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ये है प्याज का कड़वा सच! इनकी मदद से मारी सेंचुरी

देश भर के लोगों को प्याज रुलाने पर तुला हुआ है। एक बार फिर 100 रुपये प्रति किलो पर पहुंचने वाला प्याज बहस का विषय बन गया। एशिया की सबसे बड़ी मंडी लासलगांव में तो प्याज की कीमत गिरने से लोगों ने राहत की सांस ली है लेकिन देश के बाकी हिस्से में लोगों को कोई राहत नहीं मिली। त्योहारों में ऐसा होना इस

By Edited By: Published: Thu, 24 Oct 2013 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
ये है प्याज का कड़वा सच! इनकी मदद से मारी सेंचुरी

नई दिल्ली। देश भर के लोगों को प्याज रुलाने पर तुला हुआ है। एक बार फिर 100 रुपये प्रति किलो पर पहुंचने वाला प्याज बहस का विषय बन गया। एशिया की सबसे बड़ी मंडी लासलगांव में तो प्याज की कीमत गिरने से लोगों ने राहत की सांस ली है लेकिन देश के बाकी हिस्से में लोगों को कोई राहत नहीं मिली। त्योहारों में ऐसा होना इस मामले को और भी गर्म कर रहा है। पिछले दिनों भी प्याज ने ऐसी ही छलांग लगाई थी लेकिन सरकारी हस्तक्षेप से ये एक ही दिन में नीचे आ गया। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक दिन में जिसकी कीमत 100 रुपये हो वह 60-70 रुपये प्रति किलो पर पहुंच जाए। सवाल यही है कि प्याज की कीमतें आसमान पर पहुंची कैसे? यहां कुछ तथ्य सामने आए हैं जिसकी वजह से प्याज का स्वाद बेहद कड़वा हो गया है।

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- गर्मियों की पैदावार जिसे पिछले छह माह से जमा करके रखा हुआ था वह अब खत्म हो रही है। इस प्याज को आमतौर पर बड़े छोटे रेस्त्रां और फूड पैकेजिंग इंडस्ट्री को बेचा जाता है जिसकी कीमत कम रहती है। अब नई खरीफ फसल कम हुई है। ऊपर से बारिश ने कुछ हिस्सों की फसलों को खराब कर दिया है। इसकी वजह से कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव आ रहा है।

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- जो प्याज 80 से 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, वो दरअसल किसानों से इन व्यापारियों ने इस साल फरवरी-मार्च में ही महज 8 से 12 रुपये की दर पर खरीदता था। कारोबारियों ने कुल फसल का करीब 80 फीसद खरीद कर जमा कर लिया। ये वो 80 फीसद छोटे किसान हैं जिनके पास प्याज को जमा करने की सहूलियत नहीं है मात्र 20 फीसद प्याज ही किसान अपनी कीमत पर बेच पाया लेकिन ये 20 फीसद किसान खुद बड़े किसान हैं जिनके पास उसे जमा करने की सुविधा है। बाद में यही प्याज जब मंडी में आया तब दाम बढ़ाकर 50 के पार पहुंचा दिया गया। फिर व्यापारियों ने सारा प्याज 40 से 60 के रेट पर बेचा यानि बेचारा किसान भी मारा गया और आम आदमी भी।

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- महाराष्ट्र और कर्नाटक ही ऐसे दो राज्य हैं जहां सबसे ज्यादा प्याज की पैदावार होती है। ऐसे में अगर इन दोनों राज्यों की फसल खराब होती है तो प्याज की कीमतों में उछाल आना लाजमी है।

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- जुलाई-सितंबर का महीना प्याज के लिए मंद रहता है। ऐसे वक्त पर रबी यानी गर्मियों के स्टॉक का इस्तेमाल पर मांग पूरी की जाती है। सितंबर के अंत तक खरीफ (अक्टूबर-नवंबर) की फसल बाजार में आती है, जोकि बेमौसम बारिश के कारण खराब हो गई।

- फिलहाल, मांग और आपूर्ति का खेल खेला जा रहा है। देश की मासिक मांग करीब 9 से 10 लाख टन है जबकि प्याज की सप्लाई मात्र 50 फीसद ही हो रही है। कारोबारियों का कहना है कि त्योहारी सीजन में जब प्याज की मांग बढ़ती है तब आपूर्ति कम होने से कीमतों में इजाफा होगा ही।


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