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आम आदमी की नब्ज पहचानने से चूके केजरीवाल

सूबे के सियासी पंडित बुधवार दोपहर जिस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा पहले सरकार बनाने की कोशिश करने और फिर पलट जाने के फैसले से हुई आम आदमी पार्टी की फजीहत पर बहस कर रहे थे, लगभग उसी वक्त केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैली। ऐसा अंदेशा हुआ मानो, दिल्ली ठहर

By Edited By: Published: Fri, 23 May 2014 08:06 AM (IST)Updated: Fri, 23 May 2014 08:06 AM (IST)

नई दिल्ली, अजय पांडेय। सूबे के सियासी पंडित बुधवार दोपहर जिस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा पहले सरकार बनाने की कोशिश करने और फिर पलट जाने के फैसले से हुई आम आदमी पार्टी की फजीहत पर बहस कर रहे थे, लगभग उसी वक्त केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैली। ऐसा अंदेशा हुआ मानो, दिल्ली ठहर जाएगी। केजरीवाल के चाहने वाले सड़कों पर उतर जाएंगे, प्रशासन की ईट से ईट बजा देंगे। लेकिन कहीं पत्ता तक नहीं खड़का। शहर अपनी रफ्तार से दौड़ता रहा।

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दिल्ली सरकार में रहते हुए केजरीवाल ने जब अपने कानून मंत्री सोमनाथ भारती के बचाव में रेल भवन पर धरना दिया था, तब भी उन्होंने लोगों से अपील की थी कि वे अपना काम छोड़कर धरना स्थल पर आ जाएं, लेकिन शहर का आम आदमी वहां नहीं पहुंचा।

दिल्ली में लोकसभा चुनाव के नतीजों से आप में हताशा होना स्वाभाविक है। उसके वोट प्रतिशत में इजाफा जरूर हुआ है, लेकिन शहर की सात में से चार-पांच सीटें जीतकर धमाल मचा देने के उसके इरादे पर पानी जरूर फिर गया। हार से बौखलाए पार्टी के नेता दिल्ली की सत्ता को किसी प्रकार फिर से हासिल करने की जुगत में हैं। पहले केजरीवाल ने उपराज्यपाल नजीब जंग से मिलकर सूबे में फिर से सरकार बनाने की कोशिश की। जब बात नहीं बनती दिखी तो चुनाव की बात करने लगे। सरकार से इस्तीफा देने के लिए जनता से माफी मांग ली और अब पार्टी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर घर-घर अभियान चलाने जा रही है।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हर्षवर्धन ने केजरीवाल की माफी को जनता को गुमराह करने का हथकंडा करार दिया था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने भी उन्हें सत्ता का लालची करार दिया। लेकिन इन सियासी टिप्पणियों को छोड़ भी दें, तो राजनीति की समझ रखने वाले जानकारों की राय है कि केजरीवाल ने शार्टकट तरीके से सत्ता हासिल करने के लिए दिल्ली को किसी राजनीतिक प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया है। उनकी कोशिशें बिलकुल बेकार हो गई हों ऐसा भी नहीं है।

महज पौने दो साल के अपने सियासी सफर में केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए और लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की कतार में खड़े नेताओं तक में शुमार किए जाने लगे। यह दीगर बात है कि दिल्ली व देश की जनता ने उनकी फटाफट राजनीति को खारिज कर दिया है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में भी केजरीवाल और उनकी पार्टी जनता के फैसले से कुछ सीख लेती है अथवा नहीं।

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