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दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बना अकेला आतंकी

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड आदि की एजेंसियां अकेले आतंकी से निपटने के उपाय नहीं ढूंढ़ पाई

By anand rajEdited By: Published: Tue, 14 Jun 2016 12:28 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jun 2016 02:57 AM (IST)

नीलू रंजन, नई दिल्ली। अकेले आतंकी (लोन वुल्फ टेररिस्ट) पूरी दुनिया की एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। ऐसे आतंकियों की पहचान कर उन्हें रोकना लगभग असंभव माना जा रहा है। वैसे भारतीय एजेंसियों के लिए सुकून की बात यह है कि यहां किसी अकेले आतंकी ने ऐसी बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया है। लेकिन इसके बावजूद मेंहदी मंसूर विश्वास, अरीब माजिद और सलमान मोहिउद्दीन की गिरफ्तारी से साफ है कि भारत के लिए भी अकेले आतंकी का खतरा बरकरार है।

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सुरक्षा एजेंसी से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड आदि की एजेंसियां अकेले आतंकी से निपटने के उपाय नहीं ढूंढ़ पाई। आस्ट्रेलिया के सिडनी में बंधक संकट, अमेरिका के बोस्टन में बमबारी से लेकर ऑरलैंडो जैसे हमले पूरी दुनिया में हो रहे हैं।

व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद आतंकी हमले रोकने में पूरी तरह सफलता पाने के बावजूद अमेरिकी एजेंसियां अकेले आतंकी को रोकने में विफल रही हैं। भारत में ऐसे हमले के खतरे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यहां हमले पाकिस्तान या उसके समर्थित आतंकी संगठन ही करते रहे हैं और भारतीय एजेंसियां उनसे निपटने में काफी हद सक्षम हो गई हैं।

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उन्होंने साफ कर दिया कि अकेले आतंकी के हमले से भारत पूरी तरह महफूज नहीं है। बेंगलुरु में गिरफ्तार मेहंदी मंसूर विश्वास आइएसआइएस का सबसे बड़ा ट्यूटर हैंडलर था और आनलाइन भर्ती का अभियान चलाता था। ब्रिटिश टीवी चैनल के खुलासे के पहले इसके बारे में भारतीय एजेंसियां अंधेरे में थीं। मेंहदी अकेले आतंकी के रूप में ही काम कर रहा था।

इसी तरह महाराष्ट्र का अरीब माजिद और हैदराबाद का सलमान मोहिउद्दीन अकेले आतंकी के रूप में माने जा सकते हैं। इन सभी को गिरफ्तार किया जा चुका है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यहां अत्याधुनिक हथियार हासिल करना आसान नहीं है, जिनसे एक साथ कई गोलियां बरसाई जा सकें। यहां छोटा देसी रिवाल्वर या राइफल तो कोई खरीद सकता है लेकिन इनसे अकेले आतंकी का वह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है, जैसा ऑरलैंडो में हुआ।

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इसके साथ ही जिस तरह का अलगाव अमेरिका या यूरोपीय देशों में मुस्लिम युवा महसूस कर रहे हैं, भारत में ऐसा नहीं है। युवाओं में कट्टरपंथ रोकने के लिए भारत सरकार डि-रेडिक्लाइजेशन और एंटी-रेडिक्लाइजेशन का प्रोग्राम सफलतापूर्वक चला रही है।

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