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    क्या है बेबी की हॉबी !

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Sun, 12 Jun 2016 01:12 PM (IST)

    मनोचिकित्सक जयंती दत्ता कहती हैं, ‘यदि पैरेंट्स भी बच्चों के साथ-साथ उनकी हॉबी में रुचि लें तो बच्चा एंज्वॉय भी करेगा और कुछ नया सीखेगा भी।

    नई दिल्ली (सीमा झा)। सारा दिन घर बैठकर क्या करेंगे बच्चे। टीवी-मोबाइल या इंटरनेट में उन्हें कितनी देर उलझाया जा सकता है। छुट्टी बेकार न हो जाए इसलिए अपने बच्चों को हॉबी क्लास में डाल दिया है। अब राहत महसूस करती हूं,’ कहती हैं होममेकर अनु रस्तोगी। छुट्टियों में हॉबी क्लास या समर कैंप ज्वॉइन करना जहां बच्चों के लिए फन का जरिया है, वहीं पैरेंट्स के लिए यह लेकर आता है सुकून। ज्यादातर पैरेंट्स मानते हैं कि बच्चों को हॉबी क्लास ज्वॉइन कराना उन्हें व्यस्त रखने का रचनात्मक तरीका है। इससे पैरेंट्स को भी अपनी थकाऊ या एक सी दिनचर्या से छुटकारा मिलता है।...पर क्या हॉबी क्लास की सार्थकता बस इतनी ही है? मनोचिकित्सक जयंती दत्ता कहती हैं, ‘यदि पैरेंट्स भी बच्चों के साथ-साथ उनकी हॉबी में रुचि लें तो बच्चा एंज्वॉय भी करेगा और कुछ नया सीखेगा भी। यदि पैरेंट्स हॉबी क्लासेज में दाखिला दिलाकर निश्चिंत हो जाएंगे तो बच्चा भी इसे टाइमपास समझकर जल्द ही बोर हो सकता है।

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    बोझ है ख्वाबों का

    सिंगर बनकर नाम रोशन करेगा या क्रिकेटर बनकर विराटबन जाएगा, माधुरी की तरह नाचेंगे बिटिया के कदम भी, सीख लेगा मेरा बच्चा भी पेंटिंग करना या थिएटर ज्वॉइन कर भविष्य में बन सकता है एक थिएटर आर्टिस्ट। हॉबी क्लास में जाने वाला हर बच्चा इस तरह की ख्वाहिशों का बोझ लेकर भी जाता है। क्या हॉबी क्लासेज ज्वॉइन करने की भागदौड़ इसलिए भी है कि बच्चा पैरेंट्स की ख्वाहिशों को पूरा करने का सामान जुटा सके? समाजशास्त्री रितु सारस्वत के मुताबिक, ‘अंधी प्रतियोगिता की इस दौड़ में बच्चों से अधिक पैरेंट्स पर दबाव है। छोटे-छोटे बच्चों पर उम्मीदों का बोझ ऐसा है कि यह हॉबी क्लासेज में दाखिले के समय भी नजर आती है। वास्तव में यह सोच उन्हें लांग-टर्म में नुकसान पहुंचाती हैं।

    रुचि को जानें

    पेंटिंग ज्वॉइन कराना सही है, इससे कल्पना शक्ति बढ़ती है या थिएटर से व्यक्तित्व विकास में मदद मिलती है। केवल सुनी-सुनाई बातों के आधार पर बच्चों को हॉबी क्लास ज्वॉइन कराना सही नहीं है। राष्ट्रीय बाल भवन, नई दिल्ली के समर कैंप में पेटिंग सिखाने वाले मोहम्मद अनिरुल इस्लाम कहते हैं, ‘बच्चों की रुचि को जानकर ही उन्हें संबंधित कोर्स में ज्वॉइन कराना चाहिए, अन्यथा वह बच्चे के लिए उबाऊ होगा। इसलिए हमारी कोशिश होती है कि पहले ही ऐसे बच्चों को बुक न किया जाए जो पेंटिंग में रुचि नहीं लेते।

    धैर्य से बढ़ेगा टैलेंट

    वरिष्ठ रंगकर्मी अजय मनचंदा को हॉबी क्लासेज और समर कैंप में प्रशिक्षण देने का पुराना अनुभव है। वे सालों से नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, थिएटर इन एजुकेशन कंपनी और दिल्ली के जाने-माने शिक्षण संस्थानों में क्रिएटिव आर्ट करते रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हॉबी क्लास ज्वॉइन करने का ट्रेंड पॉजिटिव है। ये बच्चों को एक स्टार्टर देती है ताकि वे रुचि को समझकर अपने टैलेंट को एक्सप्लोर कर सकें, पर यह तभी होगा जब पैरेंट्स उनकी रुचियों को धैर्य से समझने का प्रयास करें।

