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अभी भी तलाश है उस आवाज की, जो AN-32 विमान की खोज के लिए है जरूरी

चार दिन बीतने के बाद भी भारतीय वायुसेना के विमान के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी है। हालांकि लापता विमान की खोज के लिए प्रयास जारी हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 01:44 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 05:05 AM (IST)
अभी भी तलाश है उस आवाज की, जो AN-32 विमान की खोज के लिए है जरूरी

नई दिल्ली । बंगाल की खाड़ी में चार दिन पहले लापता हुए भारतीय वायुसेना के विमान एएन-32 का अब तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है। विमान में 29 लोग सवार थे। बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे खोज एवं बचाव अभियान के बाद भी मलबे या जीवित बचे लोगों का कुछ पता नहीं चल सका है। हालांकि बंगाल की खाड़ी में विमान की खोज का दायरा और बढ़ा दिया गया है।

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विमान की खोज में लगे 17 जहाज

विमान की खोज में लगे 17 जहाज, एक पनडुब्बी और 23 विमान समुद्र की सतह पर लापता विमान के मलबे का पता लगाने में नाकाम रहे हैं। इसलिए अब यह पूरा अभियान विमान में लगे ‘इमरजेंसी लोकेटेर ट्रांसमीटर’ (ईएलटी) से मिलने वाले किसी सिग्नल पर भी निर्भर है। चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर जा रहा विमान बिना कोई इमरजेंसी सिग्नल दिए ही अचानक लापता हो गया था।

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रूस के बने एएन-32 विमान में लगे ‘इमरजेंसी लोकेटेर ट्रांसमीटर’ कुछ इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि जैसे ही एक निश्चित बल के साथ ये पानी से टकराए, उसी क्षण से ये एक प्रकार का सिग्नल भेजना शुरू कर दे। ईएलटी की बैटरी लाइफ करीब एक महीने की है। यह करीब एक महीने तक एक तय फ्रिक्वेंसी पर सिग्नल भेजता रहेगा जिसे नौसेना के युद्धपोत, पनडुब्बियां और कोस्ट गार्ड के जहाज अपने सोनार सिस्टम के जरिए पकड़ने की कोशिश करेंगे।

समुद्र की गहराई सबसे बड़ी चुनौती

लेकिन यहां एक असली चुनौती है। इस इलाके में समुद्र की गहराई करीब 3.5 किलोमीटर तक है। जहां जबरदस्त समुद्री दबाव होगा। इसका मतलब है एक छोटे बक्से के आकार के एलटीई के टूट जाने का खतरा है, अगर यह विमान के क्रैश होने के समय ही क्षतिग्रस्त हो गया हो। ईएलटी से मिलने वाले सिग्नल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है, अगर यह विमान के मलबे के नीचे दब गया हो।

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इस प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है। पिछले वर्ष कोस्ट गार्ड का डॉर्नियर विमान बंगाल की खाड़ी में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। दुर्घटना के 33 दिन के बाद विमान के ईएलटी से मिले एक कमजोर से सिग्नल की मदद से उसका मलबा बरामद किया जा सका था। उस समय एक समुद्री टोही विमान ने रुक रुक आ रहे सिग्नल का पता लगाया था। उस समय भारतीय नौसेना की एक 'किलो' क्लास पनडुब्बी ने ज्यादा मजबूत सिग्नल पकड़े थे जो ज्यादा मददगार साबित हुआ। इसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक पनडुब्बी ओलंपिक कैनन ने तलाशी को पुख्ता किया। ओलंपिक कैनन रिमोट द्वारा संचालित वाहन है।जो लापता विमानों के फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) की तलाश करने में सक्षम है।

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जोर शोर से तलाश जारी

लापता एएन 32 के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान जारी है और अभी तक इसे रोका नहीं गया है। तलाशी अभियान में जुटे विमानों और इसरो के उपग्रहों पर लगे अत्याधुनिक सिस्टम एवं सेंसरों का कोई अभाव नहीं है। नौसेना के बोइंग पी8-1 विमान और इसरो के विशेष उपग्रह सिंथेटिक अपर्चर रेडार से लैस हैं जो समुद्र की सतह की बेहद उच्च रिजोल्यूशन की तस्वीरें उपलब्ध कराते हैं। ये समुद्र में तैरने वाले धातु की वस्तुओं का भी खुद ब खुद पता लगा लेते हैं। इन सब के अलावा पी8 में मैग्नेटिक एनॉमॉली डिटेक्टर (एमएडी) लगे हैं। जो खासतौर पर पानी के अंदर धातु की चीजों का पता लगाने के लिए डिजाइन किए गए हैं। साथ ही एक दर्जन से ज्यादा जहाज अपने अपने सोनार सिस्टम से लापता विमान के ईएलटी से मिलने वाले किसी भी सिग्नल को पकड़ने में लगे हैं।

ELT पर टिकी नजर

विमान के मलबे की तलाश तब और मुश्किल हो जाएगी जब उसके ईएलटी से किसी भी तरह का सिग्नल नहीं मिलेगा। 2009 में ब्राजील के पास समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयर फ्रांस के एएफ-447 विमान के मलबे को ढूंढने में जांचकर्ताओं को दो साल से ज्यादा का वक्त लगा था। इस काम को विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए तैयार किए जहाजों में लगे साइड सोनार स्कैंस की मदद से अंजाम दिया गया था। तमाम अंतरराष्ट्रीय खोज अभियानों के बावजूद 2014 में कुआलालंपुर से उड़ान भरने के बाद लापता मलेशियाई विमान MH-370 का आज तक पता नहीं चल पाया है।

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