जल्द दिखाई देगा आर्थिक सुधारों का असर: अरुण जेटली
कुछ ही दिनों में राजग की सरकार केंद्र में छह महीने पूरे करेगी। आंकड़े गवाह हैं कि इन छह महीनों में राजग ने जहां कई राजनीतिक उपलब्धियां हासिल की हैं वहीं विरासत में मिली बेहद खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को भी एक दिशा मिलती दिख रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली
कुछ ही दिनों में राजग की सरकार केंद्र में छह महीने पूरे करेगी। आंकड़े गवाह हैं कि इन छह महीनों में राजग ने जहां कई राजनीतिक उपलब्धियां हासिल की हैं वहीं विरासत में मिली बेहद खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को भी एक दिशा मिलती दिख रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली जीत के बाद तो सरकार ने लंबित आर्थिक सुधारों पर दो टूक फैसला करना भी शुरू कर दिया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार के साफ लक्षण देखने को मिल रहे हैं लेकिन सरकार के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दैनिक जागरण के आशुतोष झा, जयप्रकाश रंजन और हरिकिशन शर्मा के साथ विशेष बातचीत में वित्त मंत्री ने आर्थिक मोर्चे पर राजग सरकार की आगामी रणनीति के बारे में विस्तार से बताया।
राजग को विरासत में बेजान अर्थव्यवस्था मिली थी, अब आर्थिक मोर्चे से कई सकारात्मक खबरें मिलने लगी हैं, क्या अर्थव्यवस्था की मंदी का दौर खत्म हो गया?
मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि हम मंदी को तेजी से खत्म करने की दिशा में अग्रसर हैं। लेकिन साथ ही यह भी कहना चाहूंगा कि पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था को जो क्षति पहुंची है, उसे पूरी तरह से सही होने में अभी कुछ और समय लगेगा। हालात यह थे कि वैश्विक स्तर पर भारत की साख खत्म हो रही थी, सरकार के स्तर पर कोई फैसला नहीं हो रहा था। बड़े पैमाने पर फैसलों का नकारात्मक असर जा रहा था। ऐसा भी नहीं है कि जो लोग फैसले ले रहे थे वे यह नहीं जानते थे कि इसका बुरा असर होगा। अगर आप पुराने मामलों पर कर लगाना शुरू करेंगे तो कोई भी आपके यहां निवेश नहीं करना चाहेगा। विदेशी निवेशकों को छोड़ दीजिए आपके देश के निवेशक भी पैसा नहीं लगाएंगे। किसानों के हितों की रक्षा होनी चाहिए, यह कौन नहीं चाहता। लेकिन इसकी आड़ में आपने पूरी औद्योगिक प्रक्रिया को ही ठप्प कर दिया। ढांचागत परियोजनाओं से लेकर हाईवे, ग्रामीण विकास, आवासीय परियोजनाओं से लेकर रक्षा तक के मामलों में जमीन अधिग्रहित करना नामुमकिन हो गया है। देश में 65 फीसद लोगों के पास घर नहीं है या रहने योग्य घर नहीं है। उन्हें आवास देना सरकार की जिम्मेदारी है या नहीं। रोजगार देना है। लेकिन आपने ऐसा भूमि अधिग्रहण कानून ला दिया कि जिससे शौचालय बनाने से लेकर औद्योगिक पार्क बनाने तक के लिए जमीन नहीं मिल रही है। बतौर रक्षा मंत्री मैंं आपको यह बता सकता हूं कि हमारे पास रक्षा से जुड़े मामलों में भी जमीन नहीं मिलने के मामले सामने आ रहे हैं। ये सारे कदम प्रगति के लिए नहीं बल्कि चुनाव जीतने के लिए उठाए गए थे। लिहाजा इन सभी मामलों के असर को खत्म करने में अभी समय लगेगा। अभी हम जो कर रहे हैं वह मुख्यत: पुराने फैसलों के नकारात्मक असर को खत्म करने के लिए कर रहे हैं। मसलन, कर के मामले में हम निवेशकों के भरोसे को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। कोयला पर अध्यादेश मुख्य तौर पर हमने कोयला क्षेत्र में विरासत में मिली तमाम दुश्वारियों को खत्म करने के लिए उठाया है।
अभी तक जो कदम उठाए गए हैं उसका क्या असर पड़ते देख रहे हैं?
समग्र तौर पर देखिए तो बहुत बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। जैसा मैंने बताया हम सबसे पहले माहौल को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। मूड बदल गया है। निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। लोग यह समझने लगे हैं कि भारत में फिर से निवेश किया जा सकता है। यह और समय लेगा। कुछ तिमाहियों में काम नहीं होगा। हमें यह भी देखना होगा कि बजट में रक्षा को लेकर हमने जो कदम उठाए थे उसका मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर क्या असर पड़ता है। अर्थव्यवस्था कुछ अपने अंदाज में काम करती है। लेकिन निश्चित तौर पर हमने जिस दिशा में काम करना शुरू किया है वह सही जा रहा है। इसका ठोस असर जल्द ही दिखाई देगा। कुछ स्वभाविक समय लगता है।
अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों को आप कैसे रेखांकित करेंगे?