    और भी हैं विकल्प

    हॉबी क्लास में बच्चा कुछ सीख रहा है कि नहीं या पैरेंट्स का मन रखने के लिए वहां समय बिता रहा है यह समझना जरूरी है। मनोचिकित्सक जयंती दत्ता कहती हैं, ‘बच्चे कुछ सीखें न सीखें पर हॉबी क्लास जाकर मस्ती जरूर करते हैं। अक्सर उन्हें भी मालूम होता है कि पैरेंट्स उन्हें बिजी रखने के लिए ही वहां भेजते हैं कुछ सीखने के लिए नहीं।समाजशास्त्री रितु सारस्वत के मुताबिक, ‘जरूरी नहीं कि जो ट्रेंड है उसमें फिटहोने की भागमभाग की जाए। कामकाजी पैरेंट्स की मजबूरी हो सकती है, पर सामान्य पैरेंट्स छुट्टियों का और बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि बच्चों में व्यवहारिक जीवन से जुड़ी समझ विकसित करना भी जरूरी है।रितु के मुताबिक, ‘घर के छोटे-बड़े काम हों या रिश्तेदारों से मिलना-जुलना, ये भी बड़े काम हैं जो केवल पैरेंट्स सिखा सकते हैं।

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    जाया न हो जाए छुट्टी

    दिल्ली स्थित राष्ट्रीय बाल भवन में चेयरपर्सन शालू जिंदल का कहना है कि यदि बच्चा यह समझ जाए कि उसे किस चीज में रुचि है तो पैरेंट्स को कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं होती। गर्मी की छुट्टियों में समर कैंप लगाने का यही उद्देश्य है कि बच्चे अपनी पसंद के क्षेत्र में हिस्सा लेकर उसे और ज्यादा एक्सप्लोर करें। बाल भवन में मुझे दो साल हुए हैं पर ऐसे लोगों से मिलती हूं जिन्होंने गर्मी की छुट्टियों में यहां आकर जो सीखा वही आज उनका कॅरियर है। इन छुट्टियों का सदुपयोग तभी होगा जब बच्चे सही शिक्षक और सही संस्थान में जाकर अपनी पसंद की क्षेत्रों में कुछ समय बिता सकें। पूरे साल उन यादों को संजोकर रख सकें और आगे भी एक्सप्लोर करने की क्षमता विकसित कर सकें।

    मजबूरी नहीं पैरेंटिंग

    मनोवैज्ञानिक काउंसलर गीतांजलि कुमार कहती हैं कि बच्चे को थियेटर ज्वॉइन कराने से उसकी पर्सनैलिटी में चेंज आ जाएगा या वह क्रिकेट की कोचिंग लेकर बढ़िया क्रिकेटर बन जाएगा। यदि ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं। बच्चे की पर्सनैलिटी तभी निखरेगी, वह कुछ सीख पाएगा, जब आप खुद उसमें रुचि लेंगे। घर पर उसे समय देंगे और उसकी रुचियों को लेकर उससे चर्चा करेंगे। परफेक्ट रेसिपी की तरह बच्चों को न समझें। कुछ ट्यूशन व हॉबी क्लासेस ज्वॉइन करके ही बच्चों का भविष्य बेहतर नहीं हो सकता। पैरेंटिंग को एक बड़ी जिम्मेदारी समझें न कि एक मजबूरी। ज्यादातर मजबूरी समझते हैं तभी बच्चों पर मेहनत तो करते हैं पर अक्सर निराशाजनक परिणाम मिलता है।

    खेल-खेल में सिखाएं बड़ी-बड़ी बातें

    • कैसे होती है इंटरनेट बैकिंग
    • चेक कैसे भरा जाता है
    • क्रेडिट कार्ड क्या होता है, उसे कैसे करते हैं यूज
    • बिल कैसे पे किया जाता है
    • बाजार का हिसाब-किताब कैसे रखें
    • किचन के छोटे-छोटे काम

    ध्यान रहे

    • बच्चों पर काम न लादें।
    • मौज-मस्ती से भरकर सिखाएं।
    • हर बच्चा अलग है, उसे समझें।
    • सिखाने के बाद निश्चिंत न हो जाएं।
    • सिखाने के लिए रहें अलर्ट।

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