केंद्र की फसल बीमा योजना को राज्यों ने लिया हाथोहाथ
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हिस्सा लेने के लिहाज से लगभग सभी राज्यों ने उत्साह दिखाया है। लेकिन पंजाब ने खुद को पूरी तरह पूर्व की भांति अलग ही रखा ...और पढ़ें

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। केंद्र सरकार की नई फसल बीमा योजना को राज्य सरकारों ने हाथों हाथ लिया है। ज्यादातर राज्यों में खरीफ बुवाई शुरु होने से पहले ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है।
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फसल बीमा करने वाली निजी बीमा कंपनियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते बीमा प्रीमियम की दरें बहुत कम दर्ज की गई हैं। लेकिन भीषण सूखा झेल रहे महाराष्ट्र में बीमा प्रीमियम की दरें अधिकतम 12 फीसद से 29 फीसद तक दर्ज की गई हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हिस्सा लेने के लिहाज से लगभग सभी राज्यों ने उत्साह दिखाया है। लेकिन पंजाब ने खुद को पूरी तरह पूर्व की भांति अलग ही रखा है। हालांकि बिहार, राजस्थान और तमिलनाडु समेत पूर्वोत्तर के कई छोटे राज्य फसल बीमा योजना के अमल में पीछे चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के जिलों को 12 अलग-अलग समूहों में बांटकर बीमा प्रीमियम की दरें निर्धारित की गई हैं।
मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक राज्य में प्रीमियम की दरें 2.46 फीसद से 7.18 फीसद तक दर्ज की गई हैं। खेती के जोखिम से बचाने के लिए सरकार ने फसल बीमा के रूप में किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान किया है। प्राकृतिक आपदाओं और अन्य जोखिम को देखते हुए बीमा कंपनियों के बीच टेंडर प्रक्रिया के तहत बीमा प्रीमियम की दरें तय की गई हैं।
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इनमें महाराष्ट्र में सर्वाधिक 12 से 29 फीसद तक प्रीमियम दर निर्धारित की गई है। हरियाणा में यह दर चार फीसद रही है। उत्तराखंड जैसे राज्य में यह दो फीसद से भी कम है। तथ्य यह है कि खरीफ सीजन के लिए सरकार की ओर से अधिकतम प्रीमियम दरें सिर्फ दो फीसद है। ये दरें सभी तरह की फसलों पर लागू होंगी।
फसलों की संख्या और बीमा कंपनियों का चयन करने का दायित्व राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। उत्तर प्रदेश में 11 फसलों का बीमा कराने का निश्चय किया गया है। कृषि मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बिहार और राजस्थान में अगले सप्ताह तक फसल बीमा लागू करने का फैसला हो जाएगा।
बिहार में तो बीमा कंपनियों की चयन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए टेंडर खुलने वाला है। राजस्थान में कुछ कानूनी अड़चनें आ रहीं थी, जिसे दूर कर लिया गया है। विधानसभा चुनाव होने की वजह से तमिलनाडु में अमल करने की प्रक्रिया देर से शुरु हो सकी है।

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