कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से चिंता बढ़ी, लेकिन काबू में हालात
दो वर्षो के भीतर पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क की दर को दो रुपये प्रति लीटर से बढ़ा कर 9.48 रुपये प्रति लीटर किया जा चुका है। जबकि डीजल पर भी अभी उत्पाद शुल्क की दर 11.33 रुपये प्रति लीटर है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कच्चे तेल की कीमतों लगातार हो रही बढ़ोतरी आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल को और महंगा कर सकती हैं। आर्थिक विकास दर की रफ्तार को आठ फीसद के करीब ले जाने की सोच रही केंद्र सरकार भी इस बढ़ोतरी से चिंतित हैं। क्योंकि इससे सीधे तौर पर महंगाई की दर, चालू खाते में घाटे की स्थिति और ब्याज दरों से जुड़ी हुई हैं। वित्त मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय व रिजर्व बैंक के स्तर पर क्रूड की कीमतों की सख्त निगरानी शुरु तो हो गई है लेकिन सरकार अभी मान रही है कि हालात अभी नियंत्रण में है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक क्रूड की कीमतों जब ज्यादा तेजी से बढ़ेंगी तो सरकार के पास उत्पाद शुल्क के तौर पर एक सुरक्षा कवच मौजूद है। सरकार को यह फैसला करना है कि उत्पाद शुल्क में कटौती का इस्तेमाल कब किया जाए। अभी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 63.02 रुपये प्रति लीटर है लेकिन उत्पाद शुल्क में कटौती का फैसला तब तक नहीं करेगी जब तक पेट्रोल की कीमत 75 रुपये तक नहीं पहुंच जाए।
दूसरे शब्दों में कहें तो क्रूड की मौजूदा 47 डॉलर प्रति बैरल की कीमत 60-62 डॉलर तक पहुंचने के बाद ही सरकार उत्पाद शुल्क में फेर बदल की सोचेगी। हां, यह तय है कि उत्पाद शुल्क में कटौती के मामले में डीजल को लेकर ज्यादा कठोरता दिखाया जाएगा। यानी सरकार डीजल को उत्पाद शुल्क में बड़ी राहत देने के पक्ष में नहीं है। वित्त मंत्रालय का अपना आकलन है कि मौजूदा तेजी के बावजूद अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत निकट भविष्य (तीन से छह महीने) 60 डॉलर प्रति बैरल से उपर नहीं रहेगी।
पिछले डेढ़ वर्षो के दौरान जब क्रूड की कीमतें लगातार घट रही थी तब सरकार ने इन पर उत्पाद शुल्क बढ़ा कर कीमतों को पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं लेने दिया था। दो वर्षो के भीतर पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क की दर को दो रुपये प्रति लीटर से बढ़ा कर 9.48 रुपये प्रति लीटर किया जा चुका है। जबकि डीजल पर भी अभी उत्पाद शुल्क की दर 11.33 रुपये प्रति लीटर है। इसके अलावा दोनों उत्पादों पर 6-6 रुपये का अतिरिक्त उत्पाद शुल्क भी देना पड़ता है। क्रूड की कीमतों में वृद्धि होने पर सरकार उत्पाद शुल्क की दर को घटा कर आम जनता को राहत दे सकती है।
सनद रहे कि वर्ष 2012 से 2014 तक जब क्रूड की कीमतें 100 से 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी तब इसकी कीमत भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी चुकानी पड़ी थी। चालू खाते में घाटा रिकार्ड स्तर पर था। खुदरा महंगाई की दर 10 फीसद पार कर गई थी। पेट्रोलियम मंत्रालय का आकलन है कि पिछले दो वर्षो के दौरान सस्ते क्रूड से भारतीय अर्थव्यवस्था को परोक्ष तौर पर 2,30,000 लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। सिर्फ सब्सिडी के तौर पर ही सरकार को एक लाख करोड़ रुपये की सालाना की बचत हुई है।