बैंक कर्ज सस्ता करने में एनपीए का रोड़ा
बैंकों के एनपीए और उनकी बैलेंस शीट दुरुस्त करने के लिए आरबीआइ की इस सख्ती के चलते अधिकांश बैंकों के सामने मुश्किल आ रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। फंसे हुए अथवा इसकी आशंका वाले कर्जो (एनपीए और सब-स्टैंडर्ड लोन) को सामने लाने का रिजर्व बैंक का फॉर्मूला और सख्ती आम ग्राहकों पर भारी पड़ रही है। इस नियम का पालन करने के बाद बैंकों के एनपीए की राशि बढ़ रही है और उन्हें इसके एवज में अपने मुनाफे की बड़ी राशि का प्रावधान करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति बनने की वजह से बैंक कर्ज की ब्याज दरों को कम नहीं कर पा रहे हैं।
बैंकों के एनपीए और उनकी बैलेंस शीट दुरुस्त करने के लिए आरबीआइ की इस सख्ती के चलते अधिकांश बैंकों के सामने मुश्किल आ रही है। एनपीए की एवज में ज्यादा राशि का प्रावधान करने की वजह से बैंकों का घाटा अत्यधिक बढ़ गया है। इसकी वजह से बैंक कर्ज को सस्ता नहीं कर पा रहे। पिछले डेढ़ वर्षों में रिजर्व बैंक की तरफ से प्रमुख उधारी दर यानी रेपो रेट में 1.5 फीसद की कटौती करने के बावजूद बैंक अभी तक महज औसतन 0.56 फीसद की ही राहत ग्राहकों को दे पाये हैं।
इस साल नहीं घटेगा ब्याज
जानकारों की मानें तो मौजूदा पूरे वित्त वर्ष में बैंकों की तरफ से कर्ज की दरों में बहुत ज्यादा कटौती किये जाने के आसार नहीं हैं। इसके पीछे वजह यही है कि इन बैंकों को वसूल न होने वाले कर्जो को एनपीए की श्रेणी में डालना पड़ रहा है। एनपीए सामने आने के बाद उसकी प्रोविजनिंग भी अनिवार्य हो जाती है।
बैंकों की मजबूरी
सोमवार को सरकारी बैंकों ने वित्त मंत्री अरुण जेटली व उनके मंत्रालय के आला अधिकारियों के साथ बैठक में बैंकों ने इस वजह से अपना घाटा और बढ़ने की आशंका जताई है। बैंकों की तरफ से पेश रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एनपीए के लिए ज्यादा प्रावधान किए जाने के कारण भारी घाटा हुआ है। ऐसे में ब्याज दर घटाने से उनका घाटा और बढ़ जाएगा। ऐसे में कर्ज को सस्ता करने के लिए इनके हाथ बंधे होंगे।
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मदद करे सरकार
ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एस. सी. सिन्हा का कहना है कि अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका को देखते हुए उन्हें फेल नहीं होने दिया जा सकता। सरकार की तरफ से उन्हें हर तरह की मदद दी जानी चाहिए। लेकिन जहां तक कर्ज की ब्याज दरों में कमी का फायदा आम जनता को नहीं मिलने की बात है तो उसके लिए कई वजहें हैं। इसमें एक वजह यह भी है कि बैंकों को ऑपरेटिंग प्रॉफिट का एक बड़ा हिस्सा एनपीए के लिए अलग रखना पड़ रहा है। इससे बैंकों को घाटा हो रहाहै।
प्रदर्शन पर होगा बुरा असर
क्रिसिल रेटिंग एजेंसी ने भारतीय बैंकों पर जारी अपनी ताजी रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह से एनपीए के लिए मुनाफे से रकम का समायोजन करने से बैंकों के लिए ग्राहक सेवा व विस्तार पर ध्यान देना मुश्किल हो रहा है।
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एनपीए खा गया मुनाफा
रिजर्व बैंक के फॉर्मूले के मुताबिक सारे बैंक एनपीए में तब्दील हो चुके कर्ज या जल्द एनपीए में तब्दील होने वाले कर्जो की पूरी राशि का एक हिस्सा अपने ऑपरेटिंग प्रॉफिट से निकाल कर अलग करना है। इस वजह से मार्च, 2016 को समाप्त वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों को 17,991 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में इन्हें 30,869 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। समायोजन के तौर पर मुनाफे से 21 हजार करोड़ रुपये की राशि इन बैंकों को अलग करनी पड़ी है।
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