नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।  हजारों वर्षों में पर्यावरण से हुए खिलवाड़ ने हमें और हमारी धरती को प्रभावित किया है। दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत कृषि मिट्टी निम्नीकृत या गंभीर रूप से निम्नीकृत है; हम हर साल अनुमानित 36 अरब टन ऊपरी मिट्टी खो देते हैं। वैज्ञानिकों ने हमें चेतावनी दी है कि हमारे पास लगभग 60 वर्ष की उपजाऊ मिट्टी ही बची है। भारत के कई क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों और अंधाधुंध खेती के कारण मिट्टी में अम्लीकरण बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे मिट्टी के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। हाल ही में हुए एक शोध में सामने आया है कि विशाल कार्बन भंडार पर्यावरण में बदलाव, विशेष रूप से मिट्टी के अम्लीकरण के प्रति संवेदनशील है। एसिड कैल्शियम कार्बोनेट को घोलते हैं और इसे कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में या सीधे पानी में निकाल देते है। देश भर के वैज्ञानिकों से बातचीत के बाद ये सामने आया कि कॉर्बन का असंतुलन खेती की पैदावार को खराब करने का प्रमुख कारक है। वैज्ञानिक मानते हैं कि जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन जितना बढ़े अच्छा है लेकिन उसका निकल कर वातावरण में जाना खतरनाक है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर मिट्टी और फसल पैदावार की प्रक्रिया को दुरूस्त

साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मिट्टी में जितना अजैविक कार्बन किसी ने सोचा है उससे कहीं अधिक मौजूद है, और यह पृथ्वी के कार्बन चक्र में आश्चर्यजनक रूप से बड़ा प्रभाव डालने वाला हो सकता है। दुनिया के कई क्षेत्रों (जैसे चीन और भारत) में मिट्टी अम्लीय वर्षा और औद्योगिक व सघन कृषि गतिविधियों से होने वाले अन्य प्रदूषण के कारण अधिक अम्लीय होती जा रही है। राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) ने बीते साल जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में पिछले 70 वर्षों में मृदा जैविक कार्बन (एसओसी) तत्व एक प्रतिशत से कम होकर 0.3 प्रतिशत पर आ गया है। एसओसी मिट्टी के जैविक पदार्थ का मुख्य घटक है जो इसकी जल धारण क्षमता, संरचना और उर्वरता प्रदान करता है। ओएससी तत्व में भारी गिरावट मृदा की उर्वरक क्षमता को प्रभावित करती है। इसमें कमी के चलते पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने वाले प्रमुख कारक सूक्ष्म जीव जीवित नहीं बच पाते हैं।

पद्मश्री से सम्मानित कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर चेतराम चौधरी कहते हैं कि जमीन के लिए ऑर्गेनिक कार्बन बेहद जरूरी है। इसे बोलचाल की भाषा में ह्रयूमस भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर जंगल की जमीन में इसकी मात्रा एक फीसदी से ज्यादा होती है। सामान्य तौर पर खेती योग्य भूमि में इसकी मात्रा 0.5 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए। लेकिन आज देश के ज्यादातर हिस्से में भूमि में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा काफी कम है। चौधरी बताते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीन में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.2 फीसदी तक है।ये काफी चिंताजनक है। दरअसल ऑर्गेनिक कार्बन जमीन में कई तरह से जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाता है। एक तरफ जहां ये मिट्टी में माइक्रोब्स की संख्या बढाता है वहीं ये मट्टी में पानी को रोकने की क्षमता या वाटर होल्डिंग कैपसिटी को बढ़ाता है। ये जमीन में न्यूट्रिशयन को बढ़ाता है। ये नाइट्रोजन को स्टोर करता है और धीरे धीरे जरूरत के मुताबिक पौधों को देता है। आज पूरे देश में केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल हो रहा है। इससे जमीन को नुकसान पहुंचा है। 

भारत में ऑर्गेनिक कॉर्बन की कमी

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार ऑर्गेनिक कार्बन की कमी भारत में व्यापक है। 24 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में कम से कम आधे मिट्टी के नमूनों में ऑर्गेनिक कॉर्बन की कमी है। उनमें से सात राज्यों में 90 प्रतिशत से अधिक नमूनों की कमी है। हरियाणा की मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की सबसे अधिक कमी है, उसके बाद पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, मिजोरम और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का नंबर आता है। नाइट्रोजन की कमी भी व्यापक और गंभीर है। 32 राज्यों और संघ क्षेत्रों में उनकी मिट्टी के कम से कम आधे नमूनों में नाइट्रोजन की कमी है।

ऐसे ही रहे हालात को पड़ जाएंगे मिट्टी के लाले

भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र (328.7 मिलियन हेक्टेयर) का 29% यानी करीब 96.4 मिलियन हेक्टेयर से अधिक का क्षरण हुआ है। वहीं दुनियाभर में मिट्टी की उर्वरता खोने के मामले में 40 फीसदी तक गिरावट बढ़ गई है। इससे वैश्विक जीडीपी का लगभग आधा हिस्सा खतरे में है। इसके अलावा मिट्टी से लगातार ऑर्गेनिक कार्बन कम हो रहा है। लगातार घट रहे ऑर्गेनिक कार्बन से उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों में कई स्थानों पर जमीन बंजर जाएगी।

पौधे मिट्टी में कार्बन कैसे बढ़ाते हैं ?