मेरे ख्याल से जो भी चुनौतियां हैं वे कमजोर पड़ रही हैं। अब कोयला क्षेत्र का मामला लीजिए। काफी समस्याएं थी, इससे बिजली पर काफी बुरा असर पड़ रहा था। अब अध्यादेश इन सभी हालात को ठीक करेगा, लेकिन अध्यादेश के प्रावधानों का जमीनी असर दिखने में कुछ समय लगेगा। ब्याज दरों को अब नीचे जाना चाहिए। यह एक अहम मुद्दा होगा। खाने पीने की चीजों और क्रूड की कीमत की वजह से महंगाई बढ़ी हुई थी, जिससे ब्याज दरें भी काफी ज्यादा हो गई हैं। मुझे उम्मीद है कि आरबीआइ अगली बार जब मौद्रिक नीति की घोषणा करेगा तो बदले हालात को ध्यान में रखेगा। साथ ही मानसून में देरी के असर भी बहुत ज्यादा नहीं रहने के आसार हैं। कृषि उत्पादन में बहुत बुरा असर नहीं पड़ा है। सेवा क्षेत्र सही तरीके से काम कर रहा है। प्रत्यक्ष कर संग्रह बढिय़ा है लेकिन अप्रत्यक्ष कर संग्रह को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर भी बेहतर प्रदर्शन करे। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में साफ सुधार के संकेत नहीं मिल रहे हैं। पिछले दो सालों से इस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं है।
ऐसे में आपकी सरकार का आगे का क्या एजेंडा होगा?
मैं यही बताना चाहता हूं कि बहुत सुधार हुए हैं लेकिन अभी हमें काफी लंबा रास्ता तय करना है। सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। ब्याज दरों को तर्कसंगत बनाना है। जमीन अधिग्रहण का मामला एक बड़ा एजेंडा होगा। हमें अगर देश भर में स्मार्ट सिटी बनानी है, ढांचागत विकास करना है तो जमीन चाहिए।
राजग सरकार ने डीजल कीमत को बाजार के हवाले कर दिया है, क्या आगे इस फैसले को बरकरार रखा जाएगा?
हमने फैसला कर लिया है तो इसे लागू भी करना है। यह नहीं हो सकता कि आप अपनी मर्जी से सुधार करें यानी जब हालात ठीक हो तो सुधार करें और हालात आपके खिलाफ हो तो सुधार नहीं करें। सौभाग्य से अभी हालात हमारे पक्ष में है। यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों के भीतर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कई बार कटौती की गई है। हो सकता है कि भविष्य में हालात बदले, लेकिन ग्राहकों को उसके लिए भी तैयार रहना होगा। वैसे भी किसी भी सुधार का एक अहम हिस्सा यह होता है कि ग्राहक को भुगतान करना होगा। आप यह नहीं कह सकते कि आप डीजल या पेट्रोल का उपभोग तो करेंगे लेकिन भुगतान नहीं करेंगे। या हाइवे का इस्तेमाल करुंगा लेकिन टोल नहीं दूंगा तो वैसे में कोई भी सुधार काम नहीं करेगा।
आपने हाल ही में घरेलू स्तर पर काला धन बनाने वालों के खिलाफ कदम उठाने की बात कही थी, क्या रणनीति होगी?
दरअसल, मैंने यह कहा था कि विदेशों में जो काला धन छिपाया हुआ है उसे वापस लाने के लिए कदम उठाएं। लेकिन साथ ही घरेलू काले धन को पकडऩे में कोई ढिलाई मत बरतो। घरेलू स्तर पर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां काला धन को लेकर आय कर विभाग के पास सूचनाएं हैं। मसलन, रीयल एस्टेट हुए, खनन क्षेत्र है, आभूषण का कारोबार भी इसमें शामिल है। हमें अपने कर आधार को भी बढ़ाना है। और अगर कालेधन को बाहर निकाल कर अर्थव्यवस्था में इसका इस्तेमाल किया जाता है तो इससे देश की विकास दर को काफी प्रोत्साहन मिलेगा। रीयल एस्टेट में लेन देन को आधार से जोडऩे का सुझाव भी हमारे पास आया है। यह रीयल एस्टेट में लेन देन पर नजर रखने के लिए एक उम्दा सुझाव है। हम विचार कर रहे हैं।
काले धन को निकालने को लेकर विदेशी सरकारों के साथ चल रहे कर समझौते की क्या प्रगति है?
