिक्षित होता है। समाजशास्त्र भी यह मानता है कि किसी बच्चे का पहला गुरू उसकी मां होती है। उससे ही वह जिंदगी का फलसफा सीखता है। महिला शिक्षा के प्रति जनजागरूकता बढ़ी। वह कहते हैं कि यूएन के एसडीजी लक्ष्यों में क्वालिटी एजुकेशन का अर्थ है कि बिना किसी लैंगिक भेदभाव, आर्थिक असमानता और किसी भी तरह के भेदभाव के बिना प्राप्त होने वाली शिक्षा ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा है। भल्ला कहते हैं कि महिलाओं को बराबरी के अवसर नौकरी में मुहैया कराए जाने की आवश्यकता है क्योंकि समानता से ही सूरत बदलेगी। वह कहते हैं कि बराबरी का पैकेज मुहैया कराना फिलवक्त बड़ी चुनौती है लेकिन समय रहते इसे दूर करना चाहिए।

दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि भारतीय परिवारों में कुछ हद तक पहले के मुकाबले जागरूकता आई है, कुछ अनुदारवादी और पूर्वाग्रहों की बेड़ियां टूटी हैं, लड़कियां खुद साहसी, सचेत और आत्मनिर्भर हो रही हैं। आर्थिक चुनौतियों ने भी लड़कियों को लड़ाई में कुछ हद तक साझेदार बनाया है। स्कूलों और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक लड़कियों की पहुंच पहले की अपेक्षा सुगम और सहज हुई है। इसीलिए सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक विसंगतियों, अड़चनों, विरोधाभासों और पितृसत्तात्मक अवरोधों के बावजूद लड़कियों की बढ़ती संख्या को एक राहत के रूप में भी देखा जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद कितनी लड़कियां करियर या आत्मनिर्णय का हक हासिल कर पाती हैं क्योंकि सेवा क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े अब भी महिलाओं के नजरिए से उत्साहवर्धक नहीं कहे जा सकते हैं।