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से, पौधे कार्बन को आत्मसात करते हैं और श्वसन के माध्यम से इसका कुछ हिस्सा वायुमंडल में लौटा देते हैं। जो कार्बन पौधों के ऊतकों के रूप में रहता है, उसे जानवरों द्वारा खा लिया जाता है या पौधों के मरने और विघटित होने पर कूड़े के रूप में मिट्टी में मिला दिया जाता है।

कॉर्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने की आवश्यकता

रानी लक्ष्मीबाई सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइसचांसर डा. ए.के.सिंह कहते हैं कि यूं तो क्लाइमेट चेंज के लिए कई चीजें जिम्मेदार हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण कार्बन उत्सर्जन है। इस कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाए जाने की जरूरत है। इसके लिए कोल सेक्टर से होने वाले कॉर्बन उत्सर्जन पर खास तौर पर रोक लगानी होगी। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करना होगा। एग्रीकल्चर सेक्टर में भी कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए जाने की जरूरत है। कई सारी फसलों जैसे धान की फसल से काफी कार्बन उत्सर्जन होता है। किसान जानवर पालते हैं, इन जानवरों का गोबर खुले में पड़े रहने से भी कार्बन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। वह कहते हैं कि पशुपालन करने वाले किसानों को गोबर को खुले में नहीं रखना चाहिए। गोबर खुले में रखने से गैसों का उत्सर्जन होता है। जमीन को खाली न छोड़ें उस पर कुछ न कुछ फसल लगाए रखें। बड़े पैमाने पर पेड़ भी लगाए जाने की जरूरत है। सरकार ने एग्रो फॉरेस्टी की योजना चलाई है इसके तहत खेतों में फसलों के साथ ही कुछ पेड़ भी लगाएं। कार्बन का सबसे बड़ा सिंक पौधे हैं। ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा कर हम कार्बन उत्सर्जन से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।

अलग प्रजाति के पेड़ लगाने से भी फायदा

वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर अलग अलग प्रजाति के पेड़ लगा कर वन विविधता बढ़ाई जाए तो जमीन को और अधिक उपजाऊ बनाया जा सकता है। वहीं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। कनाडा के नेशनल फ़ॉरेस्ट इन्वेंटरी डेटा का अध्ययन करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि वन विविधता को संरक्षित करने पर जमीन की उत्पादकता बढ़ती है। डेटा मॉडल पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि जमीन पर अलग अलग तरह के पेड़ लगाने पर जमीन में नाइट्रोजन और कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ती है। इसके चलते जमीन अधिक उपजाऊ हो जाता है।

अध्ययन के मुताबिक वन विविधता बनाए रखने पर मिट्टी में एक दशक में कार्बन का भंडारण 30 से 32 फीसदी तक और नाइट्रोजन का भंडारण 42 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। कनाडा के न्यू ब्रंसविक विश्वविद्यालय के वानिकी और पर्यावरण प्रबंधन संकाय के प्रोफेसर एंथनी आर टेलर के मुताबिक इस अध्ययन में के राष्ट्रीय वन सूची में शामिल सैकड़ों भूखंडों के डेटा का विश्लेषण किया है ताकि प्राकृतिक वनों में पेड़ों की विविधता और मिट्टी के कार्बन और नाइट्रोजन में परिवर्तन के बीच संबंधों की जांच की जा सके। ज्यादातर प्रयोगों में पाया गया कि पेड़ों की त्ज्यादा विविधता वाले क्षेत्रों की मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन का अधिक संचय हो सकता है। यूएस इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में पोस्टडॉक्टरल एक्सचेंज फेलो और पोस्टडॉक्टोरल अध्ययन के प्रमुख लेखक शिनली चेन कहती हैं कि, आज जलवायु परिवर्तन के इस दौर में इस अध्ययन के परिणाम जलवायु परिवर्तन के प्रभावाओं को कम करने की राहत दिखाते हैं । "हमारे नतीजे बताते हैं कि पेड़ों की विविधता को बढ़ावा देने से न केवल जमीनक की उपज में वृद्धि होती है बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन को भी कम किया जाता है।

