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    रिलायंस पर मेहरबान मंत्रालय!, बिना परीक्षण के गैस खोजों को मिली मंजूरी

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    Updated: Mon, 10 Mar 2014 09:42 AM (IST)

    नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआइएल) की गैस खोजों को लेकर तेल मंत्रालय और इसकी तकनीकी शाखा डीजीएच को आड़े हाथ लिया है। कैग का कहना है कि केजी-डी6 ब्लॉक में कंपनी की खोजों को बिना पर्याप्त परीक्षणों के मंजूरियां दी गई। कैग ने केजी-डी6 ब्लॉक की मसौदा ऑडिट रिपोर्ट में यह तथ्य पेश

    नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआइएल) की गैस खोजों को लेकर तेल मंत्रालय और इसकी तकनीकी शाखा डीजीएच को आड़े हाथ लिया है। कैग का कहना है कि केजी-डी6 ब्लॉक में कंपनी की खोजों को बिना पर्याप्त परीक्षणों के मंजूरियां दी गई। कैग ने केजी-डी6 ब्लॉक की मसौदा ऑडिट रिपोर्ट में यह तथ्य पेश किए हैं।

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    आरआइएल ने अक्टूबर 2002 में धीरूभाई-1 और 3 कुओं में गैस की खोज की थी। इन्हें अप्रैल 2003 और मार्च 2004 में वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य घोषित किया गया। मई 2004 में कंपनी ने दावा किया था कि उसके भंडारों में 83 खरब घन फुट गैस मौजूद है। हाइड्रोकार्बन्स महानिदेशालय (डीजीएच) ने शुरुआती दो खोजों की 2.47 अरब डॉलर की विकास योजना को मंजूरी दी थी।

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    डीजीएच ने इन खोजों में 54.5 खरब घन के अनुमानित भंडार और 38.1 खरब घन फुट के उत्खनन योग्य भंडारों को स्वीकार्यता दी थी। हालांकि, वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने से पहले ही आरआइएल ने 2006 में विकास योजना में बदलाव करते हुए खर्च की रकम बढ़ाकर 8.8 अरब डॉलर करने की मांग की। साथ ही, कुल भंडार का अनुमान बढ़ाकर 141.64 खरब घन फुट और उत्खनन योग्य भंडार बढ़ाकर 120.4 खरब घन फुट कर दिया।

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    डीजीएच के प्रतिनिधियों की मौजूदगी वाली ब्लॉक की प्रबंधन समिति ने दिसंबर 2006 में कंपनी के संशोधित प्लान को मंजूरी दी। उत्खनन योग्य भंडार का अनुमान बढ़ाकर 100.3 खरब घन फुट और दैनिक उत्पादन का अनुमान दोगुना करके आठ करोड़ घन मीटर कर दिया। इस गैस क्षेत्रों में उत्पादन अप्रैल 2009 में शुरू हुआ लेकिन यह अनुमान के अनुरूप नहीं रहा और एक साल के भीतर ही उत्पादन में भारी कमी दर्ज की गई। इससे आरआइएल को ब्रिटिश पेट्रोलियम से साझेदारी के लिए मजबूर होना पड़ा।

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    कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्पादन साझेदारी समझौते के मुताबिक कॉन्ट्रैक्टर को खोजों के आकार के मूल्यांकन के लिए अप्रेजल प्रोग्राम सौंपना था। डी-1 और डी-3 के लिए ऐसा कोई अप्रेजल प्रोग्राम नहीं सौंपा गया। ऑपरेटर ने सीधे ही खोजों को वाणिज्यिक घोषित करने का आवेदन दिया। अप्रेजल प्रोग्राम के जरिये क्षेत्रों में मौजूद भंडार के तकनीकी पहलुओं की पड़ताल की जा सकती थी।

    कैग ने कहा कि पता नहीं कैसे डीजीएच ने क्षेत्रों की विकास योजना की विश्वसनीयता को लेकर खुद को आश्वस्त किया। भंडार के अनुमान, उत्पादन की दर और लागत को लेकर भी यही स्थिति रही। कैग ने परफॉर्मेस ऑडिट रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले अपनी मसौदा रिपोर्ट पर तेल मंत्रालय की टिप्पणियां मांगी हैं।