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'उत्‍तराखंड में आपदा समय पकवान उड़ाने के मामले की होगी जांच'

जून 2013 में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत व बचाव कार्यो में भारी अनियमितताओं के मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्य सचिव एन रविशंकर को जांच के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव जल्द ही जांच समिति बनाकर प्रकरण की जांच शुरू करेंगे। आरटीआइ के जरिये हुए सनसनीखेज

By Sumit KumarEdited By: Published: Sat, 30 May 2015 09:12 AM (IST)Updated: Sat, 30 May 2015 09:01 PM (IST)

देहरादून। जून 2013 में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत व बचाव कार्यो में भारी अनियमितताओं के मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्य सचिव एन रविशंकर को जांच के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव जल्द ही जांच समिति बनाकर प्रकरण की जांच शुरू करेंगे। आरटीआइ के जरिये हुए सनसनीखेज खुलासे के बाद प्रदेश में राजनीतिक माहौल भी गरमा गया। विपक्षी दल भाजपा ने राज्य की कांग्रेस सरकार की घेराबंदी करते हुए पूरे प्रकरण की सीबीआइ से जांच की मांग को लेकर राज्यपाल से मिलने की बात कही है।

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जून 2013 में प्राकृतिक आपदा के दौरान प्रदेश के पांच जिलों में राहत व बचाव के नाम पर सरकारी धन के दुरूपयोग का यह गंभीर मामला बीते रोज तब सामने आया, जब राज्य सूचना आयोग में आरटीआइ के एक मामले की सुनवाई के दौरान राहत व बचाव कार्यो में लगे अफसरों के बिलों की हकीकत सामने आई। सुनवाई के दौरान पेश बिलों से पता चला कि भीषण आपदा के दौरान जब केदारघाटी में लाशों के ढेर लगे थे और लोग भूख-प्यास से बिलबिला रहे थे, तब राहत-बचाव कार्य में लगे अधिकारी महंगे होटलों में रात गुजार चिकन, मटन, मटर पनीर व गुलाब जामुन जैसे लजीज व्यंजनों का स्वाद ले रहे थे।

राहत घोटाले पर अपनी प्रतिक्रिया में तत्कालिन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है अगर इस तरह की लूट खसोट की कोई जानकारी है तो सरकार इस मामले की जांच कराए। उन्होंने कहा कि यह तो आम बात हैं कि उस तरह की विकट आपदा के दौरान आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ती ही है। साथ ही बहुगुणा ने कहा कि इस बिंदु पर जांच होनी चाहिए कि जरूरी चीजें सस्ते दामों में उपलब्ध थीं लेकिन फिर भी उन्हें महंगे दामों पर खरीदा गया।

सूचना के अधिकारी की एक अपील की सुनवाई में यह सब सामने आया। सूचना आयोग में प्रस्तुत आपदा के दौरान के राहत-बचाव कार्यों के बिल इसकी गवाही दे रहे हैं। यह देख सूचना आयोग अवाक रह गया। मामले के सामने आ जाने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जांच के आदेश दे दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने आपदा के कार्यों में सैकड़ों करोड़ रुपये के घपले की आशंका जताते हुए सभी कार्यों की सीबीआइ या किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराने की गुजारिश मुख्यमंत्री से की थी।

नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र कुमार ने 27 दिसंबर, 2013 को रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व बागेश्वर के जिलाधिकारियों से जून 2013 में आई आपदा के दौरान राहत-बचाव के सभी कार्यों में व्यय धनराशि और इसमें जुटे अधिकारियों के खर्च की जानकारी मांगी थी।

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तय समयावधि में समुचित जानकारी न मिलने पर भूपेंद्र कुमार ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग की सख्ती के बाद जब जनपदों ने बिल देने शुरू किए तो मामले की सुनवाई कर रहे सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा अवाक रह गए।

केदारघाटी की त्रासदी वाले रुद्रप्रयाग जनपद के ही एक मामले के बिल पर गौर करें तो आपदा की जिस घड़ी में लोगों के सिर पर छत नहीं थी और लोगों को पर्याप्त भोजन भी मयस्सर नहीं हो पा रहा था, उस दौरान राहत-बचाव कार्य में लगे कार्मिकों के ठहरने व खाने की व्यवस्था पर 25 लाख 19 हजार रुपये का खर्च आया।

