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नजीब-केजरी की जंग सुलझायेगा गृह मंत्रालय?

उपराज्यपाल नजीब जंग के स्पष्ट निर्देश के बाद भी दिल्ली सरकार से संबंधित फाइलें राजनिवास को नहीं भेजी जा रही हैं। उपराज्यपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए गत रविवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निर्देश दिए थे कि वे अपना वह आदेश वापस लें।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 07 May 2015 10:46 AM (IST)Updated: Thu, 07 May 2015 11:08 AM (IST)

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। उपराज्यपाल नजीब जंग के स्पष्ट निर्देश के बाद भी दिल्ली सरकार से संबंधित फाइलें राजनिवास को नहीं भेजी जा रही हैं। उपराज्यपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए गत रविवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निर्देश दिए थे कि वे अपना वह आदेश वापस लें, जिसमें अधिकारियों से कहा गया है कि सरकार से संबंधित सभी फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय के माध्यम से उपराज्यपाल के पास जाएंगी। फाइलें सीधे उपराज्यपाल के पास नहीं जाएंगी।

साथ ही उन्होंने तमाम अधिकारियों को भी सख्त निर्देश दिए थे कि वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के गठन के लिए बनाए गए 1991 के कानून और ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रुल्स का 1993 कड़ाई से पालन करें। मगर, इस निर्देश के तीन दिन बीतने के बाद भी सरकार की ओर से फाइलें राजनिवास नहीं भेजी गई है।

हालांकि, इस संबंध में दिल्ली सरकार के मंत्री व उनके सचिव स्पष्ट कारण बताने से बच रहे हैं, लेकिन उपराज्यपाल के निर्देश प्राप्त होने के बाद उनकी पहली प्रतिक्रिया यह थी कि जब सरकार को लगेगा कि संबंधित फाइल राजनिवास भेजी जाए, तो उसे अवश्य भेज देंगे।

मालूम हो कि उपराज्यपाल ने शनिवार को केजरीवाल को भेजे संदेश में साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की भूमिका केवल उपराज्यपाल को सरकार चलाने में सलाह देने और विचार-विमर्श करने तक सीमित हैं। उपराज्यपाल बगैर इस सलाह और विचार-विमर्श के भी फैसले लेने को स्वतंत्र है।

उन्होंने यह भी कहा था है कि वे तमाम मामले जिन्हें लेकर दिल्ली विधानसभा कानून बना सकती है, निश्चित रूप से अंतिम स्वीकृति के लिए उपराज्यपाल के पास आएंगे।

उपराज्यपाल को नहीं भेजी जा रहीं फाइलें
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सूबे की सरकार पर अधिकार को लेकर उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव लगातार जारी है। उपराज्यपाल द्वारा भेजे गए निर्देशों को लेकर दिल्ली सरकार ने भले चुप्पी साध रखी है, लेकिन आवश्यक होने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय इस मामले में कदम जरूर उठा सकता है।

बता दें कि सरकार पर अधिकार को लेकर विवाद होने के बाद उपराज्यपाल जंग ने बीते सोमवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल और मुख्य सचिव केके शर्मा को जरूरी निर्देश भेजे थे। उन्होंने जहां मुख्यमंत्री को संवैधानिक मर्यादा में रहने की नसीहत दी थी, वहीं अधिकारियों से भी कहा था कि वह संविधान के नियमों के अनुरूप ही काम करें। बताते हैं कि इस संबंध में राजनिवास से एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भी भेजी गई है। इसमें दिल्ली की स्थिति का पूरा ब्योरा दिया गया है।

उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि उपराज्यपाल ने जब मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को ऐसे मामले में कोई निर्देश भेजे हैं तो जाहिर तौर पर इसकी जानकारी गृह मंत्रालयको भी भेजी गई है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार गृह मंत्रालयके तहत ही काम करती है और उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री व उनके मंत्रिमंडल के बीच अधिकारों के बंटवारे का मामला भी कहीं न कहीं गृह मंत्रालयसे ही जुड़ा हुआ है। लिहाजा, मंत्रालयको पूरी जानकारी दिया जाना लाजिमी है। गृह मंत्रालयद्वारा इस मामले में हस्तक्षेप किए जाने को लेकर पूछने पर सूत्रों ने कहा कि यह मंत्रालयको तय करना है।

मुख्य सचिव की नियुक्ति पर हुई थी तनातनी
सूत्रों ने बताया कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच का टकराव गृह मंत्रालयतक पहुंचा हो। इससे पहले भी दिल्ली में कार्यकारी मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर भी तनातनी हुई थी और यह मामला नार्थ ब्लॉक तक पहुंचा था।

उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है जब उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अधिकारों को लेकर तनातनी हुई हो। वजह यह है कि अधिकारों का बंटवारा बड़ा स्पष्ट है और उपराज्यपाल को ज्यादा शक्तियां प्राप्त हैं। अब यदि किसी राजनीतिक दल को प्रचंड बहुमत मिल जाए इसका मतलब यह तो नहीं होता कि संवैधानिक व प्रशासनिक स्थिति बदल जाएगी। सनद रहे कि उपराज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं। ऐसे में उनके अधिकारों को चुनौती देने का सीधा मतलब केंद्र सरकार को चुनौती भी है। जाहिर तौर पर दिल्ली सरकार ऐसा करने की स्थिति में नहीं है।

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