'दिल धड़कने दो' रुलाएगी भी, हंसाएगी भी - फरहान अख्तर
डायेक्टर-एक्टर फरहान अख्तर को क्रिएटिविटी विरासत में मिली है। ‘दिल धड़कने दो’ में वो एक दमदार पत्रकार की भूमिका में दिखेंगे। प्रस्तुत हैं उनकी स्मिता से बातचीत के अंश...
डायेक्टर-एक्टर फरहान अख्तर को क्रिएटिविटी विरासत में मिली है। ‘दिल धड़कने दो’ में वो एक दमदार पत्रकार की भूमिका में दिखेंगे। प्रस्तुत हैं उनकी स्मिता से बातचीत के अंश...
आज पारिवारिक फिल्में गुम सी हो गई हैं। आप क्या कारण मानते हैं?
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क्या छिपा है ‘दिल धड़कने दो’ में?
परिवार में बहुत जरूरी है कि हर सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं को समझे। उनका सम्मान करे। खासतौर पर पैरेंट्स और बच्चों के बीच जनरेशन गैप चला आ रहा है। पैरेंट्स की सोच है कि वही बच्चों का भला सोच सकते हैं। बड़े होने पर बच्चों को अपनी जिंदगी खुद बनाने दो। उन्हें अपनी गलतियों से खुद सीखने दो। उन्हें अपने बलबूते पैरों पर खड़े होने की आजादी दो। इस फिल्म की कहानी में इमोशन के साथ कॉमेडी भी है।
आपकी क्या भूमिका है?
मैं इसमें पत्रकार की भूमिका में हूं। मैं दिल्ली के एक कॉरपोरेट परिवार के मुखिया अनिल कपूर के मैनेजर का बेटा हूं। उस परिवार के साथ मेरी एक हिस्ट्री है। प्रियंका चोपड़ा के किरदार और मेरे किरदार में जुड़ाव है।
आपकी फिल्में रिश्तों में आजादी की बात ज्यादा करती हैं?
रिलेशनशिप पर फिल्में बनाने में अहम है कि साथ होकर भी आत्मनिर्भर कैसे हो सकता है इंसान। शादी होने के बाद माना जाता है कि दोनों की पसंद-नापसंद एक जैसी होनी चाहिए। असल में हॉलीडे पर पति कहीं जाना चाहता है और पत्नी कहीं और। आखिरकार किसी एक को समझौता करना ही पड़ता है। फिल्म में इस मुद्दे पर बात नहीं की गई है। इस कहानी में बहुत सारी परतें हैं। एक परंपरागत परिवार में बेटा-बेटी के साथ अलग-अलग व्यवहार होता है। उसकी चर्चा है।
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आपकी खुशनुमा शादीशुदा जिंदगी है। आपके अनुसार किसी कपल को शादी से पहले एक-दूसरे को कितना समय देना चाहिए?
मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने तीन-चार हफ्ते की मुलाकात के बाद शादी कर ली। वहीं एक कपल ने ग्यारह साल तक एक साथ रहने के बाद शादी नहीं की। इसका कोई नियम नहीं है। मेरे मुताबिक आपसी सामंजस्य और तालमेल है तो शादी कर लेनी चाहिए। मेरी अधुना से मुलाकात 1998 में हुई। हमारी शादी दो साल बाद हुई। इस दौरान हमने काफी समय एक साथ गुजारा। फिर लगा कि ये रिश्ता सही है। इसे आगे ले जाना चाहिए और शादी कर ली।
आप और जोया दोनों निर्देशक हैं। दोनों की काम के तरीके में क्या फर्क है?
फिल्मों को लेकर हमारी सेंसबिलिटी एक समान है। दरअसल, हमारी जड़ें एक हैं। बचपन में हम एक जैसी फिल्में देखते थे। उसका असर हम दोनों पर एक ही जैसा है। शायद यही वजह है कि हमारी सेंसबिलिटी और कला के प्रति प्रेम में भी समानता है।
जोया के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहता है?
जोया अपनी सोच को लेकर बहुत स्पष्टवादी हैं। ये मेरा नहीं, उनके साथ काम करने वाले लोगों का कहना है। ‘लक बाई चांस’ और ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ मल्टीस्टारर फिल्में थी। ‘दिल धड़कने दो’ भी मल्टीस्टारर है। मैं भाई हूं तो उनकी तारीफ करूंगा। वैसे उनका बर्ताव स्पॉटबॉय से लेकर एक्टर तक सभी के साथ दोस्ताना होता है। हर इंसान उनके साथ खुद को स्पेशल फील करता है। वो सबकी बात सुनती हैं। बहुत क्रिएटिव हैं। सेट पर खुशनुमा माहौल रखती हैं।
आगे कि क्या प्लानिंग्स हैं?
‘रॉक आन 2’ की शूटिंग अगस्त से शुरू करेंगे। ‘वजीर’ में अमिताभ बच्चन के साथ दस साल बाद बतौर एक्टर काम कर रहा हूं। उनके साथ मेरे बहुत सारे सीन हैं। इसमें मैं एंटी टेररिस्ट स्क्वॉयड ऑफिसर की भूमिका में हूं। इसके लिए मैंने ऐसे ऑफीसर की बॉडी लैंग्वेज पर रिसर्च की। उनके एक्शन का स्टाइल फिल्मी नहीं होता, इसलिए उसे भी सीखा।