एक अधिकारी के होटल में ठहरने का जो किराया दर्शाया गया, वह 6750 रुपये था। भोजन मिलाकर यह राशि प्रतिदिन 7650 रुपये बैठ रही थी। चौंकाने वाली बात यह भी कि उस दौरान अधिकारियों ने आधा लीटर दूध की 194 रुपये कीमत अदा की।

अपेक्षाकृत कम प्रभावित पिथौरागढ़, बागेश्वर जनपद में कुमाऊं मंडल विकास निगम ने 15 दिन आपदा प्रभावितों के सरकारी रेस्ट हाउस में ठहरने का चार लाख रुपये का बिल भेजा है।

कई कार्य ऐसे हैं, जिन्हें आपदा से पहले ही पूरा दिखाया गया। जबकि, कुछ बिल आपदा वाले दिन के ही हैं। आपदा के दौरान अधिकारियों ने मोटरसाइकिल व स्कूटर में भी डीजल भर डाला। इस तरह की बिलों में तमाम अनियमितता मिलीं, जिस पर आयोग को संज्ञान लेकर सूचना आयोग को सीबीआइ जांच कराने की गुजारिश करनी पड़ी।

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उत्तराखंड के राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि 'आपदा राहत में लगे कार्मिकों के खाने-पीने व ठहरने के बिल मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। ये कार्मिक आपदा पीड़ितों की मदद और दायित्व निर्वहन के लिए गए थे या पिकनिक मनाने।'

इन पर ठिठका आयोग :
- पिथौरागढ़ जनपद में अधिशासी अभियंता, जल संस्थान डीडीहाट ने एक कार्य को 28 दिसंबर 2013 को शुरू होना दिखाया, जबकि बिल में कार्य पूर्ण होने की तिथि 43 दिन पहले 16 नवंबर 2013 दिखाई गई।

- एक अन्य बिल में राहत कार्य आपदा से छह माह पहले 22 जनवरी 2013 को ही शुरू करना दर्शाया गया।

- नगर पंचायत डीडीहाट के 30 लाख 45 हजार रुपये के कार्यों के बिलों में कोई तिथि अंकित नहीं मिली।

- तहसीलदार कपकोट द्वारा 12 लाख रुपये आपदा पीड़ितों को बांटना दिखाया है, जबकि रसीद एकमात्र पीड़िता को पांच हजार रुपये भुगतान की लगाई गई।

- तहसीलदार गरुड़ ने आपदा राहत के एक लाख 83 हजार 962 रुपये बांटे और यहां भी रेकार्ड के तौर पर 1188, 816 रुपये की ही रसीद मिली।

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- 16 जून 2013 को आई आपदा की भयावहता का पता प्रशासन को दो-तीन दिन बाद ही चल पाया था, लेकिन उत्तरकाशी में खाने-पीने आदि की सामग्री के लाखों रुपये के बिल 16 तारीख के ही लगा दिए गए।

- आपदा के समय मोटरसाइकिल (यूए072935), (यूए07ए/0881), (यूके05ए-0840), बजाज चेतक (यूए12/0310) में क्रमश: 30, 25, 15, 30 लीटर डीजल डालना दिखाया गया।

- थ्री व्हीलर (यूके08टीए/0844) व ए/एफ नंबर के एक वाहन में क्रमश: 30-30 लीटर डीजल डालने के बिल भी अधिकारियों ने संलग्न किए। बता दें कि पर्वतीय जिलों में थ्री व्हीलर चलते ही नहीं हैं।

- उपजिलाधिकारी के नाम से बनाए गए बिलों पर बिना नंबर के वाहनों में 21 जून से 09 जुलाई के मध्य क्रमश: 51795, 49329, 21733 रुपये के डीजल खर्च होना दिखाया गया।

- तहसील कर्णप्रयाग में राहत कार्य के तहत आपदा से करीब डेढ़ माह पहले के ईंधन बिल लगाए गए।

- चमोली के जिला युवा कल्याण एवं प्रांतीय रक्षक दल अधिकारी ने आपदा से एक माह पहले के होटल बिल लगा दिए।

- डेक्कन हेलीकॉप्टर सेवा ने 24 जून की तारीख का जो बिल जमा किया है, उसमें ईंधन का चार दिन का खर्च 98 लाख 8090 रुपये दर्शाया गया है।

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