इस तरह मिलती है जलवायु परिवर्तन से राहत

अलग अलग तरह के प्रदूषण के चलते हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान बढ़ने का एक बड़ा कारण ये गैस ही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण के जरिए हवा में मौजूद कार्बन डॉई ऑक्साइड गैस को अवशोषित कर लेते हैं। मिट्टी में कार्बन को फिक्स करने में पड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वैज्ञानिकों के मुताबिक मिट्टी जीवित पौधों की तुलना में कम से कम तीन गुना अधिक कार्बन संग्रहित करती हैं। हवा से इस कार्बन के कम होने से गर्मी भी कम होती है। अध्ययन के मुताबिक वन विविधता बनाए रखने पर मिट्टी में एक दशक में कार्बन का भंडारण 30 से 32 फीसदी तक और नाइट्रोजन का भंडारण 42 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। जिससे जमीन ज्यादा उपजाऊ हो जाती है।

पराली जलाने से भी घटता है कार्बन

रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कुलपति डॉक्टर एके सिंह कहते हैं कि किसान पराली को जला कर अपने खेतों को बंजर बना रह हैं। मिट्टी के लिए ऑर्गेनिक कार्बन बेहद जरूरी है। अगर मिट्टी में इसकी कमी हो जाए तो किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कैमिकल फर्टिलाइजर भी काम करना बंद कर देंगे। अच्छी फसल के लिए मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन होना बेहद जरूरी है। मिट्टी में सामन्य तौर पर अगर आर्गेनिक कार्बन 5 फीसदी से ज्यादा है तो अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी पर पहुंच गई है जो बेहद खतरनाक स्थिति है। सिंह कहते हैं कि अगर किसान इस बात को समझ जाए तो इससे उनकी आय तो बढ़ेगी ही उनके खेतों में भी हरियाली बढ़ेगी।

मिट्टी के लिए इसलिए जरूरी है कार्बन

आर्गेनिक कार्बन व सल्फर मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म तत्व होते हैं। इन्हीं से पौधों का विकास होता है। इनकी कमी से पौधे विकसित नहीं होते और रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है। फसलों की पत्ती पीली पड़ने लगती है। मिट्टी में अगर इसकी मात्रा 0.5% फीसदी से कम हो तो ऐसे इलाके मरुस्थल या बंजर इलाकों होते है। अगर किसी मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 12 से18 फीसदी है तो उसे आर्गेनिक सॉयल कहा जाता है। इस तरह की मिट्टी वेटलैंड या बाढ़ वाले इलाकों में बाढ़ के जाने के बाद मिलती है। और यकीन मानिए इस तरह की मिट्टी में कोई फसल लगाने पर आपको केमिकल फर्टिलाइजर पर पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं होगी।

ये कहती है रिपोर्ट

कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर से लिए गए 3. 4 लाख सैंपल की जांच के बाद पाया गया कि देश के 67 फीसदी हिस्से में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की कमी है। खास तौर पर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है।

पौधों की वृद्धि में सहायक है कॉर्बन

नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक मिट्टी के मौजूद कार्बनिक पदार्थ में पोषक तत्व होते हैं जो पौधों की वृद्धि और उपज में अहम भूमिका निभाते हैं, ये मिट्टी में पानी को बनाए रखते हैं। लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी (एलएलएनएल) और सहयोगियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम की ओर से किए गए एक अध्ययन में पूरी दुनिया से मिट्टी के लगभग 1,144 सैंपल लिए गए। इनकी जांच के आधार पर पाया गया कि ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी का एक अभिन्न अंग है और यह पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन और उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पिछली दो शताब्दियों में, लोगों द्वारा बेतहाशा खेती किए जाने और औद्योगिकीकरण के चलते मिट्टी से कार्बन का भारी नुकसान हुआ है।

समाधान

डा. रामचेत चौधरी कहते हैं कि हमें खेतों मे ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ाने के लिए कुछ छोटे मोटे प्रयास ही करने होंगे। किसानों को सबसे पहले पराली जलाना बंद करना होगा। खेतों में पानी चला कर पुआल को सड़ने को छोड़ दें। वहीं दूसरी तरफ संभव हो तो गोबर की खाद खेत में डालें। फसलों के अवशेष सड़ा कर खेतों में डालें। यदि संभव हो तो मूंग और मसूर जैसी फसले लगाएं। इसके अवशेष खेत में ही सड़ने दें। खेत में डेंचे की खेती भी की जा सकती है। ये भी जमीन की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है। सरकार की ओर से पारंपरिक कृषि विकास योजना चलाई जा रही है। इसके तहत कई जिलों में किसानों को जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ाने के तरीकों के बारे में बताने के साथ ही खेत में मॉडल बना कर समझाया भी जा रहा है।