देखिए एक बात हम सभी को स्वीकार करना चाहिए कि दुनिया भर में जब भी दो देशों के बीच समझौते होते हैं तो उनमें एक गोपनीय उपबंध होता है। कर संबंधी समझौते में भी यह होता है यानी हम बगैर किसी ठोस सुबूत के किसी के नाम का खुलासा नहीं कर सकते। कई बार यह होता है कि हम दूसरे देशों के साथ पुराने समझौते पर पुनर्विचार करते हैं लेकिन दूसरा उसे स्वीकार नहीं करता। किसी भी वैध करदाता की सूचना हम किसी को नहीं दे सकते। तो बात यह नहीं है कि हम काला धन रखने वाले का नाम हासिल कर सकते हैं या नहीं बल्कि सवाल यह है कि कानूनी तरीके से हम यह साबित कर सकते हैं या नहीं कि उक्त व्यक्ति ने जो पैसा बाहर रखा हुआ है वह काला धन ही है। संधि में यह उपबंध होता है कि हमें अदालत में सुबूतों के साथ उक्त व्यक्ति के खिलाफ जाना होगा तभी उसका नाम सार्वजनिक किया जा सकता है।
जनरल एंटी एवाइडेंस रूल्स (गार) और सामान व सेवा शुल्क (जीएसटी) को लेकर क्या प्रगति है?
गार पर हमने बातचीत शुरू की है लेकिन अभी तक अंतिम तौर पर फैसला नहीं किया है। असलियत में गार को जब पहली बार लागू करने का फैसला किया गया तब कर योजना बना कर कर अदा नहीं करने को अनुमति दी गई थी। लेकिन बाद में दुनिया भर में इस पर रोक लगा दी गई है। हमारे सामने सवाल यह है कि क्या इसे लागू करने का यह सही समय है जब हम अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश में है। खास तौर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसका विरोध किया है। उनका तर्क है कि भारत को अभी निवेश चाहिए इसलिए उसे गार को लागू नहीं करना चाहिए। जबकि वह यूरोप में स्वीकार करते हैं। मैं इसे अपनी अर्थव्यवस्था के हालात को ध्यान में रखते हुए फैसला करूंगा।
जीएसटी पर लगातार विचार विमर्श चल रहा है। हमने सभी राज्यों के विचार सुने हैं। मैने कुछ मुख्यमंत्रियों से भी विचार विमर्श किया है और संसद का सत्र शुरू होने से पहले कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ मैं बातचीत करूंगा। विधेयक का मसौदा तैयार है। कुछ ही राज्य बचे हैं जिनके साथ मुझे बातचीत करनी है। मुझे उम्मीद है कि यह विधेयक संसद के आगामी सत्र में पेश हो जाएगा।
विनिवेश को लेकर साफ रोडमैप आप कब तक लेकर आएंगे?
विनिवेश होने वाली कंपनियों की सूची तैयार है। उसके बारे में कुछ और विचार-विमर्श चल रहा है। हम जल्द ही इस बारे में विस्तृत घोषणा करेंगे।
आपको विरासत में बहुत ही बदहाल बैंकिंग क्षेत्र मिला था, खास तौर पर सरकारी बैंकों की समस्याओं को कैसे दूर किया जाएगा?
मुझे लगता है कि बैंकिंग सेक्टर प्रशासनिक तौर पर काफी लचर हो गया था। खास तौर पर यहां होने वाली नियुक्तियों में काफी सुधार की जरुरत है। इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की भी आवश्यकता है। हमने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। नई समिति बनाई गई थी, उनकी रिपोर्ट के आधार पर पूर्व में गठित समिति ने जिन लोगों की नियुक्ति की थी, उसे रद कर दिया गया है। वित्त मंत्रालय की सिफारिश पर पीएम ने यह फैसला किया है। अब हम नए सिरे से बैंकों के प्रमुखों और अधिशासी निदेशकों की नियुक्ति करने जा रहे हैं। बैंकिंग के सामने आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को पूरा सहयोग नहीं कर पा रहे हैं। एनपीए बढऩे से बैंंकों का भरोसा डगमगा गया है। लेकिन बैंक मैन्यूफैक्चरिंग परियोजनाओं पर भरोसा कर उन्हें कर्ज नहीं देंगे तो फिर कौन देगा? बैंकिंग में विश्वसनीयता का संकट पैदा हुआ है। हम प्रशासनिक स्तर पर तो सुधार कर रहे हैं साथ ही बहुत जल्द ही बैंकों के प्रमुखों के साथ प्रधानमंत्री बैठक करेंगे। मेरे अलावा रिजर्व बैैंक गवर्नर भी होंगे उस बैठक में। बैठक का उद्देश्य यह है कि बैंकों में नए सिरे से भरोसे का संचार किया जा सके ताकि वे आगे बढ़ कर परियोजनाओं को कर्ज देना शुरू करें। यह मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को फिर से तेजी की तरफ लाने में काफी अहम होगा। हम बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को घटा कर 52 फीसद पर लाने की तैयारी भी कर रहे हैं। इससे बैंको को पूंजी आधार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
क्या आपका अगला बजट सरकार की नई आर्थिक सोच को प्रदर्शित करेगा?
हमारी असली चुनौती यह है कि कैसे फिर से तेज आर्थिक विकास दर को हासिल किया जाए। आप यह मत भूलिए कि जब एक बेहद औसत प्रशासन के तहत हम 8-9 फीसद की आर्थिक विकास दर हासिल कर सकते हैं तो फिर एक बेहतरीन व स्वच्छ प्रशासन के जरिये क्या कर सकते है। अभी तक हमारा मुख्य लक्ष्य यह है कि 8 या 9 फीसद की विकास दर हासिल किया जाए। हम उस दिशा में कदम उठा रहे हैं।
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